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रविवार, 19 अगस्त 2018

ग़ज़ल - उम्रे रवाँ कटी है बड़ी बेवसी के साथ - कौसर गौसपुरी

उम्रे रवाँ कटी है बड़ी बेवसी के साथ ।
अच्छा नहीं हुआ है मेरी ज़िंदगी के साथ ।

हम पर जहाँ ने ज़ुल्मों सितम किस लिए किए
,
हमने बुरा किया भी नहीं है किसी के साथ।

मुद्दत के बाद खुशियों के लम्हात गर कभी,
मिलते भी हैं तो हमसे बड़ी बेरुखी केसाथ।

लगता है अपनापन सा बयाबाँ को देखकर,
कुछ ऐसा खास रिश्ता है आवारगी के साथ।

शर्माएँ क्यों न देख उन्हें चांद सितारे,
आए हैं सरे बाम वो बेपर्दगी के साथ ।

" कौसर "मैं परीशान हूं बस इतना सोंच कर,
 कैसे कटेगी उम्र किसी अजनबी के साथ।
कौसर गौसपुरी


             

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