हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

रविवार, 3 जून 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में शीतल प्रसाद की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल 1
बहर- 212 212 212 212
काफ़िया- आ
रदीफ़- चाहिए

अब दुआ चाहिए ना दवा चाहिए ।
आशिकी की हमे तो हवा चाहिए।।

जिंदगी का सफर तन्हा कटता नही ।
उम्र भर के लिये हमनवा चाहिए ।।

देश को बेचकर चोर खा जाएंगे ।
देशद्रोही   मरे   बद्दुआ  चाहिए ।।

बुझ सकी है न प्यास समुद्र से कभी ।
प्यास सबकी बुझे एक कुंआ चाहिए ।।

आसमा को झुकाना बड़ी बात नही ।
हौसला तो है माँ की दुआ चाहिए ।।

आ नही पाएगा ये बुढ़ापा कभी ।
दिल हमेशा हि रखना जवा चाहिए ।।

शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 2
बह्र - 1222  1222  122
काफिया - ऐरा
रदीफ - हो गया है

गगन  भी  अब घनेरा हो गया है ।
बहुत  गहरा  अंधेरा  हो  गया है ।।

दिखा न कई दिनों से सूरज यहाँ ।
उजालों   पर  पहरा  हो गया है ।।

जिंदगी  वतन  के नाम करदी है ।
कफ़न ही अब सेहरा हो गया है ।।

हमारी आदत न बदली अभी तक ।
भले   दूजा  बसेरा  हो  गया  है ।।

जहाँ सजती रही पहले महफ़िलें ।
वहाँ  भूतों  का  डेरा  हो गया है ।।

चमक लेता है जुगनू हुनर  उसका ।
इंसा कोशिश में दुहरा हो गया है ।।
 
शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 3
बह्र - 1222 1222 1222
काफ़िया - ऐ
रदीफ - को

नही  है साथ में  कोई  भी चलने को ।
रखूंगा आस तुमसे मैं ही मिलने को ।।

सुना है तू शमा है रोज जलती है ।
मचलता हूँ तू आकर देख जलने को।

तुम्हारे प्यार की चाहत सदा खींचे ।
न रस्ता है न मंजिल है  ठहरने को ।।

बहुत ही आग सूरज अब उगलता है ।
लगी धरती सुबह ओ शाम जलने को ।।

जो पचपन से कभी सपने संजोये थे ।
यंहा वक्त कब मिलता ख्वाब बुनने को ।।

वन्देमातरम  नारा  कौन  कहता है ।
मिले अब रोज मुर्दाबाद सुनने को ।।

फना हो जाऊंगा मैं देश की खातिर ।
तिरंगे का कफ़न देना पहनने को ।।
                                     
शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 4
बहर-122 122 122 122
काफ़िया - आना
रदीफ़    -  हुआ है

तुम्हे देखकर अब जमाना हुआ है ।
तुम्ही से मिरा दिल लगाना हुआ है ।।

मुहब्बत में कुछ सूझता ही नही है ।
जहां में सभी  का फ़साना हुआ है ।।

चलो आज फिर दिल नया ढूंढ लाये ।
धड़कते  हुये  अब  पुराना  हुआ  है ।।

पलक आपकी आज बोझिल हुई है ।
सुना  है  कि  आंसू  बहाना  हुआ है ।।

जिसे  ढूंढता  रात  काफ़िर  रहा  था ।
उसी का ही मस्जिद में आना हुआ है ।।

पंछी तू चलाजा जि चाहे जहाँ तक ।
लिखा  पर  यही देख दाना हुआ है ।।

शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 5
काफ़िया:- आनी
रदीफ़:- नही है
बहर:- 122 122 122 122

जवां खून में अब रवानी नही है ।
मिटे देश पर वो जवानी नही है ।।

सताया गया हूं जमाने से फिर भी ।
किताबों में  मेरी  कहानी  नही है ।।

बिखेरो न जलवा युं हुस्ने बहारो ।
सुना है  अभी तू सयानी नही  है ।।

मिलेंगे न मोहन  किसी को जहां में ।
मीरा  सी  जगत  मे दिवानी नही है ।।

सजी  है  दुकाने  युं  हर  और  लोगों ।
किसी की भी आंखों में पानी नही है ।।

उजाड़ी  धरा  मौन  साधे  खड़ी है ।
लहरती चुनर उसकी धानी नही है ।।

शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 6
बह्र:- 222  221  122
काफ़िया:- आन
रदीफ़:- बहुत हैंं

कहने  को  इंसान बहुत हैं ।
पर दिल के शैतान बहुत हैं।।

पग पग  में हैं धोखे मिलते ।
घर  घर  बेईमान  बहुत हैं।।

पतझड़  जैसा  मेरा जीवन ।
जीने  का  अरमान बहुत हैंं।।

माँ   तुझको   मैं  भूलूं   कैसे ।
मुझ पर तो अहसान बहुत हैं ।।

फुटपाथों  पर  भीड़  लगी  है ।
कहने भर को मकान बहुत हैंं।।

ढोंगी   देखो  सन्त  बने  हैं ।
सजने लगी दुकान बहुत हैंं ।।

मुट्ठी  में  कर लूं  आसमां को ।
इस  दिल में अरमान बहुत हैंं।।

शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 7
बह्र - 1222×4
काफ़िया:- आया
रदीफ़:- है

जमाने  ने  सताया  है  कि  अपनों  ने  भुलाया है ।
जरा नादान दिल मेरा समझ अब तक न पाया है ।।

जिन्हें अपना बनाया था लिये हाथों मे खंजर हैं ।
किये  हैं  वार  पीछे  से  हमें  अक्सर रुलाया है ।।

करे जो प्यार से बातें वही दुश्मन हमारे हैं ।
पलट इतिहास को देखो कबीरा ने बताया है ।।

चले आओ शहर मेरे हमारा दिल नही लगता ।
वफ़ा की लाज तुम रखना तुम्हे हमने बुलाया है ।।

हमेशा दूर ही रखना दहकते इन चरागों को ।
बड़े मशहूर हैं किस्से इन्होंने घर जलाया है ।।

बड़े  मगरूर बैठे हैं लुटेरे जो सिंहासन पर ।
कमीने भूल हैं शायद तुम्हें हमने बिठाया है ।।

नही भूला हूं तुझको माँ तुम्हारी याद आती है ।
नसीबे हिस्से का खाना सदा मुझको खिलाया है ।।

शीतल प्रसाद

ग़ज़ल 8
बह्र :- 212  212  212
काफ़िया:- आ
रदीफ़:- दे मुझे

यार   अपना   पता   दे   मुझे ।
यूं  न  अब   तू  सजा  दे मुझे ।।

पीर   है   या   खुदा  वो  ही  है ।
कौन   है   तू   बता   दे   मुझे ।।

कौन जाने कि कब निकले दम ।
मैखाने से ले आ शै पिला दे मुझे ।।

मयकदा   मान   बैठा   तुम्हें ।
आँख  से  मय  पिला दे मुझे।।

जंग    जीती    हमेशा    मैंने ।
कौन   है   जो   हरा  दे  मुझे ।।

चाहता   हूं    उसे    भूलना ।
आज   ऐसी   दवा   दे  मुझे ।।

बेवफाई   न   करना   कभी ।
राज  दिल  के  बता  दे मुझे ।।

प्यार  में  बहुत  धोखे  मिले ।
तू  कही  ना  भूला  दे  मुझे ।।

शीतल प्रसाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.