वक़्त रूठा है मेरी माई से
चूड़ियाँ छीन लीं कलाई से।
अपने कपड़ों प् नाज़ था जिसको
पेट भरती है अब सिलाई से।
कितनी अज़्मत ख़ुदा ने बख़्शी है
झुक के पर्वत मिला है राई से।
ऐसी दौलत प् भेजिए लानत
जिसने नफ़रत करा दी भाई से।
उस पुजारी की आस्था झूठी
प्यार करता नही जो माई से।
आपको छोड़ देगी वो लड़की
आप डरते हो जग हँसाई से।
- रघुनंदन शर्मा "दानिश"
जबलपुर (म०प्र०)
बहुत खूब
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