ग़ज़ल 1
2122 1212 22
मेरी आँखों के आब जैसा था ।
वो महकते गुलाब जैसा था ।।
उसकी आँखों में वो नशा था ।
हां वो बिलकुल शराब जैसा था ।।
ख्वाहिशों के हुजूम बढते तब ।
वो तो रंगीन ख्वाब जैसा था ।।
तू तो मेरी हदो से बाहर था ।
कोई हीरा नायाब जैसा था ।।
मेरी मंज़िल कभी नहीं था वो ।
फिर भी मेरे जनाब जैसा था ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 2
1222 1212 1222 1222
दिले नादान को न पूछ कैसे हमने समझाया ।
कभी मुट्ठी में आसमां थाली में चाँद दिखलाया ।।
गुज़ारी एक उम्र हमने तुम्हारे इंतज़ार में ।
न टूटे ख्वाब नींद से अजी खुद को न उठाया ।।
मचलती लहरों पे अक्सर तिरी तस्वीर बनती है ।
बड़ी शिद्द्त से ये हुनर मैनें आँखों को सिखलाया ।।
अलग ये बात है कि तुम निभा पाए न कुछ वादे ।
तुम्हारे आने की आहट से हर पल दिल को धड़काया ।।
मेरी आँखों में तेरे वस्ल के मंज़र मचलते है ।
कहीं गिर जाए न मोती जो हर पल बचाया है ।।
नमिता "नज़्म "
ग़ज़ल 3
212 212 212 22
मौसमों से बदल कैसे जाते हो ।
क्यों मुझे इतना तुम सताते हो ।।
मेरी सांसो को तुम रोक कर तुम अब ।
क्यों यूं रफ्तार दिल की घटाते हो ।
आँखों में ख्वाब भी अब नहीं यारा ।
क्यों मिरी अब नींदे तुम उड़ाते हो ।।
अपने ही दिल से की ये बगावत क्यों ।
कैसी चाहत ये जो तुम निभाते हो ।।
कतरा कतरा बचा है मिरे अंदर ।
क्यों उसे लहरों से तुम लड़ाते हो ।।
नमिता "नज़्म"
गज़ल 4
2122 2122 212
उल्फत होनी थी इशारा हो गया ।
इक कदम ठहरें किनारा हो गया ।।
हम तो थे तन्हा वो बन साथी आये ।
आसमाँ भी फिर हमारा हो गया ।।
चलती थमती जिंदगी तेरी खातिर ।
अब मुकम्मल वो सहारा हो गया ।।
दोस्तों में थे हम बहुत प्यारे अजी ।
तुमसे मिलकर दिल तुम्हारा हो गया ।।
साथ मेरे अब सफर में नज़्म है ।
खूबसूरत सा नज़ारा हो गया ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 5
2212 1221 2122
पहचान पर जमी गर्द धुल रही है ।
ख्वाहिश की बेड़ियाँ आज खुल रही है ।।
मेरा वजूद अब उभरने लगा है ।
अब जिंदगी यूँ ही चाक सिल रही है ।।
तेरी निगाहों में छिपती यही मुहब्बत ।
यूँ हमसफ़र की खुशबु मिल रही है ।।
ये मेरा दिल धड़कता तेरे लिऐ ही ।
मैं राह में खड़ी धूप भी खिल रही है ।।
उससे मिला मेरा दिल यूँ नज़्म जैसे ।
अब प्यार की मिठास सी घुल रही है ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 6
1222 1222 1222 1222
ये जो उल्फत हैं अब सारे जमाने को बतानी है ।
उसी के साथ ही अब जिंदगी मुझको बितानी है ।।
ये दरख़्त मुहब्बत और जज़्बातो के है यारा ।
इन्ही की छाँव छोटी आशियाँ अपनी बनानी है ।।
अलग से तो कोई लम्हा नहीं आयेगा अब अपना ।
सफर में ही सभी ख़्वाहिश यूँ ही मिलकर सजानी है ।।
ये तेरे मेरे ख्वाबो के चमकते जुगनू है अब तो ।
इन्ही से अब हमें मिलकर अंधेरी को हरानी है ।।
हया तो मुश्किलें देती रहेगी "नज़्म" दस्तक पर ।
इन्हें तो साथ मिल-जुल कर हमें ही तो निभानी है ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 7
2122 1222 1122 22
दिल की मानिंद कोई और मचलता क्यों है ।
है अगर संग तो वो मोम सा गलता क्यों है ।।
मेरे दिल में है क्या मै कैसे बताउ उसको ।
हमसफ़र वो नहीं तो साथ में चलता क्यों है ।।
मेरा दामन भरा है चाँद सितारों से पर ।
मेरी क़िस्मत में फिर अँधेरा ही दिखता क्यों है ।।
इंतजार कभी अब खत्म नहीं होगा पर । आइना देख कर वो रोज सँवरता क्यों है ।।
मैंने माना नहीं मिलना है तुझे अब मुझसे ।
तेरी नज़रो में इतना प्यार छलकता क्यों है ।।
नमिता " नज़्म "
ग़ज़ल 8
2122 1222 12
सारे एहसास तुझसे मिलते हैं ।
तुझसे ज़ज्बात मेरे मिलते हैं ।।
देख बरसे है मुझपे अब बादल ।
तुझसे बरसात भी तो मिलते हैं
मेरे क़दमो को तेरा साथ मिले ।
आओं हालात से हम मिलते हैं ।।
मैं करूँ दिल की बातें तुझसे सब ।
अपने ख्यालात भी तो मिलते हैं ।।
मर के भी मैं बनूगीं तेरी ही ।
हर ज़नम में अगर वो मिलते हैं ।।
नमिता "नज़्म "
9 अगस्त 2018
2122 1212 22
मेरी आँखों के आब जैसा था ।
वो महकते गुलाब जैसा था ।।
उसकी आँखों में वो नशा था ।
हां वो बिलकुल शराब जैसा था ।।
ख्वाहिशों के हुजूम बढते तब ।
वो तो रंगीन ख्वाब जैसा था ।।
तू तो मेरी हदो से बाहर था ।
कोई हीरा नायाब जैसा था ।।
मेरी मंज़िल कभी नहीं था वो ।
फिर भी मेरे जनाब जैसा था ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 2
1222 1212 1222 1222
दिले नादान को न पूछ कैसे हमने समझाया ।
कभी मुट्ठी में आसमां थाली में चाँद दिखलाया ।।
गुज़ारी एक उम्र हमने तुम्हारे इंतज़ार में ।
न टूटे ख्वाब नींद से अजी खुद को न उठाया ।।
मचलती लहरों पे अक्सर तिरी तस्वीर बनती है ।
बड़ी शिद्द्त से ये हुनर मैनें आँखों को सिखलाया ।।
अलग ये बात है कि तुम निभा पाए न कुछ वादे ।
तुम्हारे आने की आहट से हर पल दिल को धड़काया ।।
मेरी आँखों में तेरे वस्ल के मंज़र मचलते है ।
कहीं गिर जाए न मोती जो हर पल बचाया है ।।
नमिता "नज़्म "
ग़ज़ल 3
212 212 212 22
मौसमों से बदल कैसे जाते हो ।
क्यों मुझे इतना तुम सताते हो ।।
मेरी सांसो को तुम रोक कर तुम अब ।
क्यों यूं रफ्तार दिल की घटाते हो ।
आँखों में ख्वाब भी अब नहीं यारा ।
क्यों मिरी अब नींदे तुम उड़ाते हो ।।
अपने ही दिल से की ये बगावत क्यों ।
कैसी चाहत ये जो तुम निभाते हो ।।
कतरा कतरा बचा है मिरे अंदर ।
क्यों उसे लहरों से तुम लड़ाते हो ।।
नमिता "नज़्म"
गज़ल 4
2122 2122 212
उल्फत होनी थी इशारा हो गया ।
इक कदम ठहरें किनारा हो गया ।।
हम तो थे तन्हा वो बन साथी आये ।
आसमाँ भी फिर हमारा हो गया ।।
चलती थमती जिंदगी तेरी खातिर ।
अब मुकम्मल वो सहारा हो गया ।।
दोस्तों में थे हम बहुत प्यारे अजी ।
तुमसे मिलकर दिल तुम्हारा हो गया ।।
साथ मेरे अब सफर में नज़्म है ।
खूबसूरत सा नज़ारा हो गया ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 5
2212 1221 2122
पहचान पर जमी गर्द धुल रही है ।
ख्वाहिश की बेड़ियाँ आज खुल रही है ।।
मेरा वजूद अब उभरने लगा है ।
अब जिंदगी यूँ ही चाक सिल रही है ।।
तेरी निगाहों में छिपती यही मुहब्बत ।
यूँ हमसफ़र की खुशबु मिल रही है ।।
ये मेरा दिल धड़कता तेरे लिऐ ही ।
मैं राह में खड़ी धूप भी खिल रही है ।।
उससे मिला मेरा दिल यूँ नज़्म जैसे ।
अब प्यार की मिठास सी घुल रही है ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 6
1222 1222 1222 1222
ये जो उल्फत हैं अब सारे जमाने को बतानी है ।
उसी के साथ ही अब जिंदगी मुझको बितानी है ।।
ये दरख़्त मुहब्बत और जज़्बातो के है यारा ।
इन्ही की छाँव छोटी आशियाँ अपनी बनानी है ।।
अलग से तो कोई लम्हा नहीं आयेगा अब अपना ।
सफर में ही सभी ख़्वाहिश यूँ ही मिलकर सजानी है ।।
ये तेरे मेरे ख्वाबो के चमकते जुगनू है अब तो ।
इन्ही से अब हमें मिलकर अंधेरी को हरानी है ।।
हया तो मुश्किलें देती रहेगी "नज़्म" दस्तक पर ।
इन्हें तो साथ मिल-जुल कर हमें ही तो निभानी है ।।
नमिता "नज़्म"
ग़ज़ल 7
2122 1222 1122 22
दिल की मानिंद कोई और मचलता क्यों है ।
है अगर संग तो वो मोम सा गलता क्यों है ।।
मेरे दिल में है क्या मै कैसे बताउ उसको ।
हमसफ़र वो नहीं तो साथ में चलता क्यों है ।।
मेरा दामन भरा है चाँद सितारों से पर ।
मेरी क़िस्मत में फिर अँधेरा ही दिखता क्यों है ।।
इंतजार कभी अब खत्म नहीं होगा पर । आइना देख कर वो रोज सँवरता क्यों है ।।
मैंने माना नहीं मिलना है तुझे अब मुझसे ।
तेरी नज़रो में इतना प्यार छलकता क्यों है ।।
नमिता " नज़्म "
ग़ज़ल 8
2122 1222 12
सारे एहसास तुझसे मिलते हैं ।
तुझसे ज़ज्बात मेरे मिलते हैं ।।
देख बरसे है मुझपे अब बादल ।
तुझसे बरसात भी तो मिलते हैं
मेरे क़दमो को तेरा साथ मिले ।
आओं हालात से हम मिलते हैं ।।
मैं करूँ दिल की बातें तुझसे सब ।
अपने ख्यालात भी तो मिलते हैं ।।
मर के भी मैं बनूगीं तेरी ही ।
हर ज़नम में अगर वो मिलते हैं ।।
नमिता "नज़्म "
9 अगस्त 2018
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