हर ओर सघन क्रूरतम नैशान्धकार हो.
मधुकैटभी प्रवृत्ति चाहती हो जीतना.
प्राणों की आहुति दे दीप बालता कवि है.
कवि उर की उर्मियाँ वहाँ उजाला करे हैं.
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
हमसफ़र ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही थाम तो लोगे न? मजबूती से पकड़ कर रखोगे साथ छोड़ोगे तो नहीं न...
भीड़ लगी मधुशाला में, जान बसी अब मधुशाला में नशा नहीं अब कोई बोतल में नशा भरा है सब मधुशाला में नाच नचाती ,भूख मिटाती हर इलाज़ है इस मधुशाला मे...
चुनाव का मौसम आया,नेताजी ने बुज़ुर्गो के पाँव छुए।और विजयश्री मिलते ही पाँच बरस को ईद के चाँद हुए।फिर क्या...ग़ुमशुदा नेता की तलाश में जनता ने जगह जगह इ...
तुम शेर..हम..सवाशेर..गुलमटो..ये आग किसने लगाई..मै ने और मिश्रीलाल ने....सालो को घोल घोल के ऐसा पिलाया..अरे.हमने.तो कान में फुसफुसायाहम हैं न..लगे रहो ...
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