हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020

कवि जीतेन्द्र कानपुरी की कविता -

देखो जहां मै रहता हूं खुशहाली ही खुशहाली है -

उन गलियों को छोड़ दिया
जिन पर दुष्ट रहा करते थे ।
जिनको ज्ञान नहीं था बिल्कुल
लड़ाई ही लड़ा करते थे ।।
बे मतलब में लोगों को
खूब सताने वालों का ।
आधी रात को बेफिजूल में
आने जाने वालों का ।।
वो जगह ही छोड़ दी मैंने 
उन गलियों को और लोगों को।
जिनके घर में कुछ न था
 खुद को शेर कहा करते थे ।।
नए शहर में नई जगह में
नई हवा चलाई है ।
मुझको मेरे इष्टदेव ने 
मंजिल यहीं दिलाई है ।।
न गुंडा न कोई मवाली
न ही कोई बवाली है ।
देखो जहां मै रहता हूं
खुशहाली ही खुशहाली है ।।
लेखक कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.