हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

शनिवार, 23 जून 2018

धमकी ! धमकी ! गीदड़ भभकी, देते हैं

धमकी ! धमकी ! गीदड़ भभकी, देते हैं हमको रोज़-रोज़.
हाथों में थामे रहते हम, जैतून-शाख, मैत्री-सरोज.
आये दिन शांति कपोतों का, बढ़-बढ़कर क़त्ल किया जाता.
भारत के सभी प्रयासों को, नफरत से टाल दिया जाता.
दुष्टों को उनकी भाषा में, उत्तर तो देना ही होगा.
फूलों की जगह करों में अब, शूलों को लेना ही होगा.
कुछ दिन त्यागो भी भक्तिभाव, हो सैन्यभाव से ओतप्रोत.
अब तक नहरू के देखे हैं, दिखलाओ भोले के कपोत.
जैसे सैनिक के कटे शीश वैसे अब इनके शीश काट.
भर-भर रुण्डों के ढेरों से कर दो घाटी समतल सपाट.
हर-हर बम-बम के नारों से शीतल समीर हरहरा उठे.
वह स्वर, वह कम्पन नाद जगे थरथर बैरी थरथरा उठे.
हाथों में धारो अस्त्र-शस्त्र, गंगाजल का करवा धर दो.
भक्तो ! घाटी का श्वेत-श्वेत कण-कण रक्तिम-भगवा कर दो.
हो सिंह अगर तो सिद्ध करो यह भभकी और नहीं सहनी.
सदियों से अमरनाथ ने भी मुण्डों की माल नहीं पहनी.

आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ

1 टिप्पणी:

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.