देखो जहां मै रहता हूं खुशहाली ही खुशहाली है -
उन गलियों को छोड़ दिया
जिन पर दुष्ट रहा करते थे ।
जिनको ज्ञान नहीं था बिल्कुल
लड़ाई ही लड़ा करते थे ।।
बे मतलब में लोगों को
खूब सताने वालों का ।
आधी रात को बेफिजूल में
आने जाने वालों का ।।
वो जगह ही छोड़ दी मैंने
उन गलियों को और लोगों को।
जिनके घर में कुछ न था
खुद को शेर कहा करते थे ।।
नए शहर में नई जगह में
नई हवा चलाई है ।
मुझको मेरे इष्टदेव ने
मंजिल यहीं दिलाई है ।।
न गुंडा न कोई मवाली
न ही कोई बवाली है ।
देखो जहां मै रहता हूं
खुशहाली ही खुशहाली है ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
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