ग़ज़ल 1
काफ़िया - ईर
रदीफ़ - का
हर कोई मालिक बना है रौब है जागीर का ।
सब कहें मैं ही सिकंदर हूँ यहाँ तक़दीर का ।।
झूठ का देखो सभी ने पैरहन पहना हुआ ।
शौक भी रखने लगें हैं आजकल शमशीर का ।।
मौत पर किस का चला बस जानते हैं सब यहाँ ।
हार ही जाता है आखिर हर क़दम तदबीर का ।।
यूँ कुचलते हैं गरीबों को ज़माने के सितम ।
ज्यों खुदा ने ही लिखा हो फलसफ़ा तहरीर का ।।
कुछ दुआएँ दो हमें की हम भी आदम जात है ।
आप जैसा शौक हम को भी नहीं जंजीर का ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 2
बह्र- 1212 2122 2212 2
काफिया - ई
रदीफ - दे दे
बुझी बुझी सी निगाहों को रौशनी दे दे ।
उदासियों से घिरे दिल को इक ख़ुशी दे दे ।।
कभी ये तेरी नज़र से जहान देखा था ।
उसी नज़र को सनम फिर से रहबरी दे दे ।।
न कोई फ़िक्र न चिंता थी तेरे होते हुये ।
उसी भरोसे की तू मुझको वापसी दे दे ।।
जवाब आने तलक इंतजार कर लेंगे ।
जवाब का तू भरोसा सही सही दे दे ।।
मैं जिंदगी के उसी मोड पर हूँ अफसुर्दा ।
थकी निगाह मेरी आके ताजगी दे दे ।।
मैं तुझसे मिल के बिछड़ने की सोच ही न सकूँ ।
मेरे सनम तू मुझे फिर से बेबसी दे दे ।।
मैं तेरे साथ परिंदों सी फिर उड़ान भरूँ ।
कसम तुझे है सनम फिर वो आशिकी दे दे ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 3
बह्र - 122 122 122 12
काफिया - आ
रदीफ - कर गए
लो दिल जिस्म से यूं जुदा कर गए ।
मुहब्बत में खुद को खुदा कर गए ।।
ज़माने ने समझा था का़तिल जिसे ।
उसी को गले हम लगा कर गए ।।
ग़ज़ल लिख रही थी गुलाबों की मैं ।
मगर ख्वाब कांटा चुभा कर गए ।।
बड़ी खुश्क सी ज़िंदगी जा रही ।
मेरे अश्क मुझको भिगा कर गए ।।
पशेमाँ नहीं दिल दुखा कर मेरा ।
मुझे मेरे अपने रुला कर गए ।।
ये ख़्वाहिश न जाने कहां ले चली ।
हवस में ही कितनी ख़ता कर गये ।।
जिन्होंने मुहब्बत की कलमें जड़ीं ।
वो दश्त-ए- मुहब्बत जला कर गए ।।
सँवरना सिखाया नहीं प्यार ने ।
हमें तो सनम बावरा कर गए ।।
ये उनकी सियासत का अंदाज़ है ।
मेरे ग़म में आँसू बहा कर गए ।।
ये जो मोजिज़े हो रहे अब यहाँ ।
उसी सच का हम सामना कर गए ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 4
बह्र - 221 212 1222 212
काफ़िया - आनी
रदीफ़ - तेरे लिए
हमने लिखी लहू से कहानी तेरे लिए ।
बर्बाद कर ली अपनी जवानी तेरे लिए ।।
आब- ए- हयात मेरे न आँसू ही बन सके ।
ठहरी नदी का बस था वो पानी तेरे लिए ।।
मेरी तड़प कराह , कभी छटपटाहटें ।
तस्वीर बन टंगीं ये निशानी तेरे लिए ।।
चारों तरफ उजाला बिखेरा सनम अभी ।
खुशियां भरी हरेक रवानी तेरे लिए ।।
चाहत तुम्हारी देखी है हर बार ही नयी ।
मैं याद बन गई थी पुरानी तेरे लिए ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 5
बह्र - 212 212 212 212
काफ़िया - अन
रदीफ़ - की हमें
याद आती नहीं बालपन की हमें ।
है ख़बर ही कहाँ अपने मन की हमें ।।
ज़िम्मेदारी निभानी है घरबार की ।
फ़िक्र करनी है घर के रतन की हमें ।।
खार के बीच भी फूल हँसते दिखे ।
टीस दिखती नहीं क्यों सुमन की हमें ।।
सूखते जा रहे फूल कलियाँ सभी ।
फ़िक्र होती नहीं क्यों चमन की हमें ।।
प्रण लिया है हमने यही आज से ।
अब मिटानी जड़े हैं पतन की हमें ।।
जिंदगी का सबब भूलने से लगे ।
है ज़रूरत किसी इक किरन की हमें ।।
लुट रही लाज बाज़ार में रात दिन ।
लाज आती नहीं बाँकपन की हमें ।।
कट रहे सर शहीदों के न ला सके ।
आन अब है बचानी वतन की हमें ।।
बन जा महबूब मिट्टी को माशूका कर ।
दिल में रखनी मुहब्बत वतन की हमें ।।
हो तिरंगा अगर पैरहन के लिए ।
फ़िक्र तब तो नहीं हैं बदन की हमें ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 6
बह्र- 212 212 1222
काफ़िया - आई
रदीफ़ - है
चाँदनी रात मुस्कुराई है ।
इश्क औ हुस्न की सगाई है ।।
तक रहे होंगे मुझको छुप-छुप कर ।
उनकी ख़ुश्बू फ़िज़ा में छाई है ।।
सुब्ह बीती न जाने कब कैसे ।
शाम मुश्किल से झिलमिलाई है।।
बर्फ़ होने लगी थीं यह आँखें ।
उनके आने से जान आई है ।।
हिज्र के,रात दिन, हुये रुखसत ।
अब मसर्रत हयात लाई है।।
आज तशरीफ चांद ले लाया ।
चांदनी ने ज़िया लुटाई है ।।
प्यार पर तुमने ऐ जहाँ वालों ।
क्यों हमेशा छुरी चलाई है ।।
राजश्री ने भी कितनी मुश्किल से ।
प्यार की दुनिया इक बसाई है।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 7
बह्र - 122 122 122 122
काफ़िया - आरी
रदीफ़ - ऩज़र है
बड़ी खूबसूरत तुम्हारी नज़र है ।
नचाती है मुझको मदारी नज़र है ।।
पड़ीं जिस परिंदे पे तेरी निगाहें ।
फँसा जाल में , वो शिकारी नज़र है ।।
पड़े जो जिगर पे तो बचना न मुमकिन ।
बड़ी तेज पैनी है आरी नज़र है ।।
बयाँ क्या करूँ मैं तुम्हारी नज़र का ।
पड़ी जिसपे उसपे ही भारी नज़र है ।।
तुम्हें देखकर चैन मिलता कहाँ हैं ।
कसक छोड़ जाती दुधारी नज़र है ।।
सवालों में घिर के जले आग सी जो ।
ये किस की मुहब्बत की मारी नज़र है ।।
गुमां हो रहा है अदाओं के रुख से ।
ख़ुदा ने भी तेरी उतारी नज़र है ।।
तुम्हें चुन के लाए हैं सारे जहां से ।
कहो तेज़ कितनी हमारी नज़र है ।।
राजश्री तिवारी पाण्डे
काफ़िया - ईर
रदीफ़ - का
हर कोई मालिक बना है रौब है जागीर का ।
सब कहें मैं ही सिकंदर हूँ यहाँ तक़दीर का ।।
झूठ का देखो सभी ने पैरहन पहना हुआ ।
शौक भी रखने लगें हैं आजकल शमशीर का ।।
मौत पर किस का चला बस जानते हैं सब यहाँ ।
हार ही जाता है आखिर हर क़दम तदबीर का ।।
यूँ कुचलते हैं गरीबों को ज़माने के सितम ।
ज्यों खुदा ने ही लिखा हो फलसफ़ा तहरीर का ।।
कुछ दुआएँ दो हमें की हम भी आदम जात है ।
आप जैसा शौक हम को भी नहीं जंजीर का ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 2
बह्र- 1212 2122 2212 2
काफिया - ई
रदीफ - दे दे
बुझी बुझी सी निगाहों को रौशनी दे दे ।
उदासियों से घिरे दिल को इक ख़ुशी दे दे ।।
कभी ये तेरी नज़र से जहान देखा था ।
उसी नज़र को सनम फिर से रहबरी दे दे ।।
न कोई फ़िक्र न चिंता थी तेरे होते हुये ।
उसी भरोसे की तू मुझको वापसी दे दे ।।
जवाब आने तलक इंतजार कर लेंगे ।
जवाब का तू भरोसा सही सही दे दे ।।
मैं जिंदगी के उसी मोड पर हूँ अफसुर्दा ।
थकी निगाह मेरी आके ताजगी दे दे ।।
मैं तुझसे मिल के बिछड़ने की सोच ही न सकूँ ।
मेरे सनम तू मुझे फिर से बेबसी दे दे ।।
मैं तेरे साथ परिंदों सी फिर उड़ान भरूँ ।
कसम तुझे है सनम फिर वो आशिकी दे दे ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 3
बह्र - 122 122 122 12
काफिया - आ
रदीफ - कर गए
लो दिल जिस्म से यूं जुदा कर गए ।
मुहब्बत में खुद को खुदा कर गए ।।
ज़माने ने समझा था का़तिल जिसे ।
उसी को गले हम लगा कर गए ।।
ग़ज़ल लिख रही थी गुलाबों की मैं ।
मगर ख्वाब कांटा चुभा कर गए ।।
बड़ी खुश्क सी ज़िंदगी जा रही ।
मेरे अश्क मुझको भिगा कर गए ।।
पशेमाँ नहीं दिल दुखा कर मेरा ।
मुझे मेरे अपने रुला कर गए ।।
ये ख़्वाहिश न जाने कहां ले चली ।
हवस में ही कितनी ख़ता कर गये ।।
जिन्होंने मुहब्बत की कलमें जड़ीं ।
वो दश्त-ए- मुहब्बत जला कर गए ।।
सँवरना सिखाया नहीं प्यार ने ।
हमें तो सनम बावरा कर गए ।।
ये उनकी सियासत का अंदाज़ है ।
मेरे ग़म में आँसू बहा कर गए ।।
ये जो मोजिज़े हो रहे अब यहाँ ।
उसी सच का हम सामना कर गए ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 4
बह्र - 221 212 1222 212
काफ़िया - आनी
रदीफ़ - तेरे लिए
हमने लिखी लहू से कहानी तेरे लिए ।
बर्बाद कर ली अपनी जवानी तेरे लिए ।।
आब- ए- हयात मेरे न आँसू ही बन सके ।
ठहरी नदी का बस था वो पानी तेरे लिए ।।
मेरी तड़प कराह , कभी छटपटाहटें ।
तस्वीर बन टंगीं ये निशानी तेरे लिए ।।
चारों तरफ उजाला बिखेरा सनम अभी ।
खुशियां भरी हरेक रवानी तेरे लिए ।।
चाहत तुम्हारी देखी है हर बार ही नयी ।
मैं याद बन गई थी पुरानी तेरे लिए ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 5
बह्र - 212 212 212 212
काफ़िया - अन
रदीफ़ - की हमें
याद आती नहीं बालपन की हमें ।
है ख़बर ही कहाँ अपने मन की हमें ।।
ज़िम्मेदारी निभानी है घरबार की ।
फ़िक्र करनी है घर के रतन की हमें ।।
खार के बीच भी फूल हँसते दिखे ।
टीस दिखती नहीं क्यों सुमन की हमें ।।
सूखते जा रहे फूल कलियाँ सभी ।
फ़िक्र होती नहीं क्यों चमन की हमें ।।
प्रण लिया है हमने यही आज से ।
अब मिटानी जड़े हैं पतन की हमें ।।
जिंदगी का सबब भूलने से लगे ।
है ज़रूरत किसी इक किरन की हमें ।।
लुट रही लाज बाज़ार में रात दिन ।
लाज आती नहीं बाँकपन की हमें ।।
कट रहे सर शहीदों के न ला सके ।
आन अब है बचानी वतन की हमें ।।
बन जा महबूब मिट्टी को माशूका कर ।
दिल में रखनी मुहब्बत वतन की हमें ।।
हो तिरंगा अगर पैरहन के लिए ।
फ़िक्र तब तो नहीं हैं बदन की हमें ।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 6
बह्र- 212 212 1222
काफ़िया - आई
रदीफ़ - है
चाँदनी रात मुस्कुराई है ।
इश्क औ हुस्न की सगाई है ।।
तक रहे होंगे मुझको छुप-छुप कर ।
उनकी ख़ुश्बू फ़िज़ा में छाई है ।।
सुब्ह बीती न जाने कब कैसे ।
शाम मुश्किल से झिलमिलाई है।।
बर्फ़ होने लगी थीं यह आँखें ।
उनके आने से जान आई है ।।
हिज्र के,रात दिन, हुये रुखसत ।
अब मसर्रत हयात लाई है।।
आज तशरीफ चांद ले लाया ।
चांदनी ने ज़िया लुटाई है ।।
प्यार पर तुमने ऐ जहाँ वालों ।
क्यों हमेशा छुरी चलाई है ।।
राजश्री ने भी कितनी मुश्किल से ।
प्यार की दुनिया इक बसाई है।।
राजश्री तिवारी पांडे
ग़ज़ल 7
बह्र - 122 122 122 122
काफ़िया - आरी
रदीफ़ - ऩज़र है
बड़ी खूबसूरत तुम्हारी नज़र है ।
नचाती है मुझको मदारी नज़र है ।।
पड़ीं जिस परिंदे पे तेरी निगाहें ।
फँसा जाल में , वो शिकारी नज़र है ।।
पड़े जो जिगर पे तो बचना न मुमकिन ।
बड़ी तेज पैनी है आरी नज़र है ।।
बयाँ क्या करूँ मैं तुम्हारी नज़र का ।
पड़ी जिसपे उसपे ही भारी नज़र है ।।
तुम्हें देखकर चैन मिलता कहाँ हैं ।
कसक छोड़ जाती दुधारी नज़र है ।।
सवालों में घिर के जले आग सी जो ।
ये किस की मुहब्बत की मारी नज़र है ।।
गुमां हो रहा है अदाओं के रुख से ।
ख़ुदा ने भी तेरी उतारी नज़र है ।।
तुम्हें चुन के लाए हैं सारे जहां से ।
कहो तेज़ कितनी हमारी नज़र है ।।
राजश्री तिवारी पाण्डे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400