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सोमवार, 30 मार्च 2020

ग़ज़ल :- चाहतों की निशानियाँ तो हो, मोहब्बत़ - राहुल शुक्ल साहिल

ग़ज़ल़ 1
बह्र- 2122  1212  22
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लें क्या

तुझ से ही नैना चार कर लें क्या ।
खुद सजा तलब़गार कर लें क्या।।

चाहतों  की  निशानियाँ  तो  हो ।
मोहब्बत़ बेकरार  कर  लें  क्या ।।

आपकी   मेज़बानियाँ   तो  हों ।
प्यार की ही फुहार कर लें क्या ।।

जिन्दगी  में  भटक रहे  हैं हम ।
अब किनारे गुबार कर लें क्या ।।

आ  कभी  इन  खुली  बहारों  में ।
दिल  का  अब करार कर लें क्या ।।

 🌹डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

ग़ज़ल 2
बह्र -  212  212   212   212
काफ़िया - आ
रदीफ - हो गयी

भागते - भागते  इंतहा हो  गयी ।
देखते देखते वो जुदा  हो  गयी ।।

सोचता हूँ उसी की वफा ही मिले ।
चाहतें चाँदनी  पे  फिद़ा हो  गयी ।।

माँगता हूँ फ़िजा से उसे रात दिन ।
मन्नतों से शिला भी खुदा हो गयी ।।

कामिनी  तू  बनी  रागिनी तू बनी ।
जिन्दगी की रवानी सजा हो गयी ।।
      
रात अब थम गयी दिलरुबा आ गयी ।
संग  उसके  जवानी  जवां  हो  गयी ।।

       ©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

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