गजल क्र○ 1
उसको जब मोहब्बत निभानी नही थी
उसको चाहत ए इश्क दिखानी नही थी
बडी मुश्किल से सीखा है तेरे बगैर जीना
इस दिल को मोहब्बत सिखानी नही थी
तुमसे सनम गिले-सिकबे दूर कैसै करे
दिल की हर बात तुमको बतानी नही थी
मुझको शामो-शहर तेरी याद आयेगी
फितरत जालिम को आजमानी नही थी
जिन्दगी एहसासो की पटरी पर दौडती
वफा की रिवाज शहर में चलानी नही थी
तकिया कही, जुल्फे कही ,वो खुद कही
अब विकास वो आँखों में तरानी नही थी
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
5/03/2017
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