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शनिवार, 16 जून 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में सुशीला धस्माना 'मुस्कान' की कुछ ग़ज़लें

 ग़ज़ल 1
वज्न - 212  22  212  22
काफ़िया - आम
रदीफ़  - हो जाए

ऐ खुदा  ऐसा  काम  हो जाए ।
हर  खुशी  तेरे  नाम  हो जाए ।।

जो भूखे ही  शामों - सहर फिरते ।
उनके दुख का अब नाश हो जाए।

तूफां  बारिश  में  हो  गये बेघर ।
उनके एक ही घर नाम हो जाए।।

जो सताते हैं दूसरों को जो अब ।
उनका भी कुछ इन्तजा़म हो जाए ।।

शेर की  खाल में जो भेड़िये हैं ।
चर्चा उनकी भी आम हो जाए ।।

मांगती  हूं  ईश्वर से मैं अब तो ।
बच्चा  बच्चा श्री राम हो जाए ।।

दिन भरे हों खुशियों से 'मुस्कान' ।
आज महफिल में शाम हो जाए ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

ग़ज़ल 2
वज्न  - 2122    2122    22
काफ़िया  - आ
रदीफ़   - पाओगे

अपनी करनी का सिला पाओगे ।
एक समय तुम भी सजा पाओगे ।।

पेड़ों पर कुछ तो रहम कर लेता ।
साफ़  वायु  फिर दिला  पाओगे ।।

जो उजाड़े हो बहारों को तुम  ।
कैसे फूलों को खिला पाओगे ।।

जो सभी जीवों का चैन छीने ।
चैन खुद को न दिला पाओगे ।।

धरती रोती आसमां रोता हैं ।
धीर कैसे तुम दिला पाओगे ।।

हर तरफ़ 'मुस्कान' हरियाली हो ।
तब खुशी सबको दिला पाओगे ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

ग़ज़ल 3
बह्र - २२  २२ २२ २२ २
काफ़िया - आर
रदीफ -  करते हैं

हम तो बस तुमसे प्यार करते हैं ।
तुम पर ही  जां निसार करते हैं ।।

आपने  छोड़ा है जो हमको तो ।
बातें  क्यूँ  यूं  हज़ार  करते  हैं ।।

रास्ते  जैसे  होंगे  कट  जाएं ।
जब तुम्हारा दीदार करते हैं ।।

इम्तिहां  जितना वफा का लोगे ।
प्यार का फिर  निखार करते हैं ।।

जिन्दगी रूठ  भी  जाए क्या है ।
उसका  ग़म  यूं  फरार करते हैं ।।

लब पे तेरे आएगी कब 'मुस्कान' ।
हम  तो  बस  इंतज़ार  करते  हैं ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'


ग़ज़ल 4
बह्र  - 2×10
काफ़िया  - आ
रदीफ़ - देखा है

ग़ैरों को अपना बनता देखा है।
अपनों को दूर जाता देखा है।।

मतलब पड़ने पे खून का रिश्ता ।
खून का प्यासा  होता  देखा  है ।।

रात  में  नींद   कैसे   आएगी  ।
उल्फते  जाम  पीता  देखा  है ।।

लगाया दिल से  बेवफाओं  को ।
छिपे  खंजर  को आता देखा है ।।

प्यार चुंबक  के  जैसे  होता  है ।
प्यार से खिंचता सबको देखा है ।।

बात तुम चाहते तो रोक लेते ।
रार  को ऐसे बढ़ता  देखा है ।।

हो गयी 'गर ख़ता तुमसे' मुस्कान ।
अपनों को माफ़  करता  देखा  है ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

ग़ज़ल 5
वज्न - 1222   1222    22
काफ़िया - ई
रदीफ़ - है

कैसी ये आस मन में आयी है ।
खुशी नस नस में मेरे छायी है ।।

मिला जो ख़त तो उसको पढ़ते ही ।
मुस्कराहट  सी  लब  पे छायी  है ।।

हमको वीरानियां पसंद थी तब तो ।
अब तो रौनक ही मन को भायी है ।।

मिलेंगे फिर ये बिछड़ना  कैसा ।
 चन्द  लम्हों  की  ये जुदाई  है ।।

दिल हुआ कैद उनकी चाहत में ।
चाहता  अब   नहीं  रिहाई   है ।।

बहारें  मौज  ले  रही   मन  में ।
ग़मों  को  दे  चुके  विदाई  है ।।

अब तो हर रोज़ लब पे है 'मुस्कान' ।
 मन  में  छवि  तेरी  जो  बसाई  है ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

ग़ज़ल 6
बह्र - 122  1222    1222
काफ़िया - ते है

दिलों के तार कुछ तो अब कहते हैं ।
शायद अब याद वो हमको करते हैं ।।

हमीं को समझा के चलो किसी काबिल ।
शुक्रिया  तेरा   अब  हम  तो  चलते  हैं ।।

बेशुमार  हमने  की  मुहब्बत सो ।
जिगर का दर्द अब हम सहते  हैं ।।

 बेवफाई  तो   उस   ने  की  थी ।
 के अब जख्म दिल पे मिलते हैं ।।

एक  वो  हैं  कि  ग़म  में  डूबे  हैं ।
ग़म के बदले हम 'मुस्कान' देते हैं ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

ग़ज़ल 7
वज्न - 212  212 212 212 22
काफ़िया - अर स्वर
रदीफ - नहीं देखा।

 आज़ादी के  बलिदानों का मंजर नहीं देखा ।
 गद्दारों का बढ़ता हुआ  खंजर नहीं देखा ।।

सांस  ले रहे हो इस  आज़ादी में तुम तो ।
परतन्त्रता के कष्टों को छूकर नहीं देखा ।।

अंदाजा क्या लगाए  किसी के भी दर्द का ।
आंसुओं  से  तर  तूने  बिस्तर  नहीं  देखा ।।

लूट  रहे  बैठे  - बैठे  देश  को  क्यों  तुम ।
दुनिया में कहीं तुम सा सितमंगर नहीं देखा ।।

जिस देश में हो  उसको ही बरबाद कर दिया ।
सीने में दिल के बदले ये पत्थर नहीं देखा ।।

जो पालता है बेटी दान देने को 'मुस्कान' ।
उस  बाप  ने  सुकूं  इक मंज़र नहीं देखा ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

ग़ज़ल 8
बह्र - 212   212  1222
काफ़िया - आन स्वर
रदीफ़ - हो गये देखो


लोग हैवान हो गये देखो  ।
कूचे हैरान हो गये  देखो ।।

मस्त कलियों जहां गूंजी हंसी ।
बाग  शमशान  हो  गये  देखो ।।

छोटे बच्चों  में ईश  के दर्शन ।
रूठे भगवान्  हो  गये  देखो ।।

झोपड़ी भी नही थी  जिन पर ।
आज  धनवान  हो गये  देखो ।।

आज अहसास मर गया उनका ।
कैसे   इंसान    हो  गये   देखो ।।

जिनको  आता न जाता कुछ भी था ।
अब वो सुल्तान   हो  गये  देखो ।।

बिकते हैं कैसे आदमी भी अब ।
वो  भी  सामान  हो  गये  देखो ।।

जिनको   कल तक  समझ नहीं पाये ।
लब की 'मुस्कान' हो  गये  देखो ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

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