जहाँ उपजते रणबाँकुरे न्याय मिले सबको।
तपोभूमि ऋषियो की भारत जाने सकल भुवन,
जहाँ उपजते माणिक हीरा स्वर्ण मिले हमको।
यवन अनेक यहाँ आये नहिं हिला सके तृण को।
विजय मिले इस हेतु बनाया मीत भी छल बल को।
क्षमा दया का दान दिया पर भूल हुई हम से,
छुरा घोप कर पीठ सताया सब में निर्बल को.।
रौद्र रूप है बता दिया हमने सारे जग को।
परशुराम के अवतारी हम ज्ञात हुआ सबको।
मचा युद्ध तांडव जब भी आश्चर्य हुआ नभ को।
धर्म कार्य रक्षार्थ जन्म लेना है पड़ा रब को।
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ओजकवि प्रदीप ध्रुवभोपाली म.प्र.
भोपाल, दिनाँक.20/08/2018
मो.-09589349070
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