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रविवार, 3 जून 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में कौशल कुमार पाण्ड़ेय की कुछ ग़ज़लें


ग़ज़ल 1
बह्र~2222 1222 2222 1222
काफ़िया - ऐ
रदीफ़ -  ही चुरा बैठे

मेरे दिल से मिला के दिल वो ऐसें ही चुरा बैठे ।
मिलाते  आँख थे पहले वो आँखेंं ही चुरा बैठे ।।

सदा सुनकर चरागों को बुझा देते थे जो झट से ।
वही  काली  सी  रातों  का  अँधेरेंं ही चुरा बैठे ।।

खिली चंदा की पूनम देख जो कविता सुनाते थे,
मेरी दिल से सभी अपनी वो यादें ही चुरा बैठे।।

हया से नज्र नीची कर जो अक्सर साथ चलते थे,
वही  बेशर्मियत  से  "आस"  नजरें  ही  चुरा  बैठे।।

वफाओं का सिला जिसने जफाओं से दिया हरदम ।
करुँ क्या "आस" अब उससे जो शाखें ही चुरा बैठे।।

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

ग़ज़ल 2
बह्र - 1222  1222
काफ़िया - आती
रदीफ़ - है

तुम्हारी  याद  आती  है ।
सहर भर तड़फड़ाती है ।।

गमों का रास्ता रोके ।
मुझे नगमें सुनाती है।।

हमारा हाथ मत पकड़ो ।
खुशी  बेताब  आती  है ।।

बसा  तू  आशियां अपना ।
इश्क क्यों कर जताती है ।।

हैं   बदले   रास्ते   हमने ।
आस अब क्यों जगाती है।।

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

ग़ज़ल 3

वज़्न - 2122   2122    2122
काफिया - ओ
रदीफ़  -  लगा है

आपका आना सजा सबको लगा है।
प्यार दीवाना यहां सबको लगा है।।

ख्वाब में भी मुस्करा कर कशमसाना,
रूप मेरा ही सजा मुझको लगा है।।

लोग दीवानी तुझे कहने लगे हैं,
नाम मेरा जप रहीं मुझको लगा है।।

जब झुका नजरे निकलती सामने से,
है मुहब्बत में दगा मुझको लगा है।।

"आस" कैसे छोड़ दूं तेरी भला मैं,
मैं तुम्हारा हूँ सनम सबको लगा है।।

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

ग़ज़ल 4
बह्र - 1222 1222 12
काफ़िया - आ
रदीफ़ - नहीं

वफाओं का सिला पाया नहीं।
गमों का गीत फिर गाया नहीं।।

कभी आओ हमारे पास बैठो,
फिर न कहना कि समझाया नहीं।।

जमाने से गिला क्यों कर रहे हो,
अभी तक नाम बतलाया नहीं।

चलो दो चार बातें और कर ले,
मेरा संग तो तुम्हें भाया नहीं।।

लिखा एक गीत तुम पर भी था मैंने,
मगर तुमने कभी गाया नहीं।।

भला किसको सुनाऊँ दर्दे-दिल अब,
आस" अपना कोई साया नहीं।।

कौशल कुमार पाण्डेय"आस बीसलपुरी"

ग़ज़ल 5
बह्र - 2121 2122 212
काफ़िया - आते
रदीफ - नहीं

प्यार के चर्चे किये जाते नहीं।
गीत मेरे तुम अगर गाते नहीं।।

हौसला तुमने बढ़ाया प्यार का,
पास भी तुम ही मेरे आते नहीं।।

रंज दिल में पाल बैठा हूँ बड़ा,
लोग अब तो खास बन पाते नहीं।।

ढूंढने निकला मैं अपने यार को,
वो मुझे पहचान भी पाते नहीं।।

रोज गीतों को रचा करता हूँ मैं,
"आस" में अब गीत तुम गाते नहीं।।

 कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

ग़ज़ल 6
बह्र - 2122  122   122  12
काफ़िया - आती
रदीफ़  -  रही रात भर

याद उनकी सताती रही रात भर ।
चाँदनी मुँह चिढ़ाती रही रात भर।।

प्यार में कितनी शामें गुजारीं मगर ।
रात  सपने  दिखाती रही रात भर ।।

तितलियां उड़ती देखीं बहुत फूल पर,
बनके गुल वो लुभाती रही रात भर।।

साजिशें उनकी कितनी खतरनाक थी ।
साँस  उसकी  बताती  रही  रात भर ।।

जिंदगी उसके ही हाथ में सौंप दी,
"आस"को आजमाती रही रात भर।।

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

ग़ज़ल 7
बह्र - 212  222  222  12
काफ़िया - आनी
रदीफ़ -  हो गयी

जिंदगी तुम बिन दीवानी हो गयी ।
आँख  मेरी  पानी  पानी हो  गयी ।।

याद में कटता नहीं जीवन मेरा,
व्यर्थ विरहा की कहानी हो गयी।।

शाम तक मैं राह को तकता रहा,
साँझ ढ़लते निगहेबानी हो गयी।।

आज तक समझा न तेरी बेरुखी,
किस तरह ये मेहरबानी  हो गयी।।

मैं समझता था जिसे अपना सनम,
"आस" गैरों की जवानी हो गयी।।

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

ग़ज़ल 8
बह्र - 22   22    22    22
काफिया-  आन
रदीफ -    नहीं हैं

सच्चे सब इंसान नहीं  हैं ।
मानव है भगवान नहीं हैं ।।

गीत  सुना  देना न काफी ।
झूठ कहा अरमान नहीं हैं ।।

दिल की बातें छुपा रहे हो ।
हम  बच्चे  नादान नहीं हैं ।।

सच्ची बातें कह दो दिलवर ।
हम  कोई  मेहमान  नहीं हैं ।।

"आस"  लगायी  है तुमसे ही ।
मत कहना एक जान नहीं हैं ।।

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"



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