बार-बार घरों से निकलने के आदी लोगो,
थोड़े दिनों हाथ से छुड़ाके रखो हाथ को.
प्रिय परिजनों की जो प्राण रक्षा चाहिए तो,
भूल जाओ बाहर के साथियों के साथ को.
विधि के विधान का नियत काल आने तक,
झुकाये ही रखना है कुछ दिनों माथ को.
नव माह गर्भजून की गुफा में तपके ही,
मार सकीं वैष्णवी भी वीर भैरवनाथ को.
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काल वेला जब तक आती नहीं तब तक,
तिनका भी सूर्य के समक्ष अड़ जाता है.
सूरमाओं से भरी विशाल पाण्डु सेना से ज्यों,
एक जयद्रथ ही अकेला लड़ जाता है.
काल बना देता सव्यसाची को बृहन्नला तो,
सारा अर्थ पुरुषार्थ का बिगड़ जाता है.
ऐसे काल के समक्ष धीरता से होगा काम,
वीरता दिखाना सदा भारी पड़ जाता है.
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युद्ध-बुद्ध दोनों के विशुद्ध महारथी होके,
नीतिपथ एक नया जोड़ दिया कृष्ण ने.
मानवों को मानक नया दिखाने हेतु क्या -
कथानक अचानक ही मोड़ दिया कृष्ण ने.
लड़-मरना ही युद्धनीति नहीं होती, कह -
अभिमान वीरता का तोड़ दिया कृष्ण ने.
मेरे हाथों काल कालयवन का लिखा नहीं,
यही सोचकर रण छोड़ दिया कृष्ण ने.
-..... ..... .... ..... ..... To be continued.
©
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
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