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शनिवार, 21 मार्च 2020

डॉ_वशीर_बद्र - पूरा इंटरव्यू यहाँ पढ़े - डा_निशान्त_असीम

#ग़ज़ल_की_भाषा_हिंदुस्तानी_है
#डॉ_वशीर_बद्र
( पूरा इंटरव्यू यहाँ पढ़े ) पद्मश्री बशीर साहब की शायरी अदब और आम-जनमानस में ख़ास मक़ाम रखती है। हिंदुस्तानी-भाषा के इस हरदिल-अजीज शायर को उर्दू वाले उर्दू का और हिन्दी वाले हिन्दी का समझते हैं, इतनी मुहब्बत शायद ही किसी शायर को मिली हो। वर्ष 2005 में वे बदायूँ-महोत्सव में मुशायरा पढ़ने आये थे, उस अवसर पर उन्हें फ़ानी-शकील अवार्ड से नवाजा गया था। उसी समय उनका यह इंटरव्यू मुझ नाचीज़ ने लिया था, जो संजय शर्मा जी के सम्पादन में लखनऊ से प्रकाशित  #वीक_एंड_टाइम्स  में 05 मार्च 2005 को प्रकाशित हुआ था।
तो चलिये मेरे साथ उन ऐतिहासिक लम्हों में ...


असीम : शायरी के गढ़ और शकील-फ़ानी की सरज़मीं पर, उन्हीं के नाम का अवार्ड पा कर कैसा लग रहा है ?

बद्र साहब : ... मैं इसे अल्फ़ाज़ों में बयां नहीं कर सकता। मुझे फ़क्र है कि बदायूँ-शरीफ़ के लोगों ने मुझे इस अवार्ड के क़ाबिल समझा। जिसके लिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ। यह इस ज़मी की कशिश ही है कि मैं यहाँ खिंचा चला आता हूँ।

असीम : शायरी के इस मक़ाम पर पहुँच कर कैसा महसूस करते हैं ?

बद्र साहब : ठीक वैसा ही जैसा एक आम आदमी महसूस करता है। ख़ुशी होती है कि मेरे चाहने वाले मुझसे इतनी मुहब्बत करते हैं।...मग़र अब ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गयीं हैं।

असीम : किस तरह की ज़िम्मेदारियाँ ?

बद्र साहब : यही कि जो भी लिखूँ उसके ज़रिये लोगों को कुछ न कुछ नसीहत या पैग़ाम मिले, उन्हें  ऐसा लगे जैसे कि मैंने उनकी बात कह दी।

असीम : ' उनकी बात ' से क्या मतलब है ?

बद्र साहब : ..... ( गम्भीरता से ) आज ज़िन्दगी की रफ़्तार बहुत तेज़ है। कल्चर, एटमॉस्फियर सब कुछ बदला है, जिसकी वजह से आदमी के न सिर्फ़ दुःख-दर्द बढ़े हैं बल्कि वो जज़्बाती भी हुआ है। ऐसे में उसे अगर एक शेर ऐसा मिल जाये जो उसे हार्डली टच करता हो तो यक़ीनन उसे सुकून मिलेगा और उसे वो याद रखेगा। फिर वो शेर मेरा हो, आपका हो या किसी और का हो।

असीम : एक्चुअल में आप शायरी किसे मानते हैं ?

बद्र साहब : एक शायर के नज़रिए से, जो हर तरह से ग्रामर का एहतराम करती हो और एक आम आदमी की नज़र से, वो बिना परेशानी या डिक्शनरी के सबकी समझ में आये और जो मैंने अभी कहा कि हार्डली टच करे।

असीम : मीर, दाग़, ग़ालिब, फ़ानी , जिगर में आप किसे पसन्द करते हैं ?

बद्र साहब : ये तो ऐसे ही हुआ जैसे कि आप कहें कि आसमान का कौन सा तारा आपको पसन्द है। ...सभी की शायरी का अपना मिजाज है, अपना मुकाम है। लेकिन लिट्रेचर की नज़र से ग़ालिब और मीर पर भारत और पाकिस्तान की यूनिवर्सिटीज में काफ़ी काम हुआ है।

असीम : पाकिस्तान का ज़िक्र हुआ तो, आप एक शायर के नाते भारत और पाकिस्तान के सम्बंधो को किस नज़र से देखते हैं ?

बद्र साहब : बिल्कुल एक आम हिंदुस्तानी की नज़र से, अभी तो उस दिन की शाम भी नहीं हुई है, जिसकी सुबह में हम साथ-साथ रहते थे। दोनों की अवाम चाहती है कि आपस में प्यार हो, अम्न हो, मैंने तो बहुत पहले ये शेर कहा था -
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिंदा न हों।

असीम : आज हिन्दी में भी ग़ज़ल कही जा रही है, हिन्दी वाले इसे दुष्यन्त कुमार की परम्परा मानते हैं। क्या ग़ज़ल को हिन्दी-उर्दू में बांटा जा सकता है ?

बद्र साहब : शायरी को जाति या भाषा के नाम पर नहीं बाँटा जा सकता है। ...सच तो ये है कि हिन्दी-उर्दू एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, यह तो दुष्यन्त साहब ने भी कहा था। ग़ज़ल की अपनी एक तहज़ीब है उसे भाषाओं के नज़रिये से नहीं बांट सकते। वास्तव में आज की, ग़ज़ल की भाषा हिंदुस्तानी है। भाषा की हिस्ट्री में पढ़े तो हमें पता चलेगा कि उर्दू-हिन्दी अलग नहीं हैं, बस लिखबट का फ़र्क है। यह दोनों संस्कृत भाषा की मुश्किल से नवीं-दसवीं पीढ़ी हैं। ...अब इसे थोड़ा माडर्न टच दे दिया गया है। यह हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी मिक्स हिंदुस्तानी ज़बान पूरे हिंदुस्तान में बोली और समझी जाती है। शायरी और कविता की भी यही भाषा है, मेरा यह शेर देखिये -
ये साहिल है यहाँ तो,
मछलियाँ कपड़े बदलती हैं।
बताइये इसे आप क्या कहेंगे, हिन्दी या उर्दू ?

असीम : आपके कुछ दीवान देवनागरी-लिपि में भी प्रकाशित हुये हैं, इसके पीछे कोई ख़ास वजह ?

बद्र साहब : वो इसलिए कि उसे हिन्दी-भाषी.....( रुकने के बाद कुछ देर सोच कर ) .... बल्कि हिन्दुस्तानी कहूँ तो अच्छा रहेगा... जानने वाले और देवनागरी-लिपि में लिखने-पढ़ने वाले भी उसे पढ़ सकें। क्योंकि देश में ऐसे लोगों की तादाद ज़्यादा है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

असीम : आपने फ़िल्मों में गीत लिखने के प्रति दिलचस्पी क्यों नहीं दिखायी ?

बद्र साहब : क्योंकि वहाँ आज की तारीख़ में शायरी को शायरी रख पाना बहुत मुश्किल काम है। इसलिए मैंने ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, ऑफ़र तो बहुत आये, आज भी आते हैं।

असीम : आज देश अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है, शायरी के जरिये आपने उन्हें उठाने या उनका हल देने की कोशिश की ?

बद्र साहब : सवाल अच्छा किया आपने... बिल्कुल कोशिश की। वैसे भी शायरी या लिट्रेचर को समाज और देश का आइना कहा जाता है। मैंने उसी आईने को दिखाने की लगातार कोशिश की है और कर रहा हूँ। चन्द अशआर देखिये-
जब भी बादलों में घिरता है,
चाँद लगता है आदमी की तरह।
रात का इंतज़ार कौन करे,
आजकल दिन में क्या नहीं होता।

असीम : आज आपको देश की सबसे बड़ी प्रॉब्लम कौन सी लगती है ?

बद्र साहब : मेरे ख़्याल से ग़रीबी और भ्रष्टाचार ही देश की मेन प्रॉब्लम हैं। यह खत्म हो जायें तो यक़ीनन हर तरफ़ अम्न होगा।

असीम : पद्मश्री पाने के बाद कुछ और पाने की तम्मना है ?

बद्र साहब : ... बस अपने सामईन से यूँ ही प्यार और इज्ज़त मिलती रहे, जिससे ज़िन्दगी का बाक़ी सफ़र मुहब्बत से कट जाये।

असीम : आमीन ! आखिर में कोई पैग़ाम देशवासियों के लिये ....

बद्र साहब : सभी देशवासी मिल-जुल कर अमन और प्रेम के दीपक जलाते रहें, जिससे न केवल हिंदुस्तान बल्कि सारी दुनियाँ मुहब्बत से जगमगा उठे।

साक्षात्कार
#डा_निशान्त_असीम
संस्थापक/अध्यक्ष : हिन्दुस्तानी ग़ज़ल अकादमी ( रजि.)

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