बहर - 122 122 122 122
काफ़िया - आ
रदीफ़ - आकर
तुम्हें जिन्दगी का सहारा बनाकर।
समझ इश्क आया है ये दिल लगाकर।।
नही दूर दिल से मगर ये बता दो ,
भला मौन क्यूँ हो मुहब्बत जगाकर।।
सुहानी डगर का सुहाना सफ़र है,
कभी दूर जाना न सपने दिखाकर।।
निभाऊँ सदा हर कसम अब मुहब्बत,
सनम देख लेना कभी आजमाकर।।
न बंगला, न गाड़ी की ख्वाहिश है 'मेधा',
रखो मुझको दुल्हन सा,दिल में सजाकर।।
डाॅ.महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'
मैनपुरी
काफ़िया - आ
रदीफ़ - आकर
तुम्हें जिन्दगी का सहारा बनाकर।
समझ इश्क आया है ये दिल लगाकर।।
नही दूर दिल से मगर ये बता दो ,
भला मौन क्यूँ हो मुहब्बत जगाकर।।
सुहानी डगर का सुहाना सफ़र है,
कभी दूर जाना न सपने दिखाकर।।
निभाऊँ सदा हर कसम अब मुहब्बत,
सनम देख लेना कभी आजमाकर।।
न बंगला, न गाड़ी की ख्वाहिश है 'मेधा',
रखो मुझको दुल्हन सा,दिल में सजाकर।।
डाॅ.महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'
मैनपुरी
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