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रविवार, 22 मार्च 2020

ग़ज़ल :- ज़िंदगी गुज़रे ज़रा - से प्यार में - रवि रश्मि 'अनुभूति '


बहर --- 2122    2122    212
काफिया - आर
रदीफ- में

ज़िंदगी गुज़रे ज़रा - से प्यार में ।
क्या रखा है जीत में सुन हार में ।।

रोकते  काँटे  हमारे  प्यार  को ।
काट सकते ज़िंदगी हम ख़ार में ।।

गुनगुनाते हैं सदा हम गीत ही ।
चल पड़ें हम गीत की गुंजार में ।।

मिल सके जो साथ तेरा सुन ज़रा  ।
क्या रखा है फिर किसी श्रृंगार में ।।

जीत तेरी हो कि मेरी सुन सजन ।
खुशनुमा हो हम जियें संसार में ।।

रंग भर लो प्यार के दिल में  सभी ।
भर सकें खुशियाँ सभी त्योहार में ।।

प्यार से मिलजुल रहें देखो सदा ।
क्या रखा है व्यर्थ की तक़रार में ।।

डगमगाती कश्तियाँ डरना नहीं ।
बस भरोसा तुम रखो पतवार में ।।

नफ़रतों की छोड़ कर दुनिया ज़रा ।
ढूँढ़ लो जादू ज़रा - सा प्यार में ।।

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
4.3.2020 , 4:44पीएम पर रचित ।

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