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सोमवार, 18 जून 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में साधना कृष्ण की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल  1
वज्न - ‌2122    2122  212
काफिया - आज
रदीफ - है

आदमी   ही   आदमी   का राज है ।
अब तो खुद पर ही गिराता गाज है ।।

नाज  से  पाले कुलों के दीप को ।
आज भी इन बेटियों  पे नाज है ।।

हँस के जो दी लटों को फेंक वो ।
आह भर वे कहते क्या आगाज़ है ।।

कान में आकर कही ये जिंदगी ।
गैर की आवारगी ही  ख़ाज  है  ।।

लोक  तंत्र  में  नसीहत  पाक  है ।
इस हरम में  न्याय भी नाराज़ है ।।

साधना कृष्ण

ग़ज़ल 2
वज्न - 2122  2122   212
क़ाफिया- अत स्वर
रदीफ - हो गई

आसमाँँ से ही कयामत हो गई  ।
आदमी से ही  शरारत  हो  गई ।।

तारीखें  तो यूँ  बदलती हैं  ऐसे ।
मौज़ से  भारी बगावत  हो गई ।।

हो  गयी  तंगी फुर्सत की लो जरा ।
रौशनी की तब जलालत  हो  गई ।।

ना रहो  मगरूर  खुद में तुम   कभी ।
रुसवाई  की अब इजाजत  हो  गई।।

आपने जो देख़ के नज़रें  फेर ली।
आप से हमको मोहब्बत हो गई ।।

चंद  आँसू  और  यादें आपकी ।
जिंदगी की तो अमानत हो गई ।।

राह  में  थामे  चले  जो  अंगुली ।
फ़क़्त रुसवाई की आदत हो गई ।।

साधना कृष्ण

ग़ज़ल  3
वज्न 122    122   122   122
क़ाफिया -ई
रदीफ-कहेगी

शराफ़त  तुम्हारी कहानी कहेगी।
फ़साना  बना के रवानी  कहेगी ।।

अदायें  तुम्हारी ये मौसम सुहाना ।
फ़ना हो  गये  तो दिवानी कहेगी ।।

तुम्हारी जवानी अमानत रहेगी ।
हमारी नगीना निशानी कहेगी ।।

तख़ातुब नहीं हो कहीं नाम मेरा ।
यही  आऱजू  है सुहानी  कहेगी ।।

जब्र का ज़हर साधना मत पियो तुम ।
तड़प  के   यही   जिंदगानी  कहेगी ।।

तख़ातुब - पता
जब्र -   मजबूरी

साधना कृष्ण

ग़ज़ल 4
वज्न - 122   122    122   22
काफिया - अर
रदीफ - जाओगे

जो तुम बचके हमसें निकल जाओगे ।
हमें   देखतें    ही   ठहर    जाओगे  ।।

अज़ब नूर है इस चमन में ये हमदम ।
अगर  तुम  समेटे  बिखर  जाओगे ।।

अंजामे - मुहब्बत का होगा जग जाहिर ।
लेकर दर्द तुम फिर किधर जाओगे ।।

चढ़ेगी जो तलवार पर गर्दन फिर  ।
तभी तुम वादा से मुकर जाओगे ।।

ख्वाबों को सजा अपनी पलकों पर ।
सुनों तुम भी खुद ही निखर जाओगे ।।

साधना कृष्ण

ग़ज़ल 5
बह्र - 22  2122     2122   122
काफ़िया - आना
रद़ीफ़   - हुआ है

मेरे चाँद का जग ये दिवाना  हुआ है ।
वो तो जान बुझ ही अंजाना हुआ है ।।

रूठी हो हया ही जिससे आखिर भला क्यूँ ।
तब लगता जमाना ही बेगाना हुआ है ।।

भादों की तरह बरसे ये आँखें हमारी ।
इनको है वहम मौसम सुहाना हुआ है ।।

जिन्हें भूलने की हर कोशिशें ना  हुई कम ।
देखो किस तरह नज़रें चुराना हुआ है ।।

जबसे हो गये मगरूर वो मुझसे अब तो ।
तेरे ही ख्यालों में आना जाना हुआ है ।।

साधना कृष्ण

ग़ज़ल 6
वज्न - 2122  2122    212
काफ़िया - आने
रदीफ़ - हो गये

लोग  मजहब  के  दीवाने  हो  गये ।
पास   रहकर  भी  बेगाने  हो  गये ।।

रोज मस्जिद में जा कर मांगे दुआ ।
ख़्याल  उनके  अब  पुराने  हो गये ।।

कब तलक दूहोगे तुम इस अवनि को ।
अब  ख़ाली  तमाम  ख़जाने  हो गये ।।

मतलबे परस्ती पे जिन्हें नाज़ हैं ।
लापता  जीने के फसाने हो गये ।।

आ के कहता ख्याल तेरा यूं मुझे ।
तुझसे बिछडें अब जमाने हो गये ।।

बंद है अब खिड़कियाँ उसके घर की ।
खत्म   सारे   ही   बहाने   हो   गये ।।

तंगहाली   के   जमाने   में   अब ।
यूँ  लगे   सपने  सयाने   हो  गये ।।

साधना कृष्ण

ग़ज़ल 7
वज्न  - 1222 1222
काफ़िया - आती
रदीफ़ - है

शज़र      से      बहाती    है ।
हवा     ठंड़ी     सुहाती    है ।।

नियति  देखो  मिट्टी  की अब ।
यादें    कितना   सताती    है ।।

वादा    कोई    निभाता   कब ।
बातें     तेरी     लुभाती     है ।।

नज़र  झुक   तो  न  सकती पर ।
कसम   फिर   याद   आती   है ।।

कशिश  हो  गर  दिलों  में  तब ।
मिलन   की  आस   आती   है ।।

साधना कृष्ण

ग़ज़ल 8
वज्न - 222  222  12
काफ़िया - आर
रदीफ़ - है

यादों     का     कारोबार    है ।
जीवन   कैसा   ये   खार   है ।।

अहसासों   की   दहलीज़  पर ।
आशाओं    का   दरबार    है ।।

जग  झूठा  औ  तू  ही  सच्चा ।
मुझको   तुझसे   ही  प्यार  है ।।

मतलब   का   है  नाता  यहाँ ।
खुदगरजी   का   बाज़ार   है ।।

अपना  लो  या  तुम ठुकरा दो ।
यह दिल अब तो ख़ाकसार है ।।

आँखो  में  झांको  एक  दफ़ा ।
दिल   मेरा   तो  गुलजार   है ।।

कैसे   कह  दूँ  सब   ठीक  है ।
झगड़ो  का अब अख़बार  है ।।

साधना कृष्ण

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