ग़ज़ल 1
वज्न - 2122 2122 212
काफिया - आज
रदीफ - है
आदमी ही आदमी का राज है ।
अब तो खुद पर ही गिराता गाज है ।।
नाज से पाले कुलों के दीप को ।
आज भी इन बेटियों पे नाज है ।।
हँस के जो दी लटों को फेंक वो ।
आह भर वे कहते क्या आगाज़ है ।।
कान में आकर कही ये जिंदगी ।
गैर की आवारगी ही ख़ाज है ।।
लोक तंत्र में नसीहत पाक है ।
इस हरम में न्याय भी नाराज़ है ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 2
वज्न - 2122 2122 212
क़ाफिया- अत स्वर
रदीफ - हो गई
आसमाँँ से ही कयामत हो गई ।
आदमी से ही शरारत हो गई ।।
तारीखें तो यूँ बदलती हैं ऐसे ।
मौज़ से भारी बगावत हो गई ।।
हो गयी तंगी फुर्सत की लो जरा ।
रौशनी की तब जलालत हो गई ।।
ना रहो मगरूर खुद में तुम कभी ।
रुसवाई की अब इजाजत हो गई।।
आपने जो देख़ के नज़रें फेर ली।
आप से हमको मोहब्बत हो गई ।।
चंद आँसू और यादें आपकी ।
जिंदगी की तो अमानत हो गई ।।
राह में थामे चले जो अंगुली ।
फ़क़्त रुसवाई की आदत हो गई ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 3
वज्न 122 122 122 122
क़ाफिया -ई
रदीफ-कहेगी
शराफ़त तुम्हारी कहानी कहेगी।
फ़साना बना के रवानी कहेगी ।।
अदायें तुम्हारी ये मौसम सुहाना ।
फ़ना हो गये तो दिवानी कहेगी ।।
तुम्हारी जवानी अमानत रहेगी ।
हमारी नगीना निशानी कहेगी ।।
तख़ातुब नहीं हो कहीं नाम मेरा ।
यही आऱजू है सुहानी कहेगी ।।
जब्र का ज़हर साधना मत पियो तुम ।
तड़प के यही जिंदगानी कहेगी ।।
तख़ातुब - पता
जब्र - मजबूरी
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 4
वज्न - 122 122 122 22
काफिया - अर
रदीफ - जाओगे
जो तुम बचके हमसें निकल जाओगे ।
हमें देखतें ही ठहर जाओगे ।।
अज़ब नूर है इस चमन में ये हमदम ।
अगर तुम समेटे बिखर जाओगे ।।
अंजामे - मुहब्बत का होगा जग जाहिर ।
लेकर दर्द तुम फिर किधर जाओगे ।।
चढ़ेगी जो तलवार पर गर्दन फिर ।
तभी तुम वादा से मुकर जाओगे ।।
ख्वाबों को सजा अपनी पलकों पर ।
सुनों तुम भी खुद ही निखर जाओगे ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 5
बह्र - 22 2122 2122 122
काफ़िया - आना
रद़ीफ़ - हुआ है
मेरे चाँद का जग ये दिवाना हुआ है ।
वो तो जान बुझ ही अंजाना हुआ है ।।
रूठी हो हया ही जिससे आखिर भला क्यूँ ।
तब लगता जमाना ही बेगाना हुआ है ।।
भादों की तरह बरसे ये आँखें हमारी ।
इनको है वहम मौसम सुहाना हुआ है ।।
जिन्हें भूलने की हर कोशिशें ना हुई कम ।
देखो किस तरह नज़रें चुराना हुआ है ।।
जबसे हो गये मगरूर वो मुझसे अब तो ।
तेरे ही ख्यालों में आना जाना हुआ है ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 6
वज्न - 2122 2122 212
काफ़िया - आने
रदीफ़ - हो गये
लोग मजहब के दीवाने हो गये ।
पास रहकर भी बेगाने हो गये ।।
रोज मस्जिद में जा कर मांगे दुआ ।
ख़्याल उनके अब पुराने हो गये ।।
कब तलक दूहोगे तुम इस अवनि को ।
अब ख़ाली तमाम ख़जाने हो गये ।।
मतलबे परस्ती पे जिन्हें नाज़ हैं ।
लापता जीने के फसाने हो गये ।।
आ के कहता ख्याल तेरा यूं मुझे ।
तुझसे बिछडें अब जमाने हो गये ।।
बंद है अब खिड़कियाँ उसके घर की ।
खत्म सारे ही बहाने हो गये ।।
तंगहाली के जमाने में अब ।
यूँ लगे सपने सयाने हो गये ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 7
वज्न - 1222 1222
काफ़िया - आती
रदीफ़ - है
शज़र से बहाती है ।
हवा ठंड़ी सुहाती है ।।
नियति देखो मिट्टी की अब ।
यादें कितना सताती है ।।
वादा कोई निभाता कब ।
बातें तेरी लुभाती है ।।
नज़र झुक तो न सकती पर ।
कसम फिर याद आती है ।।
कशिश हो गर दिलों में तब ।
मिलन की आस आती है ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 8
वज्न - 222 222 12
काफ़िया - आर
रदीफ़ - है
यादों का कारोबार है ।
जीवन कैसा ये खार है ।।
अहसासों की दहलीज़ पर ।
आशाओं का दरबार है ।।
जग झूठा औ तू ही सच्चा ।
मुझको तुझसे ही प्यार है ।।
मतलब का है नाता यहाँ ।
खुदगरजी का बाज़ार है ।।
अपना लो या तुम ठुकरा दो ।
यह दिल अब तो ख़ाकसार है ।।
आँखो में झांको एक दफ़ा ।
दिल मेरा तो गुलजार है ।।
कैसे कह दूँ सब ठीक है ।
झगड़ो का अब अख़बार है ।।
साधना कृष्ण
वज्न - 2122 2122 212
काफिया - आज
रदीफ - है
आदमी ही आदमी का राज है ।
अब तो खुद पर ही गिराता गाज है ।।
नाज से पाले कुलों के दीप को ।
आज भी इन बेटियों पे नाज है ।।
हँस के जो दी लटों को फेंक वो ।
आह भर वे कहते क्या आगाज़ है ।।
कान में आकर कही ये जिंदगी ।
गैर की आवारगी ही ख़ाज है ।।
लोक तंत्र में नसीहत पाक है ।
इस हरम में न्याय भी नाराज़ है ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 2
वज्न - 2122 2122 212
क़ाफिया- अत स्वर
रदीफ - हो गई
आसमाँँ से ही कयामत हो गई ।
आदमी से ही शरारत हो गई ।।
तारीखें तो यूँ बदलती हैं ऐसे ।
मौज़ से भारी बगावत हो गई ।।
हो गयी तंगी फुर्सत की लो जरा ।
रौशनी की तब जलालत हो गई ।।
ना रहो मगरूर खुद में तुम कभी ।
रुसवाई की अब इजाजत हो गई।।
आपने जो देख़ के नज़रें फेर ली।
आप से हमको मोहब्बत हो गई ।।
चंद आँसू और यादें आपकी ।
जिंदगी की तो अमानत हो गई ।।
राह में थामे चले जो अंगुली ।
फ़क़्त रुसवाई की आदत हो गई ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 3
वज्न 122 122 122 122
क़ाफिया -ई
रदीफ-कहेगी
शराफ़त तुम्हारी कहानी कहेगी।
फ़साना बना के रवानी कहेगी ।।
अदायें तुम्हारी ये मौसम सुहाना ।
फ़ना हो गये तो दिवानी कहेगी ।।
तुम्हारी जवानी अमानत रहेगी ।
हमारी नगीना निशानी कहेगी ।।
तख़ातुब नहीं हो कहीं नाम मेरा ।
यही आऱजू है सुहानी कहेगी ।।
जब्र का ज़हर साधना मत पियो तुम ।
तड़प के यही जिंदगानी कहेगी ।।
तख़ातुब - पता
जब्र - मजबूरी
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 4
वज्न - 122 122 122 22
काफिया - अर
रदीफ - जाओगे
जो तुम बचके हमसें निकल जाओगे ।
हमें देखतें ही ठहर जाओगे ।।
अज़ब नूर है इस चमन में ये हमदम ।
अगर तुम समेटे बिखर जाओगे ।।
अंजामे - मुहब्बत का होगा जग जाहिर ।
लेकर दर्द तुम फिर किधर जाओगे ।।
चढ़ेगी जो तलवार पर गर्दन फिर ।
तभी तुम वादा से मुकर जाओगे ।।
ख्वाबों को सजा अपनी पलकों पर ।
सुनों तुम भी खुद ही निखर जाओगे ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 5
बह्र - 22 2122 2122 122
काफ़िया - आना
रद़ीफ़ - हुआ है
मेरे चाँद का जग ये दिवाना हुआ है ।
वो तो जान बुझ ही अंजाना हुआ है ।।
रूठी हो हया ही जिससे आखिर भला क्यूँ ।
तब लगता जमाना ही बेगाना हुआ है ।।
भादों की तरह बरसे ये आँखें हमारी ।
इनको है वहम मौसम सुहाना हुआ है ।।
जिन्हें भूलने की हर कोशिशें ना हुई कम ।
देखो किस तरह नज़रें चुराना हुआ है ।।
जबसे हो गये मगरूर वो मुझसे अब तो ।
तेरे ही ख्यालों में आना जाना हुआ है ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 6
वज्न - 2122 2122 212
काफ़िया - आने
रदीफ़ - हो गये
लोग मजहब के दीवाने हो गये ।
पास रहकर भी बेगाने हो गये ।।
रोज मस्जिद में जा कर मांगे दुआ ।
ख़्याल उनके अब पुराने हो गये ।।
कब तलक दूहोगे तुम इस अवनि को ।
अब ख़ाली तमाम ख़जाने हो गये ।।
मतलबे परस्ती पे जिन्हें नाज़ हैं ।
लापता जीने के फसाने हो गये ।।
आ के कहता ख्याल तेरा यूं मुझे ।
तुझसे बिछडें अब जमाने हो गये ।।
बंद है अब खिड़कियाँ उसके घर की ।
खत्म सारे ही बहाने हो गये ।।
तंगहाली के जमाने में अब ।
यूँ लगे सपने सयाने हो गये ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 7
वज्न - 1222 1222
काफ़िया - आती
रदीफ़ - है
शज़र से बहाती है ।
हवा ठंड़ी सुहाती है ।।
नियति देखो मिट्टी की अब ।
यादें कितना सताती है ।।
वादा कोई निभाता कब ।
बातें तेरी लुभाती है ।।
नज़र झुक तो न सकती पर ।
कसम फिर याद आती है ।।
कशिश हो गर दिलों में तब ।
मिलन की आस आती है ।।
साधना कृष्ण
ग़ज़ल 8
वज्न - 222 222 12
काफ़िया - आर
रदीफ़ - है
यादों का कारोबार है ।
जीवन कैसा ये खार है ।।
अहसासों की दहलीज़ पर ।
आशाओं का दरबार है ।।
जग झूठा औ तू ही सच्चा ।
मुझको तुझसे ही प्यार है ।।
मतलब का है नाता यहाँ ।
खुदगरजी का बाज़ार है ।।
अपना लो या तुम ठुकरा दो ।
यह दिल अब तो ख़ाकसार है ।।
आँखो में झांको एक दफ़ा ।
दिल मेरा तो गुलजार है ।।
कैसे कह दूँ सब ठीक है ।
झगड़ो का अब अख़बार है ।।
साधना कृष्ण
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