तन को भिगोया ।
व्याकुल इस मन को
थोड़ा गुदगुदाया ।
तन जब है भीगा
मन भी हर्षाया ।
बरसा का मौसम
सभी को है भाया ।
नदियाँ और झरने
कल कल करते ।
मस्ती में अपनी
मंजिल पर जाते ।
ताल और तलैया
नही है अब प्यासे
पोखर और कुऐ
भी नही है उदासे ।
बारिश ने सबकी
प्यास है बुझा दी ।
लबालब खेतो में
भर गया है पानी
चारो तरफ है
हरियाली और पानी ।
बसुन्धरा खुश है
पेड़ पौधे,भी खुश है ।
सावन के महीने में
हर कोई खुश है ।
गोरी का तन भी
पानी से भीगा है ।
पहनी जो तन पर
चोली भी भीगी है ।
गीली ये चोली
तन से चिपक जाये ।
पिया बिन मन को
बहुत ही सताये ।
पपीहा सा प्यासा
मन तड़फता है ।
स्वाति नक्षत्र के
पानी का वो प्यासा है ।
गोरी का मन भी
पिया बिन प्यासा है ।
बरसा की बूंदों ने
तन तो भिगोया है
मन तो अभी भी
उसका प्यासा है ।
व्याकुल मन गोरी का
पिया को मुरझाया है ।
बरसा की बूंदों ने
उसको तड़फाया है ।
चंचल मन करता ठिठोरी
मन ही मन सोचकर
पपीहे सी,ब्याकुल है गोरी ।
अनन्तराम चौबे
* अनन्त *
जबलपुर म प्र
1668/562
9770499027
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