माँ प्यारी, माँ कितनी प्यारी
माँ जग की तू है उजियारी
माँ बचपन का झूला पलना
माँ नदियाँ और मीठा झरना।
माँ आशीष हो, जैसे बातेंं
माँ बिन नही कटती है रातें
माँ मोहन ममता की धारा
जैसे माँ हो गंग किनारा।
माँ बिहबल नित ओझल होती
आँखें पकड़ पकड़ माँ रोती
दादी की माँ पहली पोती
माँ की गोदी स्वर्ग पिरोती।
माँ प्यारी, माँ कितनी प्यारी
माँ जग की है अपसारी
माँ मेरी है भोरी - भारी
सबसे सुन्दर प्यारी - प्यारी।
माँ प्यारी, माँ कितनी प्यारी।।
©आर्य मोहन राना "अभय"
मथुरा
9458468826
शानदार आलेख,प्रेरणादायक कविताएं
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