रदीफ़- है
क़ाफ़िया-आरा.....स्वर
2×15
आज अगर दिल मान सके ये हर इंसान हमारा है ।
हो जाये हर मुश्किल आसाँ ढूँढे कौन सहारा है ।।
गुल ही महकाता है गुलशन बाग खिलाये बनमाली ।
काँटे चुभते वनमाली के गुल क़िस्मत की धारा है ।।
भीग रही है दुनिया सारी दौलत की इस बारिश में ।
छोड़ चलेगा इस दौलत को बनकर ही बेचारा है ।।
इल्ज़ामों की हर बेड़ी को तोड़ सकेगा दिल कैसे ।
दर्द सहे सौ वार जहाँ पर उसने दिल को मारा है ।।
बीत गईं हैं कितनी शामें हर मौसम तन्हाई में,
दिल में उठते अहसासों ने फिर से आज उबारा है।
फूल खिलें हैं क्यारी क्यारी रंग अनेकों ढंग नये ।
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से प्यारा है ।।
एक तमन्ना कहती “रचना” फिर से धरती पे आयें ।
मिल जायेंगे राम ज़मीं पर श्याम हमारा न्यारा है ।।
© रचना उनियाल
क़ाफ़िया-आरा.....स्वर
2×15
आज अगर दिल मान सके ये हर इंसान हमारा है ।
हो जाये हर मुश्किल आसाँ ढूँढे कौन सहारा है ।।
गुल ही महकाता है गुलशन बाग खिलाये बनमाली ।
काँटे चुभते वनमाली के गुल क़िस्मत की धारा है ।।
भीग रही है दुनिया सारी दौलत की इस बारिश में ।
छोड़ चलेगा इस दौलत को बनकर ही बेचारा है ।।
इल्ज़ामों की हर बेड़ी को तोड़ सकेगा दिल कैसे ।
दर्द सहे सौ वार जहाँ पर उसने दिल को मारा है ।।
बीत गईं हैं कितनी शामें हर मौसम तन्हाई में,
दिल में उठते अहसासों ने फिर से आज उबारा है।
फूल खिलें हैं क्यारी क्यारी रंग अनेकों ढंग नये ।
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से प्यारा है ।।
एक तमन्ना कहती “रचना” फिर से धरती पे आयें ।
मिल जायेंगे राम ज़मीं पर श्याम हमारा न्यारा है ।।
© रचना उनियाल
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