बहर : 2122,2122,212
क़ाफ़िया : आना
रदीफ़ : छोड़ दो।
बैर दुनिया में बढ़ाना छोड़ दो ।
जाम नफरत का पिलाना छोड़ दो ।।
राह जीवन की कठिन कहते सभी
खौफ दीनो को दिखाना छोड़ दो ।।
भारती की वेदना बढ़ती सदा
पीठ पर छुरियाँ चलाना छोड़ दो ।।
प्रेम में ही सार दिखता है हमें
क्रोध को दिल में बिठाना छोड़ दो ।।
मन बने निर्मल यही इक कामना
पाप वसुधा पर कमाना छोड़ दो ।।
शान अपने देश की होगी न कम
हाथ दुश्मन से मिलाना छोड़ दो ।।
यार हँसकर घात सुख क्या पाओगे
झूठ की गंगा बहाना छोड़ दो ।।
के०आर० कुशवाह "हंस"
क़ाफ़िया : आना
रदीफ़ : छोड़ दो।
बैर दुनिया में बढ़ाना छोड़ दो ।
जाम नफरत का पिलाना छोड़ दो ।।
राह जीवन की कठिन कहते सभी
खौफ दीनो को दिखाना छोड़ दो ।।
भारती की वेदना बढ़ती सदा
पीठ पर छुरियाँ चलाना छोड़ दो ।।
प्रेम में ही सार दिखता है हमें
क्रोध को दिल में बिठाना छोड़ दो ।।
मन बने निर्मल यही इक कामना
पाप वसुधा पर कमाना छोड़ दो ।।
शान अपने देश की होगी न कम
हाथ दुश्मन से मिलाना छोड़ दो ।।
यार हँसकर घात सुख क्या पाओगे
झूठ की गंगा बहाना छोड़ दो ।।
के०आर० कुशवाह "हंस"
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