धमकी ! धमकी ! गीदड़ भभकी, देते हैं हमको रोज़-रोज़.
हाथों में थामे रहते हम, जैतून-शाख, मैत्री-सरोज.
आये दिन शांति कपोतों का, बढ़-बढ़कर क़त्ल किया जाता.
भारत के सभी प्रयासों को, नफरत से टाल दिया जाता.
दुष्टों को उनकी भाषा में, उत्तर तो देना ही होगा.
फूलों की जगह करों में अब, शूलों को लेना ही होगा.
कुछ दिन त्यागो भी भक्तिभाव, हो सैन्यभाव से ओतप्रोत.
अब तक नहरू के देखे हैं, दिखलाओ भोले के कपोत.
जैसे सैनिक के कटे शीश वैसे अब इनके शीश काट.
भर-भर रुण्डों के ढेरों से कर दो घाटी समतल सपाट.
हर-हर बम-बम के नारों से शीतल समीर हरहरा उठे.
वह स्वर, वह कम्पन नाद जगे थरथर बैरी थरथरा उठे.
हाथों में धारो अस्त्र-शस्त्र, गंगाजल का करवा धर दो.
भक्तो ! घाटी का श्वेत-श्वेत कण-कण रक्तिम-भगवा कर दो.
हो सिंह अगर तो सिद्ध करो यह भभकी और नहीं सहनी.
सदियों से अमरनाथ ने भी मुण्डों की माल नहीं पहनी.
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ
जिंदाबाद जिंदाबाद
जवाब देंहटाएंजय हो