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रविवार, 5 मार्च 2017

मेरे हिन्द देश की संस्कृति

हम भारतीय अपनी संस्कृति से बेहद लगाब रखते है
भारत के उत्तरी कोने से दक्षिणी कोने तक भ्रमण करें तो निस्संदेह भिन्नताओं को देखते हुए यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि ये सब भारत के ही भू भाग हैं । यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय है तो कहीं सपाट, कहीं घने जंगल हैं तो कहीं पठार । भाषा की विविधता भी यहाँ देखने को मिलती है । कुछ प्रदेशों में हिंदी भाषी लोग अधिक हैं तो कुछ में अवधी या फिर मराठी भाषा प्रधान है ।

केवल अशिक्षित ही नहीं अपितु हमारे कथित सभ्य-शिक्षित समाज में भी दहेज का जहर व्याप्त है । प्रतिदिन कितनी ही भारतीय नारियाँ दहेज प्रथा के कारण मनुष्य की बर्बरता का शिकार हो जाती हैं अथवा जिंदा जला दी जाती हैं ।

अंधविश्वास व रूढ़िवादिता जैसी सामाजिक बुराई देश की प्रगति को पीछे धकेल देती है । अंधविश्वास व रूढ़िवादिता हमारे नवयुवकों को भाग्यवादिता की ओर ले जाती है फलस्वरूप वे कर्महीन हो जाते हैं । अपनी असफलताओं में अपनी कमियों को ढूँढ़ने के बजाय वे इसे भाग्य की परिणति का रूप दे देते हैं ।

भ्रष्टाचार भी हमारे देश में एक जटिल समस्या का रूप ले चुका है । सामान्य कर्मचारी से लेकर ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन अधिकारी तक सभी भ्रष्टाचार के पर्याय बन गए हैं। जिस देश के नेतागण भ्रष्टाचार में डूबे हुए होंगे तो सामान्य व्यक्ति उससे परे कब तक रह सकता है । यह भ्रष्टाचार का ही परिणाम है कि देश में महँगाई तथा कालाबाजारी के जहर का स्वच्छंद रूप से विस्तार हो रहा है ।

हमें ईमानदारी एवं कर्म निष्ठा से कार्य का निरवाहन करना चाहिए सामाजिक कार्यो मे भी सहयोग करना हमारा कर्तव्य है

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