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सोमवार, 27 मार्च 2017

गजल :-तुम्हारे सितम को सहन कर रहा हूँ

गजल क्र○ 5

तुम्हारे सितम को सहन कर रहा हूँ
जिगर का तलातुम दफन कर रहा हूँ
नशीली निगाहों से घायल हुये जब
जखम को छुपाकर कफन कर रहा हूँ
चमन में गुजारे खुशी के हसीं पल
तुझे मैं भुलाने का जतन कर रहा हूँ
तुम्हारे पुराने खतों को जलाकर
सुबह की हवा में मनन कर रहा हूँ
पुराने जखम पर दवा को लगाकर
लिबासे जिस्म को तपन कर रहा हूँ
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
    26 मार्च  2017

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