गजल 1
बह्र - 1222 × 4
काफ़िया - एं स्वर
रदीफ़ - अब नही मिलतीं
बढ़ा लो फासले यारों वफ़ाएं अब नही मिलतीं ।
नजर जो फेर ली जब से अदाएं अब नही मिलतीं ।।
सुनाऊँ हाल मै दिल का सुनूं मै किस तरह उसको ।
हुआ खामोश जब से वो सदाएं अब नही मिलतीं ।।
किये वो जा रहा बेख़ौफ़ होकर के गुनाहों को ।
दिलों को तोड़ने की भी सजाएं अब नही मिलतीं ।।
बड़ी ही बे समझ थी मै ,न समझी माँ के दामन को ।
बचाऊँ खुद को मै कैसे दुवाएं अब नही मिलतीं ।।
नशीली शाम का मंजर बड़ा ही तल्ख लगता है ।
फिरूँ मै ढूंढती हरदम फजाएं अब नही मिलती ।।
सना परवीन 'मेहनाज'
गजल 2
बह्र - 221 1222 221 1222
काफ़िया - आ स्वर
रदीफ़ - लेंगे
तुम साथ न दो मेरा खुद राह बना लेंगे ।
धरती से गगन तक हम मंजिल को भी पा लेंगे ।।
क्या आज हुआ तुमको जो रूठ गये साजन ।
हम अपने ही शानों पर हर बोझ उठा लेंगे ।।
काँटो से बगावत भी क्या करना जमाने में ।
चुभते हैं अगर तो हम, कलियों को खिला लेंगे।।
गिरते हुए अश्कों का इक मोल जरूरी है ।
हम दिल के दरीचे भी आंखों को बना लेंगे ।।
इक दर्द छुपा दिल में, मुश्किल है समझ पाना ।
हर ग़म को सना लेकिन, खुशियों से मिला लेंगे ।।
सना परवीन 'महनाज'
गजल 3
बह्र - 221 1222 122 1222
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लू मैं
फुरकत के लम्हों में नैन अब चार कर लूं मैं ।
दानिशतां सनम मेरे तुझे प्यार कर लूं मैं ।।
खुद को भुला दुं खो जाऊं कुछ इस तरह तुझमें ।
होने लगी हूं अब तेरी इकरार कर लूं मैं ।।
शरमा के यूँ नज़रें उठ के झुक ही गई मेरी ।
खामोश होठों से अब यूँ इजहार कर लूं मैं ।।
तसव्वुर में हमनशी छू कर के तुझको देखूँ ।
दिल मे रख के तुझको बातें हजार कर लूं मैं ।।
हो जाऊं मैं फना कुछ ऐसे काम आऊं ।
आगोश में भरके तुझे खुद पे वार कर लूं मैं ।।
सना परवीन 'महनाज'
बह्र - 1222 × 4
काफ़िया - एं स्वर
रदीफ़ - अब नही मिलतीं
बढ़ा लो फासले यारों वफ़ाएं अब नही मिलतीं ।
नजर जो फेर ली जब से अदाएं अब नही मिलतीं ।।
सुनाऊँ हाल मै दिल का सुनूं मै किस तरह उसको ।
हुआ खामोश जब से वो सदाएं अब नही मिलतीं ।।
किये वो जा रहा बेख़ौफ़ होकर के गुनाहों को ।
दिलों को तोड़ने की भी सजाएं अब नही मिलतीं ।।
बड़ी ही बे समझ थी मै ,न समझी माँ के दामन को ।
बचाऊँ खुद को मै कैसे दुवाएं अब नही मिलतीं ।।
नशीली शाम का मंजर बड़ा ही तल्ख लगता है ।
फिरूँ मै ढूंढती हरदम फजाएं अब नही मिलती ।।
सना परवीन 'मेहनाज'
गजल 2
बह्र - 221 1222 221 1222
काफ़िया - आ स्वर
रदीफ़ - लेंगे
तुम साथ न दो मेरा खुद राह बना लेंगे ।
धरती से गगन तक हम मंजिल को भी पा लेंगे ।।
क्या आज हुआ तुमको जो रूठ गये साजन ।
हम अपने ही शानों पर हर बोझ उठा लेंगे ।।
काँटो से बगावत भी क्या करना जमाने में ।
चुभते हैं अगर तो हम, कलियों को खिला लेंगे।।
गिरते हुए अश्कों का इक मोल जरूरी है ।
हम दिल के दरीचे भी आंखों को बना लेंगे ।।
इक दर्द छुपा दिल में, मुश्किल है समझ पाना ।
हर ग़म को सना लेकिन, खुशियों से मिला लेंगे ।।
सना परवीन 'महनाज'
गजल 3
बह्र - 221 1222 122 1222
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लू मैं
फुरकत के लम्हों में नैन अब चार कर लूं मैं ।
दानिशतां सनम मेरे तुझे प्यार कर लूं मैं ।।
खुद को भुला दुं खो जाऊं कुछ इस तरह तुझमें ।
होने लगी हूं अब तेरी इकरार कर लूं मैं ।।
शरमा के यूँ नज़रें उठ के झुक ही गई मेरी ।
खामोश होठों से अब यूँ इजहार कर लूं मैं ।।
तसव्वुर में हमनशी छू कर के तुझको देखूँ ।
दिल मे रख के तुझको बातें हजार कर लूं मैं ।।
हो जाऊं मैं फना कुछ ऐसे काम आऊं ।
आगोश में भरके तुझे खुद पे वार कर लूं मैं ।।
सना परवीन 'महनाज'
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