केसरिया गुलाल अम्बर से बरसा ऐसा पानी
नशीली आँखें गुलाबी गाल हर सूरत हरषानी
देखो छोटू भी भर लाया पिचकारी रंग वाली
गुडिया भी ले आई रंग-बिरंगे रंग की थाली
आया मौसम रंगने का कर दो धरती लाल
देवर ने लगाया भाभी के गालों पर गुलाल
घर-गली में ढम-ढम ढोल बजाते होली पर
होकर मस्त अबीर गुलाल उड़ाते होली पर
हमने भी खेली थी उनके संग उसदिन होली
फिर नही कर पाये उनके संग हँसी ठिठोली
अब तुम बोलो में किसके संग खेलूँ होली
जब सुना है मैनें वो किसी और की होली
जब पीकर भाँग हुडदंग किया इस होली
वो भी खिडकी से झाकनें लगी इस होली
सब मिल मिटा दो मतभेदों को इस होली
प्यारे फूल खिला दो गुलशन में इस होली
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400
13/03/2017
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400