लहरें मुहब्बत की तुम्हारे दिल से उठती हो
किसी के इश्क मे पागल दीवानी लगती हो
जिसको एक नजर निगाहो में देख लेती हो
कयामत तक उस दिल को होश नही देती हो
फिजाओं में तुम हो इन घटाओं में तुम हो
इन हवाओं में तुम हो इन बहारों में तुम हो
नर्म धूप में तुम हो पेडो की छाँव में तुम हो
मेरे डायरी के हर अल्फाज गजल में तुम हो
कश्मीरी बर्फीली हसीन सर्द रात सी तुम हो
शर्मीली आँखो से मासूम लडकी दिखती हो
जब भी पथ पर मुस्कराके इतराके चलती हो
उस बाग मे सुन्दर गुलाब की कली लगती हो
©कवि विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400
25 फरवरी 2017
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