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रविवार, 19 अगस्त 2018

सारे सपनों को छोड़ रहा हूँ , लो मैं बैशाखी तोड़ रहा हूँ - अंकित विशेष

सारे सपनों को छोड़ रहा हूँ ,
लो मैं बैशाखी तोड़ रहा हूँ  ,
हाथों में हाथ नही देना तुम ,
अब मेरा साथ नही देना तुम ,
मत देना कुछ दान नही करना ,
अब कोई अहसान नही करना ,
तुम कहते अनचाहा किस्सा हूँ ,
पर मैं भी तो घर का हिस्सा हूँ ,
कोना बेकार नही कहना तुम ।
मुझको लाचार नही कहना तुम ॥

मुझे कटे पंखों से उड़ना है ,
इस सारी दुनिया से जुडना है ,
मुझको भी मंजिल तक जाना है ,
अपनी हर चाहत को पाना है ,
अब हालातों से घबराऊँ क्यूँ
मैं याचक बन कर फैलाऊँ क्यूँ ,
मैं जैसा भी हूँ शरमाऊँ क्यूँ
इस जीवन को व्यर्थ गवाऊँ क्यूँ ,
जीवन धिक्कार नही कहना तुम ।
मुझको लाचार नही कहना तुम ॥

पथ मुश्किल मेरा आसान नही ,
गर डर जाये फिर इंसान नही ,
माना इन पैरों में जान नही ,
ऐसा नही है समाधान नही ,
ये निश्चय मेरा अब चलना है ,
कभी गिरना और सम्भलना है ,
हो मुमकिन अह़सास बचा लेना ,
थोडा़ तो विश्वास बचा लेना ,
बिन परखे हार नही कहना तुम ।
मुझको लाचार नही कहना तुम ॥

-:- अंकित विशेष

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