१२२ १२२ १२२ १२२
जहाँ ने ग़मों से उबारा नहीं है,
मिला दोस्ती का सहारा नहीं है।
गया नाम लिखकर यहाँ एक आशिक़,
हुआ कैश सा इक कुवाँरा नहीं है।
बता ग़लतियों को दिखाये माँ राहें,
बिना बात माने गुज़ारा नहीं है।
अगर तू है काबिल पा जायेगा मंज़िल,
कभी हिम्मतों से तू हारा नहीं है।
कहे दिल से “रचना” मुहब्बत की बातें,
लिखे नफ़रतें वो गवारा नहीं है।
रचना उनियाल
३१-३-२०
जहाँ ने ग़मों से उबारा नहीं है,
मिला दोस्ती का सहारा नहीं है।
गया नाम लिखकर यहाँ एक आशिक़,
हुआ कैश सा इक कुवाँरा नहीं है।
बता ग़लतियों को दिखाये माँ राहें,
बिना बात माने गुज़ारा नहीं है।
अगर तू है काबिल पा जायेगा मंज़िल,
कभी हिम्मतों से तू हारा नहीं है।
कहे दिल से “रचना” मुहब्बत की बातें,
लिखे नफ़रतें वो गवारा नहीं है।
रचना उनियाल
३१-३-२०
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