बह्र- 2122 1212 22
काफ़िया - आर
रदीफ़ - कर लें क्या
तुझ से ही नैना चार कर लें क्या ।
खुद सजा तलब़गार कर लें क्या।।
चाहतों की निशानियाँ तो हो ।
मोहब्बत़ बेकरार कर लें क्या ।।
आपकी मेज़बानियाँ तो हों ।
प्यार की ही फुहार कर लें क्या ।।
जिन्दगी में भटक रहे हैं हम ।
अब किनारे गुबार कर लें क्या ।।
आ कभी इन खुली बहारों में ।
दिल का अब करार कर लें क्या ।।
🌹डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
देखते देखते वो जुदा हो गयी ।।
चाहतें चाँदनी पे फिद़ा हो गयी ।।
मन्नतों से शिला भी खुदा हो गयी ।।
जिन्दगी की रवानी सजा हो गयी ।।
रात अब थम गयी दिलरुबा आ गयी ।
संग उसके जवानी जवां हो गयी ।।
बहुत खूब मिटत
जवाब देंहटाएं