सुबह मंदिर की घंटी आरती की थाली है
सुबह नदी के किनारे सूरज की लाली है
सुबह की ख्वाहिशें शाम तक टाली है,
कुछ इस तरह हमने जिंदगी संभाली है
शमा में इस वहम में सो गये हम परवाने
कहीं आम न हो जाए बात, नींद खोली है
चिडियों की फिजा में प्रेम मधुर वाणी है
उठते हुए सूरज से नजर मिलने वाली है
छुयेंगे आसमां को हम एक रोज देखना है
ये लहूलुहान परिंदे उड़ान जारी रखना है
सूरज की किरणों में हवाओं का बसेरा
खुले इस आसमान मे सूरज का चेहरा
नयी सोच नयी उम्मीद रोशनी लायी है
फिर से नये सपनों का सबेरा लायी है
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
03 मार्च 2017
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