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शुक्रवार, 22 जून 2018

ग़ज़ल- फुरकत के लम्हों में

फुरकत के लम्हों में नैन अब चार कर लूं मैं ।
दानिशतां  सनम  मेरे  तुझे  प्यार कर लूं मैं ।।

खुद को भुला दुं खो जाऊं कुछ इस तरह तुझमें  ।
होने  लगी   हूं   अब   तेरी  इकरार  कर  लूं  मैं ।।

शरमा के यूँ नज़रें उठ के झुक ही गई मेरी ।
खामोश होठों से अब यूँ इजहार कर लूं मैं ।।

तसव्वुर में  हमनशी  छू  कर  मैं तुझको देखूँ ।
दिल  मे रख के तुझको बातें हजार कर लूं मैं ।।

हो  जाऊं  मैं  फना  कुछ  ऐसे  काम  आऊं ।
आगोश में भरके तुझे खुद पे वार कर लूं मैं ।।

सना परवीन 'महनाज'
   हरदोई (उ०प्र०)

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