नदी की धार, समन्दर, लहर किनारों ने ।
लगाया पार, हमेशा ही तेज़ धारों ने ।।
सभी को रौशनी मिलती है आसमाँ से,
हमें तो अंधेरा ही बख्शा है चाँद तारों ने ।।
असीर हौसला उड़ने का दे रहे लेकिन,
हमारे पंख काट दिये हैं हमारे सहारों ने ।।
किसे करें शिकायत कि आईना अपना,
किया है चूर -चूर खुद अपने ही प्यारों ने ।।
' निशा 'खिज़ा ने ज़रूर हमारा साथ दिया,
फ़रेब तो बारहा हमको दिया बहारों ने ।।
डा. नसीमा निशा
गज़ल 2
वज्न - 2122 1212 22
दर्दे दिल की किताब रहने दो ।
ये मुसलसल अज़ाब रहने दो ।।
नींद तो मेरी आपने छींनी ।
मेरी आँखों में ख्वाब रहने दो ।।
हर खुशी आपको मुबारक हो ।
मेरी आँखों में आब रहने दो ।।
इश्क में हमने तुमने क्या पाया ।
फ़िर करेंगे हिसाब रहने दो ।।
आप से क्या वफ़ा की उम्मीदें ।
अब तो छॊडॊ जनाब रहने दो ।।
ये बहाना है लड़खड़ाने का ।
मेरी आंखें शराब रहने दो ।।
तुमसे कोई सवाल नही मेरा ।
पास अपने जवाब रहने दो ।।
सब हक़ीक़त निशा पता है अब ।
कैसे हो तुम नवाब रहने दो ।।
ड़ा० नसीमा निशा
गज़ल 3
उसके वहमो गुमान में रहना ।
हर घड़ी इम्तिहान में रहना ।।
बन के बादल किसी की यादॊ का
फ़िक़्र के आसमान मे रहना ।।
दुश्मनी क्यों किसी से हम रख्खें ।
कब तलक है जहान में रहना ।।
रूह भी चाहती है आज़ादी ।
क्यों बदन के मक़ान में रहना ।।
करके एहसान जो जताते हैं ।
क्यों समझते हैं शान में रहना ।।
तू तो सूरज है रौशनी देकर ।
हर घड़ी तुम ढलान में रहना ।।
जानते हैं कि दुनिया फ़ानी है ।
क्यों यहाँ आन-बान में रहना ।।
पर-क़तर जायें ये 'निशा' फ़िर भी ।
हौसलो से उड़ान में रहना ।।
ड़ा० नसीमा निशा
गज़ल 4
वज्न - 212 212 212 212
सिस्कियां ले रहे आज रिश्ते सभी ।
झूठ लगने लगे लोग हंसते सभी ।।
हर तरफ़ साज़िशो की चली है हवा ।
खौफ़ज़द हो रहे सब्ज़-पत्ते सभी।।
भाव इंसानियत का उतरता गया ।
आदमी हो गये आज सस्ते सभी ।।
हमसफ़र वो नहीं साथ फ़िर भी रहे ।
एक हम ही नही लोग कहते सभी ।।
उठ रहा है धुआँ अब यहाँ इसलिये ।
बुझ गए दीप अब जलते-जलते सभी ।।
भूख से बिलबिलाती गरीबी यहाँ ।
देख कर भी मियाँ आगे बढ़ते सभी ।।
कर 'निशा' जानो-दिल तू खुदा पे फ़िदा ।
एक उसके सिवा गैर लगते सभी ।।
ड़ा० नसीमा निशा
ग़ज़ल 5
वज्न - 122 122 122 122
ये दिल जैसे जैसे मचलता रहेगा ।
वही दर्द ग़ज़लों में ढलता रहेगा ।।
ये फ़िरकापरस्ती का आलम जहाँ में ।
कभी ख़त्म होगा या चलता रहेगा ।।
कहाँ एक सा कुछ रहा है जहाँ में ।
ये मौसम है प्यारे, बदलता रहेगा ।।
कोई बेइमानी नहीं अब चलेगी ।
ये नेकी का सिक्का है चलता रहेगा।।
सिला चाहतो का भले तुम न देना ।
वफ़ा का दिया फ़िर भी जलता रहेगा ।।
नज़र दिल तुम्हारा ज़बा भी तुम्हारी ।
हरिक हक़ तुम्हें ही क्या मिलता रहेगा ।।
"निशा "चाहने से न बदलेगी दुनिया ।
ज़माना तुम्हें ही बदलता रहेगा ।।
डॉ नसीमा "निशा"
ग़ज़ल 6
वज्न- 222 221 122
होने को मशहूर हुए हैं ।
अपनो से ही दूर हुए हैं ।।
थी मजबूरी थाम सके न ।
अच्छे दिन काफ़ूर हुए हैं ।।
घर की क़ीमत जाने वो ही ।
घर से जो भी दूर हुए हैं ।।
दौलत का जादू चढें जब ।
रिश्ते सब नासूर हुए हैं ।।
उतरा हैं जो उम्रे-नशा अब ।
मंज़र सब बेनूर हुए हैं ।।
भूलेंगे हम देखो 'निशा' सब ।
आज बहुत मजबूर हुए हैं ।।
ड़ा० नसीमा निशा
ग़ज़ल 7
212 2212 2212
ज़िन्दगी बेजान है तेरे बिना ।
कुछ नहीं आसान है तेरे बिना ।।
क्या कहें कैसे कहें ए जानेजाँ ।
ज़िन्दगी हलकान है तेरे बिना ।।
इश्क न जाने ये कैसा मर्ज़ है ।
खुद से है अंजान हम - तेरे बिना ।।
भाग जाता है हदो को तोड़ कर ।
दिल बहुत नादान है तेरे बिना ।।
थी निशा की शोखियाँ अनमोल सी ।
ज़िन्दगी वीरान है तेरे बिना l।
ड़ा० नसीमा निशा
गज़ल 8
222 221 122
देखो तो दीवार कहाँ है ।
दो धारी तलवार कहाँ है ।।
तुम भी इंसा ,हम भी इंसा ।
सोचो तो तक़रार कहाँ है ।।
गंगा- जल जो चाहे पी ले ।
मज़हब पहरेदार कहाँ है ।।
साथ जियेगें, साथ मरेगें ।
बोलो वो इक़रार कहाँ है ।।
एक फ़लक है एक ज़मी है ।
हमको भी इंकार कहाँ है ।।
हाथ पकड ग़र साथ चले तो ।
फिर मंन्ज़िल दुश्वार कहाँ है ।।
आज निशा सब रिश्ते बदले ।
पहले जैसा प्यार कहाँ है ।।
ड़ा० नसीमा निशा
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