ग़ज़ल 1
वज़्न--2122 1212 22
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लें क्या
दूरियाँ दूर यार कर लें क्या ?
नफ़रतें छोड़ प्यार कर लें क्या ?
फ़ासले तो मिटे मिटाने से ।
सरहदें आज पार कर लें क्या ?
जो यहाँ साथ मिला है हमको ।
पतझड़ों में बहार कर लें क्या ?
लौ हवायें बुझा नहीं सकती ।
आँधियों से करार कर लें क्या ?
वो इधर लौट के चला आये ।
तो यहीं इन्तजार कर लें क्या ?
डॉ सर्वेशानन्द 'सर्वेश'
ग़ज़ल 2
वज़्न--212 1212 1212 1212
काफ़िया - इयाँ
रदीफ़ - कभी कभी
ढूँढता रहा मिलीं निशानियाँ कभी कभी ।
दूरियाँ लिखा गयीं, कहानियाँ कभी कभी ।।
बेवशी कभी तबाहियाँ बयाँ न कर सकी ।
सिसकियाँ कहें दबी तल्खियाँ कभी कभी ।।
गम मिला बहार भी, हज़ार रंग दे गयीं ।
झुर्रियाँ लिये दिखीं जवानियाँ कभी कभी ।।
आज तक लिखा कभी गर अपना दौर आदमी ।
खूबियाँ लिखी बड़ी कि खामियाँ कभी कभी ।।
देख दर किसी मिले, दुखी बयार आँधियाँ ।
बाँट जा वहीं ढली उदासियाँ कभी कभी ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
गज़ल 3
वज़्न- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
काफ़िया - आनी
रदीफ़ - बात ऐसी
कह नहीं पाता किसी से खुद ज़ुबानी बात ऐसी ।
हर किसी के दिल बनाये है निशानी बात ऐसी ।।
थी हमारी हार में या जीत में ग़ुमनाम बनकर ।
जिंदगी को दे रही है जो रवानी बात ऐसी ।।
हर घड़ी परछाइयों सी डोर बाँधे घूमती है ।
हमसफ़र बन साथ रहती है पुरानी बात ऐसी ।।
जब कई रिश्ते बचाने को कभी दिल चाहता है ।
बेजुबाँ सबको बनाती खानदानी बात ऐसी ।।
है नवाजिश बस उसी की राज भी 'सर्वेश' जाने ।
पास गुमशुम लिख रही है एक कहानी बात ऐसी ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 4
वज़्न--२१२२ २१२२ २१२२ २१२
काफ़िया - आयें
रदीफ़ - जिन्दगी के खेल में
रंजिशें - गम भूल जायें जिन्दगी के खेल में ।
खुद हसें सबको हसायें जिन्दगी के खेल में ।।
हर मनुज का है तरीका मान भी अभिमान भी ।
ना किसी को आजमायें जिन्दगी के खेल में ।।
दिल्लगी में रूठ जाये कोई हमसे बेवज़ह ।
वक्त पर उनको मनायें जिन्दगी के खेल में ।।
खेल जब तक चल रहा है, कौन छोटा या बड़ा ।
कौन पत्ता काम आयेंं जिन्दगी के खेल में ।।
मोहरों की चाल पल में बदल सकती जीत को ।
कब न बाज़ी हार जायें जिन्दगी के खेल में ।।
कह सके परपीर की गज़लें सिसकती बहर भी ।
गीत ऐसा गुनगुनायें जिन्दगी के खेल में ।।
हर खिलाड़ी पर नज़र, रखता वही "सर्वेश" है ।
फैसला वो कब सुनायेंं जिन्दगी के खेल में ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 5
वज़्न- २१२ २१२ २१२
काफ़िया - आने
रदीफ़ - लगी
जब कली मुस्कुराने लगी ।
तितलियाँ लौट आने लगीं ।।
फिर बनाने लगीं आशियाँ ।
गीत एक गुनगुनाने लगीं ।।
तीर कब से चलाती रहीं ।
आज जाके निशाने लगी ।।
मौन ढोती हुयी सिसकियाँ ।
आसुओं से नहाने लगीं ।।
सांच पूछा कि 'सर्वेश' ने ।
बात झूठी बनाने लगीं ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 6
वज़्न--२१२२ २१२२
काफ़िया - अर
रदीफ़ - में
याद तेरी रख ज़िगर में ।
लौट आया फिर शहर में ।।
था मुझे मालूम करना ।
वो कहानी किस असर में ।।
है यहाँ बदला हुआ सब ।
अज़नबी हूँ हर नज़र में ।।
तो भला पूछूं ये किससे ।
नाम तेरा किसके घर में ।।
मैं लगा बस ढूंढने में ।
तूँ कि खोने की फ़िकर में ।।
ढूंढते रहना है मुझको ।
बेबसी ढाती लहर में ।।
फैसला 'सर्वेश' जाने ।
कब मिलोगे किस पहर में ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश "
ग़ज़ल 7
वज़्न--२२१२ २२१२ २२१२ २२१२
काफ़िया - आत
रदीफ़ - तुमसे छीन ले
गम ना करो हालात गर हालात तुमसे छीन ले ।
जिसमें तुम्हारी हो खुशी वो बात तुमसे छीन ले ।।
लाये कभी गर जिंदगी आफ़ात ऐसे मोड़ पर ।
दर मंजिलें उलझी दिखें शुरुआत तुमसे छीन ले ।।
जो हर घड़ी दिन रात तेरा बन सहारा साथ था ।
जब मुश्किलों के दरमियाँ ही साथ तुमसे छीन ले ।।
कोई घनेरी रात ही एहसास को साझा करे ।
तेरे ख़यालों की वही एक रात तुमसे छीन ले ।।
तूँ हौंसला रख फिर चलाचल अटल अपनी राह पर ।
बस कर दुआ "सर्वेश" ना ये जज़्बात तुमसे छीन ले ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 8
वज़्न -1222 1222 1222
काफ़िया - आरों
रदीफ़ - में करें बातें
खड़े रहकर हज़ारों में करें बातें ।
चलो अब हम इशारों में करें बातें ।।
रहें सब बेखबर यूँ पास रहकर भी ।
नजर के ही नज़ारों में करें बातें ।।
न कोई ढूँढ पाये दूर तक चलना ।
कि खोये चाँद तारों में करें बातें ।।
खुशी का सिलसिला कब जिन्दगी लाये ।
गमों के इन बयारों में करें बातें ।।
बचें या डूब जायें साथ रहना है ।
भँवर की तेज धारों में करें बातें ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
वज़्न--2122 1212 22
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लें क्या
दूरियाँ दूर यार कर लें क्या ?
नफ़रतें छोड़ प्यार कर लें क्या ?
फ़ासले तो मिटे मिटाने से ।
सरहदें आज पार कर लें क्या ?
जो यहाँ साथ मिला है हमको ।
पतझड़ों में बहार कर लें क्या ?
लौ हवायें बुझा नहीं सकती ।
आँधियों से करार कर लें क्या ?
वो इधर लौट के चला आये ।
तो यहीं इन्तजार कर लें क्या ?
डॉ सर्वेशानन्द 'सर्वेश'
ग़ज़ल 2
वज़्न--212 1212 1212 1212
काफ़िया - इयाँ
रदीफ़ - कभी कभी
ढूँढता रहा मिलीं निशानियाँ कभी कभी ।
दूरियाँ लिखा गयीं, कहानियाँ कभी कभी ।।
बेवशी कभी तबाहियाँ बयाँ न कर सकी ।
सिसकियाँ कहें दबी तल्खियाँ कभी कभी ।।
गम मिला बहार भी, हज़ार रंग दे गयीं ।
झुर्रियाँ लिये दिखीं जवानियाँ कभी कभी ।।
आज तक लिखा कभी गर अपना दौर आदमी ।
खूबियाँ लिखी बड़ी कि खामियाँ कभी कभी ।।
देख दर किसी मिले, दुखी बयार आँधियाँ ।
बाँट जा वहीं ढली उदासियाँ कभी कभी ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
गज़ल 3
वज़्न- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
काफ़िया - आनी
रदीफ़ - बात ऐसी
कह नहीं पाता किसी से खुद ज़ुबानी बात ऐसी ।
हर किसी के दिल बनाये है निशानी बात ऐसी ।।
थी हमारी हार में या जीत में ग़ुमनाम बनकर ।
जिंदगी को दे रही है जो रवानी बात ऐसी ।।
हर घड़ी परछाइयों सी डोर बाँधे घूमती है ।
हमसफ़र बन साथ रहती है पुरानी बात ऐसी ।।
जब कई रिश्ते बचाने को कभी दिल चाहता है ।
बेजुबाँ सबको बनाती खानदानी बात ऐसी ।।
है नवाजिश बस उसी की राज भी 'सर्वेश' जाने ।
पास गुमशुम लिख रही है एक कहानी बात ऐसी ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 4
वज़्न--२१२२ २१२२ २१२२ २१२
काफ़िया - आयें
रदीफ़ - जिन्दगी के खेल में
रंजिशें - गम भूल जायें जिन्दगी के खेल में ।
खुद हसें सबको हसायें जिन्दगी के खेल में ।।
हर मनुज का है तरीका मान भी अभिमान भी ।
ना किसी को आजमायें जिन्दगी के खेल में ।।
दिल्लगी में रूठ जाये कोई हमसे बेवज़ह ।
वक्त पर उनको मनायें जिन्दगी के खेल में ।।
खेल जब तक चल रहा है, कौन छोटा या बड़ा ।
कौन पत्ता काम आयेंं जिन्दगी के खेल में ।।
मोहरों की चाल पल में बदल सकती जीत को ।
कब न बाज़ी हार जायें जिन्दगी के खेल में ।।
कह सके परपीर की गज़लें सिसकती बहर भी ।
गीत ऐसा गुनगुनायें जिन्दगी के खेल में ।।
हर खिलाड़ी पर नज़र, रखता वही "सर्वेश" है ।
फैसला वो कब सुनायेंं जिन्दगी के खेल में ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 5
वज़्न- २१२ २१२ २१२
काफ़िया - आने
रदीफ़ - लगी
जब कली मुस्कुराने लगी ।
तितलियाँ लौट आने लगीं ।।
फिर बनाने लगीं आशियाँ ।
गीत एक गुनगुनाने लगीं ।।
तीर कब से चलाती रहीं ।
आज जाके निशाने लगी ।।
मौन ढोती हुयी सिसकियाँ ।
आसुओं से नहाने लगीं ।।
सांच पूछा कि 'सर्वेश' ने ।
बात झूठी बनाने लगीं ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 6
वज़्न--२१२२ २१२२
काफ़िया - अर
रदीफ़ - में
याद तेरी रख ज़िगर में ।
लौट आया फिर शहर में ।।
था मुझे मालूम करना ।
वो कहानी किस असर में ।।
है यहाँ बदला हुआ सब ।
अज़नबी हूँ हर नज़र में ।।
तो भला पूछूं ये किससे ।
नाम तेरा किसके घर में ।।
मैं लगा बस ढूंढने में ।
तूँ कि खोने की फ़िकर में ।।
ढूंढते रहना है मुझको ।
बेबसी ढाती लहर में ।।
फैसला 'सर्वेश' जाने ।
कब मिलोगे किस पहर में ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश "
ग़ज़ल 7
वज़्न--२२१२ २२१२ २२१२ २२१२
काफ़िया - आत
रदीफ़ - तुमसे छीन ले
गम ना करो हालात गर हालात तुमसे छीन ले ।
जिसमें तुम्हारी हो खुशी वो बात तुमसे छीन ले ।।
लाये कभी गर जिंदगी आफ़ात ऐसे मोड़ पर ।
दर मंजिलें उलझी दिखें शुरुआत तुमसे छीन ले ।।
जो हर घड़ी दिन रात तेरा बन सहारा साथ था ।
जब मुश्किलों के दरमियाँ ही साथ तुमसे छीन ले ।।
कोई घनेरी रात ही एहसास को साझा करे ।
तेरे ख़यालों की वही एक रात तुमसे छीन ले ।।
तूँ हौंसला रख फिर चलाचल अटल अपनी राह पर ।
बस कर दुआ "सर्वेश" ना ये जज़्बात तुमसे छीन ले ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
ग़ज़ल 8
वज़्न -1222 1222 1222
काफ़िया - आरों
रदीफ़ - में करें बातें
खड़े रहकर हज़ारों में करें बातें ।
चलो अब हम इशारों में करें बातें ।।
रहें सब बेखबर यूँ पास रहकर भी ।
नजर के ही नज़ारों में करें बातें ।।
न कोई ढूँढ पाये दूर तक चलना ।
कि खोये चाँद तारों में करें बातें ।।
खुशी का सिलसिला कब जिन्दगी लाये ।
गमों के इन बयारों में करें बातें ।।
बचें या डूब जायें साथ रहना है ।
भँवर की तेज धारों में करें बातें ।।
डॉ सर्वेशानन्द "सर्वेश"
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