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मंगलवार, 31 मार्च 2020

ग़ज़ल:- तुम्हें जिन्दगी का सहारा बनाकर - डाॅ.महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'

बहर - 122   122   122   122
काफ़िया - आ
रदीफ़ - आकर

तुम्हें  जिन्दगी  का   सहारा  बनाकर।
समझ इश्क आया है ये दिल लगाकर।।

नही  दूर  दिल  से  मगर  ये  बता  दो ,
भला मौन  क्यूँ  हो मुहब्बत  जगाकर।।

सुहानी  डगर  का   सुहाना  सफ़र  है,
कभी  दूर  जाना न  सपने  दिखाकर।।

 निभाऊँ सदा हर कसम अब मुहब्बत,
 सनम  देख  लेना  कभी  आजमाकर।।

न बंगला, न गाड़ी की ख्वाहिश है 'मेधा',
रखो मुझको दुल्हन सा,दिल में सजाकर।।

डाॅ.महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'
मैनपुरी

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