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शनिवार, 9 जून 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश" की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल 1
वज़्न--2122 1212 22
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लें क्या

दूरियाँ  दूर  यार  कर  लें  क्या ?
नफ़रतें छोड़ प्यार कर लें क्या ?

फ़ासले तो मिटे मिटाने से ।
सरहदें आज पार कर लें क्या ?

जो यहाँ साथ मिला है हमको ।
पतझड़ों में बहार कर लें क्या ?

लौ हवायें बुझा नहीं सकती ।
आँधियों से करार कर लें क्या ?

वो इधर लौट के चला आये ।
तो यहीं इन्तजार कर लें क्या ?

डॉ सर्वेशानन्द 'सर्वेश'

ग़ज़ल 2
वज़्न--212 1212 1212 1212
काफ़िया - इयाँ
रदीफ़ - कभी कभी

ढूँढता रहा मिलीं  निशानियाँ  कभी कभी ।
दूरियाँ लिखा गयीं, कहानियाँ कभी कभी ।।

बेवशी कभी  तबाहियाँ  बयाँ न कर  सकी ।
सिसकियाँ कहें दबी तल्खियाँ  कभी कभी ।।

गम मिला  बहार  भी,  हज़ार  रंग दे  गयीं ।
झुर्रियाँ लिये दिखीं जवानियाँ कभी कभी ।।

आज तक लिखा कभी गर अपना दौर आदमी ।
खूबियाँ लिखी बड़ी कि खामियाँ कभी कभी ।।

देख दर  किसी  मिले,  दुखी  बयार आँधियाँ ।
बाँट जा  वहीं  ढली  उदासियाँ कभी कभी ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"

गज़ल 3
वज़्न- २१२२  २१२२  २१२२  २१२२
काफ़िया - आनी
रदीफ़ - बात ऐसी

कह नहीं पाता किसी से खुद ज़ुबानी बात ऐसी ।
हर किसी के दिल बनाये है निशानी बात ऐसी ।।

थी हमारी हार में या जीत में ग़ुमनाम बनकर ।
जिंदगी  को  दे  रही है जो रवानी बात ऐसी ।।

हर  घड़ी  परछाइयों  सी  डोर  बाँधे घूमती है ।
हमसफ़र  बन साथ रहती है पुरानी  बात ऐसी ।।

जब कई रिश्ते बचाने को कभी दिल चाहता है ।
बेजुबाँ  सबको  बनाती  खानदानी  बात ऐसी ।।

है नवाजिश बस उसी की राज भी 'सर्वेश' जाने ।
पास गुमशुम लिख रही है एक कहानी बात ऐसी ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"

ग़ज़ल 4
वज़्न--२१२२  २१२२  २१२२  २१२
काफ़िया - आयें
रदीफ़  - जिन्दगी के खेल में

रंजिशें - गम  भूल जायें जिन्दगी  के  खेल में ।
खुद हसें सबको हसायें जिन्दगी  के  खेल में ।।

हर मनुज का है तरीका मान भी अभिमान भी ।
ना किसी को आजमायें जिन्दगी के खेल में ।।

दिल्लगी  में रूठ जाये कोई हमसे बेवज़ह ।
वक्त पर उनको मनायें जिन्दगी के खेल में ।।

खेल जब तक चल रहा है, कौन छोटा या बड़ा ।
कौन पत्ता काम आयेंं  जिन्दगी  के  खेल में ।।

मोहरों की चाल पल में बदल सकती जीत को ।
कब  न  बाज़ी  हार  जायें जिन्दगी के खेल में ।।

कह सके परपीर की गज़लें सिसकती बहर भी ।
गीत  ऐसा  गुनगुनायें  जिन्दगी  के  खेल  में ।।

हर खिलाड़ी पर नज़र, रखता वही "सर्वेश" है ।
फैसला  वो  कब  सुनायेंं  जिन्दगी के खेल में ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"

ग़ज़ल 5
वज़्न-  २१२  २१२  २१२
काफ़िया - आने
रदीफ़  - लगी

जब  कली मुस्कुराने लगी ।
तितलियाँ लौट आने लगीं ।।

फिर बनाने लगीं आशियाँ ।
गीत एक गुनगुनाने लगीं ।।

तीर  कब से चलाती रहीं ।
आज जाके निशाने लगी ।।

मौन ढोती हुयी सिसकियाँ ।
आसुओं  से  नहाने  लगीं ।।

सांच पूछा कि 'सर्वेश' ने  ।
बात  झूठी  बनाने  लगीं ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"

ग़ज़ल 6
वज़्न--२१२२  २१२२
काफ़िया - अर
रदीफ़  -  में

याद  तेरी  रख ज़िगर में ।
लौट आया फिर शहर में ।।

था  मुझे   मालूम  करना ।
वो कहानी किस असर में ।।

है  यहाँ बदला हुआ सब ।
अज़नबी हूँ हर नज़र में ।।

तो भला पूछूं ये किससे ।
नाम तेरा किसके घर में ।।

मैं   लगा   बस   ढूंढने  में ।
तूँ कि खोने की फ़िकर में ।।

ढूंढते   रहना  है  मुझको ।
बेबसी  ढाती  लहर    में ।।

फैसला    'सर्वेश'    जाने  ।
कब मिलोगे किस पहर में ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश "

ग़ज़ल  7
वज़्न--२२१२  २२१२  २२१२  २२१२
काफ़िया - आत
रदीफ़  - तुमसे छीन ले

गम ना करो हालात गर  हालात  तुमसे छीन ले ।
जिसमें तुम्हारी हो  खुशी वो बात तुमसे छीन ले ।।

लाये  कभी  गर  जिंदगी  आफ़ात  ऐसे मोड़ पर ।
दर मंजिलें उलझी दिखें शुरुआत तुमसे छीन ले ।।

जो  हर  घड़ी  दिन रात तेरा बन सहारा साथ था ।
जब मुश्किलों के दरमियाँ ही साथ तुमसे छीन ले ।।

कोई  घनेरी  रात  ही एहसास  को  साझा  करे ।
तेरे ख़यालों  की  वही  एक  रात  तुमसे  छीन ले ।।

तूँ हौंसला रख फिर चलाचल अटल अपनी राह पर ।
बस कर दुआ "सर्वेश" ना ये जज़्बात तुमसे छीन ले ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"

ग़ज़ल 8
वज़्न -1222 1222 1222
काफ़िया - आरों
रदीफ़  - में करें बातें

खड़े  रहकर  हज़ारों  में  करें  बातें ।
चलो  अब  हम  इशारों में करें बातें ।।

रहें  सब  बेखबर  यूँ  पास  रहकर भी ।
नजर  के  ही  नज़ारों  में  करें बातें ।।

न  कोई  ढूँढ पाये  दूर  तक चलना ।
कि  खोये  चाँद  तारों  में  करें बातें ।।

खुशी का सिलसिला कब जिन्दगी लाये ।
गमों  के   इन   बयारों   में   करें  बातें ।।

बचें   या   डूब  जायें  साथ  रहना है ।
भँवर  की  तेज  धारों  में  करें  बातें ।।

डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"

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