हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

गुरुवार, 23 अगस्त 2018

बरसा की बूंदों ने तन को भिगोया । व्याकुल इस मन को थोड़ा गुदगुदाया । तन जब है भीगा मन भी हर्षाया । - अनन्तराम चौबे

बरसा की बूंदों ने
तन को भिगोया ।
व्याकुल इस मन को
थोड़ा गुदगुदाया ।
तन जब है भीगा
मन भी हर्षाया ।
बरसा का मौसम
सभी को है भाया ।
नदियाँ और झरने
कल कल करते ।
मस्ती में अपनी
मंजिल पर जाते ।
ताल और तलैया
नही है अब प्यासे
पोखर और कुऐ
भी नही है उदासे ।
बारिश ने सबकी
प्यास है बुझा दी ।
लबालब खेतो में
भर गया  है पानी
चारो तरफ है
हरियाली और पानी ।
बसुन्धरा खुश है
पेड़ पौधे,भी खुश है ।
सावन के महीने में
हर कोई खुश है ।
गोरी का तन भी
पानी से भीगा है ।
पहनी जो तन पर
चोली भी भीगी है ।
गीली ये चोली
तन से चिपक जाये ।
पिया बिन मन को
बहुत ही सताये ।
पपीहा सा प्यासा
मन तड़फता है  ।
स्वाति नक्षत्र के
पानी का वो प्यासा है ।
गोरी का मन भी
पिया बिन प्यासा है ।
बरसा की बूंदों ने
तन तो भिगोया है
मन तो अभी भी
उसका प्यासा है ।
व्याकुल मन गोरी का
पिया को मुरझाया है ।
बरसा की बूंदों ने
उसको तड़फाया है ।
चंचल मन करता ठिठोरी
मन ही मन सोचकर
पपीहे सी,ब्याकुल है गोरी ।

    अनन्तराम चौबे
       * अनन्त *
    जबलपुर म प्र
    1668/562
   9770499027

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.