जब कालरात्रि बढ़ती ओढ़नी पसार हो.
हर ओर सघन क्रूरतम नैशान्धकार हो.
हर ओर सघन क्रूरतम नैशान्धकार हो.
निद्रारणवों की थाह गाहती हो चेतना.
मधुकैटभी प्रवृत्ति चाहती हो जीतना.
मधुकैटभी प्रवृत्ति चाहती हो जीतना.
उस वक़्त अग्निहोत्र धर्म पालता कवि है.
प्राणों की आहुति दे दीप बालता कवि है.
प्राणों की आहुति दे दीप बालता कवि है.
रवि रश्मियाँ जहाँ न कर्म पाला करे हैं.
कवि उर की उर्मियाँ वहाँ उजाला करे हैं.
कवि उर की उर्मियाँ वहाँ उजाला करे हैं.
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
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