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सोमवार, 30 मार्च 2020

कविता - कौन बड़ा-छोटा किन बातों में हम पड़े हुए - आदित्य तोमर

क्या समाज, कैसा समाज, क्या है उसकी परिभाषा ?
यह सब कहने में थकती है कलम, उलझती भाषा.
भिन्न पंथ हों, भिन्न धर्म हों या समुदाय भले हों,
भले भिन्न लोगों के पदचिन्हों पर आप चले हों,
लेकिन यह मत ठीक नहीं स्वयं को ज्येष्ठ ही मानें.
अन्य सभी को हेय, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ ही जानें.
पूर्ण चन्द्रमा को भी आखिर घटना पड़ जाता है.
एक दिवस हर अहंकार को मिटना पड़ जाता है.
कौन बड़ा-छोटा किन बातों में हम पड़े हुए हैं.
कालचक्र में सब दूजे के आगे खड़े हुए हैं.
कैसी सुघड़, सलोनी सुंदर है सुकृति प्रकृति की.
इसके आगे राह बन्द हो जाती मानव मति की.
विधि ने तो हर जाति-धर्म को गौरव दान दिया है.
सबको शीश उठाकर जीने का सम्मान दिया है.
सभी जाति-धर्मों में उतरे महामानवों के दल.
सभी जाति-धर्मों को प्रभु ने सौंपा जीवन सम्बल.,
जब-जब मानव स्वाभिमान पर घातक पाप हुए हैं.
विक्रम, वीर शिवाजी, भामाशाह, प्रताप हुए हैं.
कहाँ, कहो, किस जाति में नहीं बिरले ख़ास हुए हैं.
महाराज अक्रूर, सूर, तुलसी, रैदास हुए हैं.
वाल्मीकि, बिरसा मुण्डा, सावित्रि, ज्योतिबा फूले,
किस डाली पर नहीं विपिन में पुष्प अनोखे झूले.
भगत, चन्द्रशेखर, बिस्मिल, अशफ़ाक़, सुभाष हमारे.
समय-समय पर उगते आये जग में नए सितारे..
अतः जातियों के विवाद पर डालो मिलकर पानी.
यही भावना लाओ हम सब ही हैं हिंदुस्तानी.
जाति-धर्म को पूछ न दुश्मन हम पर वार करेंगे.
वे तो एक तरफ़ से ही सबका संहार करेंगे.
अहंकार के वशीभूत आराती बने हुए हैं.
सच तो यह है सभी यहाँ बाराती बने हुए हैं.
घड़ी-दो घड़ी की सज-धज सब धूमिल हो जानी है.
चमक-धमक यह गमक खलक की पल में खो जानी है.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)

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