हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

सोमवार, 25 जून 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में राजेन्द्र कुमार गुप्त 'बावरा' की कुछ ग़ज़लेंं

ग़ज़ल 1

आदमी  तो  दुखी  ही  रहा ।
दर्द   से   होंठ  है  सी  रहा ।।

ऐ   चमन   के  पुजारी  बता ।
देवता  बन   कही  भी  रहा ।।

अपने  मक्कारियों   मे  पँगा ।
चाल  चलता  फितरती  रहा ।।

हर  तरफ  तिशनगी है जगी ।
एक  दूजे  का  खू  पी  रहा ।।

बीज  नफरत  की  बोता  फिरे ।
मीत   बन   कर   फरेबी   रहा ।।

चाँद - मंगल  तलक  जो गया ।
खौफ   के  साये  में  जी  रहा ।।

आईने  दिल  को  बेपर्द  कर ।
'बावरा'  पर्दा  क्यों  सी  रहा ।।

© राजेन्द्र कुमार गुप्त 'बावरा'

ग़ज़ल 2

कहते  हो  लापता  है,  जाहिर  पता  हमारा ।
दुश्वारियों   ने   ठोकर,  दे   दे   हमे   दुलारा ।।

जो   धूल  में  मिले  है,  थे  फूल  वो  चमन  के ।
किसने  इन्हें  है  मसला, क्या  दोष  है  निहारा ।।

हँसना  अगर  बुरा  है,  रोने  पर  क्यो  है  बंदिश ।
रहता   हूं   हाशिये   में,  ले   भाग्य  का  पिटारा ।।

नफरत  की  आग  बोकर  पाओगे  क्या  बता दो ।
मिल्लत  की   ये  वशियत,  सारे  जहा  से  न्यारा ।।

कहते   हो  शूल  बन कर  पावो  में  चुभ  रहे  है ।
कैमूरी   'बावरा'   हु    छीनो   न   हक   हमारा ।।


ग़ज़ल 3
212   212  212 

फूलोंं   को   तोड   लाना   कैसा ।
कांटो   से  खुद   बचाना   कैसा ।।

अर्श   पे   छाने  वाले  बोलो ।
फर्श   पे   तेरा  आना  कैसा ।।

खोद  दी  गहरी  खाई  तो फिर ।
डरना  क्या  और  डरना  कैसा ।।

भूख  की खलती जब आग हो ।
घड़ियाली  ऑंसू  बहना  कैसा ।।

भ्रम   की   जो   सुई   से   सिला ।
जख़्म  का  मिट  ही  पाना कैसा ।।

बावरा     उन्मादी    आक़ा   पर ।
ये  ख़ंजर  चल  ही  जाना  कैसा ।।



ग़ज़ल 4

जिन्दगी गणित जैसा दर्द बड़ा गहरा है।
आस्तिनी  सापों का लगा हुआ पहरा है ।।

कौन जाने द्रोपदी की चींख कोई सुन पाए ।
रेत  जैसा  प्रीत  लिए  कृष्ण  हुआ भरा है ।।

शोर   बड़ा   गलियों  में   चौराहे  अंंजान ।
मरघटी  सन्नाटे  को  चीर  रहा  लहरा  है ।।

बुझ   रहे   आशा  के  दीप  हर  दरवाजे ।
गूँज रहा घर घर जयचन्द का ककहरा है ।।

कैसे यहाँ भाव करें भावना के खंडहर में ।
छीनता  उजाला  को अमावस बेबहरा है ।।

बावरा  अशोक  वाटिका  में  बैठी  जानकी ।
काल जयी रावण का खोफ खाता खतरा है ।।


ग़ज़ल 5

पर्वत  की  चोटी  से  पूछो  सागर  की गहराई से ।
रेतीली ममता से पूछो डीआरएस भरी तन्हाई से।।

कट कट गिरते लोग जल रहे बारूदी अंगारो से ।
विधवा की माँँगों से पूछो उजड़े कोख जम्हाई से।।

नफरत की दीवार उठाते जहाँ जेहादी गारो से ।
ऐसे में अनुराग से पूछो राग द्वेष की खाई से ।।

कंकालों से पति मेधना उजड़ गई लंका कैसे ।
लंका पति रावण से पूछो या इस तानाशाही से ।।

चोर  की  दाढ़ी  में तिनके से पूछो शहंशाहों से ।
बावरा रहते शीशमहल में सदा बहार बहाई से ।।


ग़ज़ल 6

दरियों  में  नही  हलचल,सुना है किनारा ।
क्या  बात  हुई  तुरबत  ने,  पाँव पसारा ।।

दहशत   में   समाया   है,  रौनुमा  सवेरा ।
सजदा  करु  कहाँ मैं, ऊँचा चढ़ा है पारा ।।

पत्थर से नशब करते  हैं  खून  के छीटेंं ।
अमन औ चमन लौटे कैसे , चैन दुवारा ।।

मतलब-परस्त लोगो कुछ तो विचार करलो ।
है   जादुई   करिश्मा,   या   जादुई  नज़ारा ।।


महफूज  गुलिश्ता  है  काँटों  की  बंदिशे  है ।
गर  'बावरा'  बनोगे  उजड़ेगा   घर  तुम्हारा ।।


ग़ज़ल 7

कोई  शिकवा  नही बहारोंं से ।
कोई  रुसवाई  नही  खारोंं से ।।

फानी दरिया से उठती लहरें है ।
मिट  न  जाये कही किनारोंं से ।।

मै  हूं  तेरी  वफ़ा  का  शैदाई ।
फिर भी हरजाई कहते तारों से।।

तेरी रहमत बरसती है हर शै पर ।
जीना   मरना   इन्ही  इशारोंं  से ।।

दर्द  दिल  ने  पिया  दवा  समझ ।
'बावरा' मिलता  दुआ  प्यारोंं  से ।।


ग़ज़ल 8

शाकी ! यह मैखाना कैसा ।
अपना  और बेगाना कैसा ।।

भीड़  तंत्र  के  इन  हाथो  में ।
बजता  बिगुल  तराना  कैसा ।।

कूक  कोकिला  तोड़  रही  दम ।
आखिर   यह   याराना  कैसा ।।

पवन  कह  रहा  बुझे  हुए  मन ।
तिनकों   का  उड़  जाना कैसा ।।

बिकते  जिस्म   से  तो  पूछो ।
उनका   ठौर   ठीकाना  कैसा ।।

फैला है  उन्माद  धरा  पर ।
फिर आंसू धरकाना कैसा ।।

'बावरा'बिधवा सी देहरी पर ।
सागर  का  लहराना  कैसा ।।

राजेन्द्र कुमार गुप्त 'बावरा'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.