रिश्तों की संजीवनी में बुजुर्गो की भूमिका
रिश्तों की संजीवनी बूटी बन जाते है, हमारे
घर के बुजुर्ग
कांपता हाथ सिर पर रखते ही, रास्तों के पत्थर हटा देते हैं, घर के बुजुर्ग।
हमेशा बुजुर्गों की छत्रछाया में ही महफूज
रहते है हम सब
देकर मशविरा तहजीब का, एक तजुर्बा बन जाते हैं, घर के बुजुर्ग ।।
हमारा हौसला, हमारी ख्वाहिश, ताकत बढाते हैं, घर के बुजुर्ग
अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित करते है, घर के बुजुर्ग
गलत व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस ना देना कभी तुम
कभी होते हम उलझन में, तब प्यार से समझाते है घर के बुजुर्ग ।।
विकास भारद्वाज 'सुदीप'
20 जुलाई 2017
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