हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

गुरुवार, 23 अगस्त 2018

4:07 am

बरसा की बूंदों ने तन को भिगोया । व्याकुल इस मन को थोड़ा गुदगुदाया । तन जब है भीगा मन भी हर्षाया । - अनन्तराम चौबे

बरसा की बूंदों ने
तन को भिगोया ।
व्याकुल इस मन को
थोड़ा गुदगुदाया ।
तन जब है भीगा
मन भी हर्षाया ।
बरसा का मौसम
सभी को है भाया ।
नदियाँ और झरने
कल कल करते ।
मस्ती में अपनी
मंजिल पर जाते ।
ताल और तलैया
नही है अब प्यासे
पोखर और कुऐ
भी नही है उदासे ।
बारिश ने सबकी
प्यास है बुझा दी ।
लबालब खेतो में
भर गया  है पानी
चारो तरफ है
हरियाली और पानी ।
बसुन्धरा खुश है
पेड़ पौधे,भी खुश है ।
सावन के महीने में
हर कोई खुश है ।
गोरी का तन भी
पानी से भीगा है ।
पहनी जो तन पर
चोली भी भीगी है ।
गीली ये चोली
तन से चिपक जाये ।
पिया बिन मन को
बहुत ही सताये ।
पपीहा सा प्यासा
मन तड़फता है  ।
स्वाति नक्षत्र के
पानी का वो प्यासा है ।
गोरी का मन भी
पिया बिन प्यासा है ।
बरसा की बूंदों ने
तन तो भिगोया है
मन तो अभी भी
उसका प्यासा है ।
व्याकुल मन गोरी का
पिया को मुरझाया है ।
बरसा की बूंदों ने
उसको तड़फाया है ।
चंचल मन करता ठिठोरी
मन ही मन सोचकर
पपीहे सी,ब्याकुल है गोरी ।

    अनन्तराम चौबे
       * अनन्त *
    जबलपुर म प्र
    1668/562
   9770499027

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

7:59 pm

हे आर्य भूमि भारत वसुन्धरा कोटि नमन तुमको - प्रदीप ध्रुवभोपाली

हे आर्य भूमि भारत वसुन्धरा कोटि नमन तुमको।

जहाँ उपजते रणबाँकुरे न्याय मिले सबको।

तपोभूमि ऋषियो की भारत जाने सकल भुवन,

जहाँ उपजते माणिक हीरा स्वर्ण मिले हमको।

यवन अनेक यहाँ आये नहिं हिला सके तृण को।

विजय मिले इस हेतु बनाया मीत भी छल बल को।

क्षमा दया का दान दिया पर भूल हुई हम से,

छुरा घोप कर पीठ सताया सब में निर्बल को.।

रौद्र रूप है बता दिया हमने सारे जग को।

परशुराम के अवतारी हम ज्ञात हुआ सबको।

मचा युद्ध तांडव जब भी आश्चर्य हुआ नभ को।

धर्म कार्य रक्षार्थ जन्म लेना है पड़ा रब को।









★★★★★★★★★★
ओजकवि प्रदीप ध्रुवभोपाली म.प्र.
भोपाल, दिनाँक.20/08/2018
मो.-09589349070
★★★★★★★★★★

सोमवार, 20 अगस्त 2018

4:59 pm

सैनिक सीना तान चला !! देखो-देखो अब सिमा पर! सैनिक सीना तान चला!! - धनंजय सिते


    !! सैनिक सीना तान चला !!
देखो-देखो अब सिमा पर!
सैनिक सीना तान चला!!
१)माँ कि ममता,आशिश पिता का
         भाई का,अभिमान चला!
                       देखो,देखो.....
२)चिंता रख परिवार कि दिलमे
      अश्क लेकर आखो मे चला!
                      देखो,देखो......
३)माँ भारती को रख दिल मे ले
       तिरंगे का सम्मान चला!
                देखो,देखो..........
४)ओंझल तक परिवार को देखा
        फिरभी हिम्मत बांध चला!
                    देखो देखो.........
५)वह जागता रहता है सिमा पर
    जब गहरि निंद का जोर चला!
                    देखो देखो ........
६)बनकर सरहद पर दश्मन का
       देखो कैसे काल चला!
                 देखो देखो...........
७)दुश्मन को है मार गिराना
     लक्ष जिगर मे पाल चला!
              देखो देखो..........
८)प्यार बहन कि राखी का ले
        पत्नी का श्रृंगार चला!
                 देखो देखो.........
९)मातृभुमी के रक्षा कि जीद
      लेकर जन-मन गान चला!
                देखो देखो...........
१०)देशभक्ती का जुनून है,सोचे
        लु दुश्मन कि जान चला!
                 देखो देखो..........
११)झेल मुसिबत को सरहद पर
       चाहे लडते दे दु जाँन चला!
                    देखो देखो.........
१२)बनकर हिंन्दुस्थानियो कि
          देखो कैसे ढाल चला!
                     देखो देखो......
१३)मातृभूमी को कर दु जिवन
          सोच के ये कुर्बान चला!
                  देखो देखो...........
----------------------------------------

हास्य,व्यंग,ओज,पँरोडि कवि
एवं गितकार-धनंजय सिते(राही)
लोधीखेडा,तह-सौसर जिला-छिंदवाडा(म.प्र.)
Mob-9893415829

रविवार, 19 अगस्त 2018

9:32 pm

कुछ ख्वाहिशें थी मेरी , जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी । - जसवंत लाल

कुछ ख्वाहिशें थी मेरी , 
जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।
कुछ अरमानों की झोपड़िया , 
मजबूरियों से ढ़ह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

बचपन में देखे थे मैने , 
बड़े-बड़े और प्यारे सपने ।
लेकिन जवानी में आते-आते ,
सपनों की दुनिया बह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

कोशिस बहुत की थी मैने ,
बड़ा अफसर बन जाने की ।
वक्त के आगे एक ना चली ,
बस घर की जिम्मेदारी रह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

सपने में गड़गड़ाहट हुई ,
उम्मीदों की बिजलियां भी चमकी ।
लेकिन किस्मत की बारिश से जमीन ,
अंदर से सुखी रह गयी  ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

कभी थी मरने की ख्वाहिश ,
कभी होती जीने की इच्छा ।
इस जिंदगी की कशमकश में ,
नैया , डूबती-डूबती रह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

वो दिन भी देखे थे मैंने , 
जब यमराज मेरे पास से गुजरे ।
शायद कुछ उपकार किये थे हमने ,
तभी फिर से , ये जिंदगी रह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

छोटी सी उम्र है लेकिन ,
छाछ , फूँक-फूँक कर पीता हूँ ।
तजुर्बों से आया  फ़न लेकिन ,
ख्वाहिश , अधूरी रह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

सूट-बूट और पीए-सीए ,
सरकारी गाड़ी की ख्वाहिश ।
लेकिन किस्मत का खेल निराला ,
कलम हाथ में रह गयी ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।

थाम ले , "जसवंत" तू कलम ,
और निरन्तर लिखता जा ।
देख फिर सुहाने सपने  ,
ये कलम मुझसे कह रही ।।
कुछ ख्वाहिशें थी मेरी ...................जो सिर्फ ख्वाहिश बन कर रह गयी ।।।
                    जसवंत लाल खटीक
                   
                    रतना का गुड़ा ,देवगढ़


6:47 pm

ग़ज़ल - उम्रे रवाँ कटी है बड़ी बेवसी के साथ - कौसर गौसपुरी

उम्रे रवाँ कटी है बड़ी बेवसी के साथ ।
अच्छा नहीं हुआ है मेरी ज़िंदगी के साथ ।

हम पर जहाँ ने ज़ुल्मों सितम किस लिए किए
,
हमने बुरा किया भी नहीं है किसी के साथ।

मुद्दत के बाद खुशियों के लम्हात गर कभी,
मिलते भी हैं तो हमसे बड़ी बेरुखी केसाथ।

लगता है अपनापन सा बयाबाँ को देखकर,
कुछ ऐसा खास रिश्ता है आवारगी के साथ।

शर्माएँ क्यों न देख उन्हें चांद सितारे,
आए हैं सरे बाम वो बेपर्दगी के साथ ।

" कौसर "मैं परीशान हूं बस इतना सोंच कर,
 कैसे कटेगी उम्र किसी अजनबी के साथ।
कौसर गौसपुरी


             
6:40 pm

तिरंगे की कसम खा के यही ऐलान करता हूँ - प्रदीप ध्रुवभोपाली

तिरंगे की कसम खा के यही ऐलान करता हूँ ।
सिपाही मैं वतन का हूँ वतन पे आज मरता हूँ ।।
मेरे वीरो चले आओ पुकारे भारती माँ जब
मिटा दें पल में दुश्मन को रगों में जोश भरता हूँ ।।

★★★★★★★★★★★★
ओजकवि प्रदीप ध्रुवभोपाली.म.प्र
भोपाल, दिनाँक.14/08/2018
मो.09893677052
★★★★★★★★★★★★
6:29 pm

नहीं पूछो किसी से आज उन्हें किस किस ने खोया है - राजेश शर्मा

नहीं पूछो किसी से आज उन्हें किस किस ने खोया है ।
समर्पित है नमन उनको जिन्हें यह देश रोया है ।।
रहा किरदार तो यारो यहाँ अवतार जैसा था,
कि पूरे राष्ट्र को जिसने एक धागे में पिरोया है ।।

श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी को हार्दिक नमन!
राजेश शर्मा 









8:27 am

अटल अटल थे अभी अटल है । कल तक जो इस पृथ्वी पर थे । वही अटल आज व्रह्मविलीन हो गये । धरा पर जिसका नाम अटल था । आकाश में जाकर अटल हो गया है । - अनन्तराम चौबे "अनन्त"

अटल अटल थे
अभी अटल है ।
कल तक जो
इस पृथ्वी पर थे ।
वही अटल आज
व्रह्मविलीन हो गये ।
धरा पर जिसका
नाम अटल था ।
आकाश में जाकर
अटल हो गया है ।
तारो के संग हिल
मिल गया है ।
आज सभी के
दिलो में बसा है ।
खोने का तो
गम बहुत है ।
होनी को जो
करना था ।
अपने समय पर
वही हुआ है ।
अटल सत्य
यही है यारो ।
जीवन मृत्यु
अटल सत्य है ।
जीवन जिसको
यहाँ मिला है ।
मृत्यु उसकी
अटल सत्य है ।
यही सत्य है
यही सत्य है ।
जीवन का भी
यही सत्य है ।

अनन्तराम चौबे  अनन्त

जबलपुर म प्र
                                 1658/559
                              9770499027
7:25 am

देश अपना प्यारा, मिलकर हम इसे सजायेंगे। आओ झूमें गायें, गुण हम इसके सब गायेंगे - भुवन बिष्ट

देश अपना प्यारा, 
             मिलकर हम इसे सजायेंगे। 
आओ झूमें गायें, 
               गुण हम इसके सब गायें ।। 

आजादी की अलख जगी, 
               वीरों ने प्राण गवाये थे। 
रक्षा भारत भूमि की, 
               जो लौट के घर न आये थे।। 
बँधे एकता सूत्र में हम, 
                झलक यह दिखलायेंगे। 
देश अपना प्यारा, 
                 मिलकर हम इसे सजायेंगे। ........
शीश हिमालय मुकुट बना, 
                 सागर भी पाँव पखारे है। 
जो भारत से है टकराया, 
                 हम जीते वह हारे हैं।। 
भारत माँ की आन बान, 
                हमको प्राणों से प्यारे हैं। 
हर भारतवासी देखो अब, 
                इसको आज सवारे है।। 
भारत माँ की चरण धूलि से, 
                आओ तिलक लगायेंगे। 
देश अपना प्यारा, 
                  मिलकर हम इसे सजायेंगे। ........
सारे जग में देश अपना, 
                   भारत सबसे प्यारा है। 
हर जन जन इसको देखो, 
                    अपने हाथ सवाँरा है।। 
तोड़ न पायेगा कोई भी, 
                      एकता की जंजीरों को। 
नमन करें हम सदा सदा ही, 
                     देश के अपने वीरों को।। 
मिलकर आओ बगिया के हम, 
                      बनें पुष्प महकायेंगे। 
देश अपना प्यारा, 
                      मिलकर हम इसे सजायेंगे। ......


                      ............भुवन बिष्ट
                               (रानीखेत)उत्तराखण्ड 


3:12 am

ग़ज़ल- उमर घटती नही यूँ तो किसी के काम आने से - नेहा नजाकत

उमर घटती नही यूँ तो किसी के काम आने से,
मगर रब रूठ जाता है किसी का दिल दुखाने से ।

तुम्हें आना नही है जब हमे भी भूल जाना है,
सदा देने से क्या हासिल मिले क्या घर सजाने से |

चलो माना तड़प होगी गिला होगा सबब होगा,
कोई रिश्ता तो हो लेकिन तुम्हारा इस दिवाने से |

गिला इसका नहीं मुझको भुलाया किस लिए तुमने,
मगर ये तो बता दो  क्या मिला मुझको रूलाने से |

मनाना मत सनम को यूँ जरा सा रूठ जाने दो,
गवा दोगे सुकूं अपना किसी को सर चढाने से |

- नेहा नज़ाकत

2:40 am

सारे सपनों को छोड़ रहा हूँ , लो मैं बैशाखी तोड़ रहा हूँ - अंकित विशेष

सारे सपनों को छोड़ रहा हूँ ,
लो मैं बैशाखी तोड़ रहा हूँ  ,
हाथों में हाथ नही देना तुम ,
अब मेरा साथ नही देना तुम ,
मत देना कुछ दान नही करना ,
अब कोई अहसान नही करना ,
तुम कहते अनचाहा किस्सा हूँ ,
पर मैं भी तो घर का हिस्सा हूँ ,
कोना बेकार नही कहना तुम ।
मुझको लाचार नही कहना तुम ॥

मुझे कटे पंखों से उड़ना है ,
इस सारी दुनिया से जुडना है ,
मुझको भी मंजिल तक जाना है ,
अपनी हर चाहत को पाना है ,
अब हालातों से घबराऊँ क्यूँ
मैं याचक बन कर फैलाऊँ क्यूँ ,
मैं जैसा भी हूँ शरमाऊँ क्यूँ
इस जीवन को व्यर्थ गवाऊँ क्यूँ ,
जीवन धिक्कार नही कहना तुम ।
मुझको लाचार नही कहना तुम ॥

पथ मुश्किल मेरा आसान नही ,
गर डर जाये फिर इंसान नही ,
माना इन पैरों में जान नही ,
ऐसा नही है समाधान नही ,
ये निश्चय मेरा अब चलना है ,
कभी गिरना और सम्भलना है ,
हो मुमकिन अह़सास बचा लेना ,
थोडा़ तो विश्वास बचा लेना ,
बिन परखे हार नही कहना तुम ।
मुझको लाचार नही कहना तुम ॥

-:- अंकित विशेष

शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

11:40 pm

तुलसी मानस प्रीत से,हृदय करे झंकार, राम सिया की भूमि पर,भाव करें शृंगार - डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

तुलसी मानस प्रीत से,हृदय करे झंकार ।
राम सिया की भूमि पर,भाव करें शृंगार ।।
मिथ्या जग की साधना,पढ़ें न मानस वेद,
धन्य हो गये छंद भी,मानस में साकार ।।

जाने अनजाने हमें,हो जाये अभिमान ।।
रोम रोम जब गा उठे, हिंदी हिंदुस्तान ।।
अनदेखे अहसास से,जब हो गर्वित भाल,
सच्चा प्रेमी  देश का,हृदय तिरंगा मान ।           
       
  डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

7:17 pm

जब तक दुनिया का पटल रहेगा, यशनाम अटल का अटल रहेगा - दिलीप कुमार पाठक

जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~226 की ओर से भारतवर्ष की जनता के चहेते,पूर्वप्रधानमंत्री, भारतरत्न,कुशलवक्ता,ओजस्वी कविश्रेष्ठ, परमादरणीय अटलविहारी बाजपेई जी को भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि 🇮🇳🙏🏻🇮🇳🏆

ममता समता की नमिता में,
देखा है कर्मों की सविता में|
गाते राजनीति के गलियारे,
ओ युगपुरोधा! सखा हमारे|
तुमसे वह ओजस्वी कविता,
ज्यूँ फैली लाली हो सविता|
जीवन जीवट संघर्ष लिखा,
उत्कर्ष हर्ष नववर्ष लिखा|
प्रतिदर्श लिखा संदर्श लिखा,
अर्श फर्श का आदर्श लिखा|
कविता के अटल पटल को,
मेरा शत शत नमन अटल को||


दिलीप कुमार पाठक "सरस"
        संस्थापक
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~226

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

1:55 am

अपना कोई जा रहा लौट के नही आने वाले सफर से.......

मेरे प्रिय राजनीतिज्ञों में एक, अटल जी, कुशल रणनीतिकार, कवि, एक बेहद प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व...
जीवन मृत्यु के बीच हैं,...अभी नाज़ुक स्थिति में...

अटल जी की स्थिति बहुत गंभीर बनी हुई है। जीवन रक्षक प्रणाली पर है हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि वे सामान्य स्थिति में आयें  

आप यूँ तो छोड़ कर ऐसे हम - सबको जा नही सकते ।
अब उठ़ो भी हे जनप्रिय ये कैसी आपकी खामोशी है ।।

© विकास भारद्वाज सुदीप 

      उठो अटल अभी लड़ना है, ये देश सारा पुकार रहा ।
      योद्धा  हो  तुम  कुरुक्षेत्र के, काल से कैसे हार रहा ।।

                        © शीतल वोपचे 

      हे !   कवि  कुलश्रेष्ठ   उठो   यूँ   हार  न  मानो तुम,
      मौत तुम्हें हरा नहीं सकती, इस बात को मानो तुम ।।

                      © कुमार सागर 


दिये जैसा समर्पण हो वही नेता कहाता है|
सुहाने बोल से अपने विरोधी को झुकाता है|
अटल जी प्रेरणा बनकर जिएँगें कोटि बरसों तक|
वतन हित भाव का अच्छा सही सब को सुहाता है|

          © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

अटल जो रहा है,अटल सा रहेगा
फंसे बीच कीचड़ कमल सा रहेगा 

बुझा न सकेगी तुझे कोई आंधी
सदा तेरा दीपक ये जल ता रहेगा ।।

© स्वराक्षी स्वरा 


काश! तू हँसते हुए हाथ  उठाये ।
यूँ नाम अटल सार्थक हो जाये ।।

अटल नाम था अजब काम था ।

खामोशी से तुने सबको बताया ।।

© साधना कृष्णा 


बिजलियो कौधना आज बिलकुल नही ।

आँसमाँ   के   सितारे   बचाना   तुम्हे ।।

© बृजमोहन साथी 


जिंदगी जंग ही में काटी है।
अटल है जंग मेरी साथी है।।

© कौशल कुमार पाण्डेय 

सदा  सलामत की दुआ,  करूँ हाथ मैं जोड़ |
अटल रत्न तुम एक हो, कभी न जाना छोड़ ||

© दिलीप कुमार पाठक 

🇮🇳🇮🇳


उम्मीद न थी,जो हो गया वो भी देखना पड़ेगा,
एक  शाश्वत  प्राण को पाखंड सहना पड़ेगा,
इस  राजनीति  की  नीति  भी देखिए जनाब,
अटल महाप्रयाण को आधिकारिक पुष्ट होना पड़ेगा


© खुशीराम बाजपेई


कुटिल  विषैले  अट्टहास  से,
    काल  सदा  विजयी  बनकर।
दे जाता  अमिट घाव मन को,
    आज  काल  कल  में सनकर।।


    © शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'


दीप सदा जलता रहे,    
                  होत सदा गुणगान। 
नमन सारा जगत करे ,
                   जय अटल जी महान ।।

अमर हो गए प्रिय कविवर, 
                    सुंदर वक्ता महान।
श्रद्धांजलि अटल जी को,  
                    हर मन में पाये स्थान।।
                   
           ©भुवन बिष्ट


तोड़ गए बन्धन सभी, हृदय गए वो चीर ।
जन -जन के नेता बने, अटल बनी तस्वीर।।


                            ©मुकेश शर्मा "ओम"


वो अटल अमर हो गए।
वो आज थे कल हो गए।
विखेर कर यादें  अपनी,
 वो आँखों में नम हो गए।

©विवेक दुबे "निश्चल"



 ताज़ा प्रेस रिलीज

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

8:16 pm

तिरंगा --- चन्द्रशेखर ,भगत सिंह की तिरंगा विश्व में पहचान है तिरंगा छोड़, मैं जाऊँ कहाँ तिरंगा मेरी जान है।। - मोहन राना "अभय"

चन्द्रशेखर ,भगत  सिंह की 
तिरंगा  विश्व  में  पहचान है
तिरंगा छोड़, मैं  जाऊँ कहाँ
तिरंगा    मेरी     जान     है।

                     हिन्दुस्तान तिरंगा की  इबादत
                      यहाँ    फिदा    आसमान   है
                      फिदाई  ने जब  फिदा   किया
                      आह  निकली  क्या  महान है।

कलाम हिन्दुत्व के अजीज है
सपनों  में   उडा़ई ,  उडा़न  है
किशोर अवस्था  सोचा ख्वाब
कलाम     एक     जबान     है।

                       फिगार  ने  हमको फै़ज  किया
                       इसका     हमें     अभिमान   है
                       द्रोही का धड़ अन्जाम दिया था
                       उसका     क्या     खानदान   है।

गाँधी, लाला और   नेहरू  की
विश्व     में        पहचान     है
तिरंगा   छोड़ , मैं  जाऊँ  कहाँ
तिरंगा       मेरी      जान     है।

                © आर्य मोहन राना "अभय"
                                  मथुरा
                           9458468826

12:15 am

माँ प्यारी, माँ कितनी प्यारी, माँ जग की तू है उजियारी - मोहन राना

माँ प्यारी, माँ कितनी प्यारी
माँ जग की तू है  उजियारी
                    माँ बचपन का झूला पलना
                    माँ नदियाँ और मीठा झरना।

माँ आशीष  हो, जैसे बातेंं
माँ बिन नही कटती है रातें
                    माँ  मोहन  ममता  की  धारा
                    जैसे   माँ  हो   गंग   किनारा।

माँ बिहबल नित ओझल होती
आँखें  पकड़  पकड़ माँ  रोती
                   दादी  की   माँ   पहली  पोती
                   माँ  की   गोदी   स्वर्ग  पिरोती।

माँ प्यारी,  माँ  कितनी  प्यारी
माँ   जग   की   है   अपसारी
                    माँ   मेरी   है    भोरी  - भारी
                    सबसे   सुन्दर  प्यारी - प्यारी।
माँ प्यारी, माँ  कितनी  प्यारी।।


     ©आर्य मोहन राना "अभय"
                 मथुरा
           9458468826

सोमवार, 13 अगस्त 2018

3:44 am

ग़ज़ल - आज भी क़ायम हमारे देश में है राजशाही - टिल्लन वर्मा

आज भी  क़ायम  हमारे  देश  में है  राजशाही
हर नगर,हर गाँव में मिल जाएंगे ज़िल्लेइलाही

जितने ख़ालाज़ाद थे पल में इकट्ठे हो गए सब
जब यकीं होने लगा छिन जाएगी अब बादशाही

हड्डियाँ भी जिन बुज़ुर्गों की भजन करने लगी हैं
वो  सियासतदां अभी  तक चाहते  हैं  वाहवाही

अस्पतालों में  पड़े  रोगी  मुसलसल चीख़ते हैं
मर  गईं  संवेदनाएं  हो  रही  खुलकर  उगाही

जांच भ्रष्टाचार की जब चाहें तब कर लीजियेगा
सिद्ध कर सकते  नहीं ये भ्रष्ट अपनी  बेगुनाही

हाथ में  हथियार  भी हैं और  पत्थर  खा रहे हैं
हैं विवश कितने हमारे देश के "टिल्लन" सिपाही

ख़ालाज़ाद = मौसेरे भाई
टिल्लन वर्मा  (स्रोत: फेसबुक)
                              उझानी (बदायूँ)


शनिवार, 11 अगस्त 2018

10:01 pm

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह से अकरम खान की कुछ ग़ज़लें

 ग़ज़ल 1
122  122   122   122

मुहब्बत  भी  करके मुहब्बत न जानी ।
मुहब्बत में निकली वो कितनी सयानी ।।

दिवाना बनाया हैं उसने भी मुझको ।
दिवाना  बनाया  न  बनती  दिवानी ।।

मेरे दिल के जख्मों को देखे तो कोई,
ज़फा ही ज़फा है उसी की निशानी।

वो लैला नहीं थी तो मजनूँ बनू क्यों,
समझ ही न पाया ये दिल भी कहानी।

हैं दिल में भी नफरत के शोले सुलगते,
है दुनियां के दिल में भी उल्फत जगानी।

जरूरी  नहीं  के  जवानी  में  ही  हो,
है बचपन बुढापा भी इसकी रबानी ।।

न समझा जो इसको तो मिट ही गया वो,
बिना इसके सबको पडी़ मात खानी।

अज़ब हैं रिवायत जमाने में देखो ।
दिवानों को मारो न मारो ज़वानी।।

मेरा मुल्क दुनियां में आगे रहा है ।
हमें और है इसकी इज्ज़त बढा़नी ।।

कहीं आज मातम कहीं पर खुशी है ।
मिटी तो नही हैं जो चाहीं मिटानी ।।

निशाना बना है मुहब्बत में 'अक़रम',
मुहब्बत में फिर भी मिली न निशानी।

अक़रम खान

ग़ज़ल 2
122      122    121  12
       
वफा  उनसे  माँगी  वफा  न  मिली ।
खता  हमने  ढूंढी  खता  न  मिली।।

बहुत  कच्चे  धागों  से  रिश्ते  बधें ।
रिश्तों  से  हमें  तो  सदा  न  मिली ।।
 
होठों  पे  तबस्सुम  हैं  उसके  यूं तो ।
मगर उस हुस्न को वो  अदा न मिली  ।।

 नहीं  कोई  ऐसा  जमाने  में  अब ।
जमाने  में  जिसको  दगा  न  मिली ।।

बना  हूँ  मैं  मुजरिम अदब जो किया ।
मेरे  इस  मरज  को  दवा  न  मिली ।।

मुझे  लग  रहा  था  वो  होगी  खफा ।
मगर  आज  तक  वो  खफा  न  मिली ।।

गिरेवाँ  में अपने झाँके जमाना,
सजा़वर को क्यों कर सजा न मिली ।

यूं नफरत मिटाने की कोशिशें की ।
मुहब्बत की हमको घटा न मिली ।।

अक़रम खान

ग़ज़ल 3
1222    1222   1222  1222

नहीं हैवान मुश्किल है, नहीं शैतान मुश्किल है ।
जमाने में जरा ढूढों भले इंसान मुश्किल है ।।

शहर में बन रही हैं रोज ही पत्थर की दीवारें ।
मुअज़्ज़िन की पहुँच आजा़न मुश्किल है।

खुदा क्यों बन रहा है तू खुदा तेरा भी मालिक है ।
जिसे चाहें मिटा डाले उसे सब कुछ ये हासिल है।

कश्ती साहिल पे आकर डूब ही जाती है दोस्तों ।
कहाँ मालूम होता है जरा सा दूर  साहिल है।।

जो सच्ची बात पर हर वक्त लड़ता औ' झगड़ता है ।
जमाने में वही इंसान देखो सबसे जाहिल है ।।

जहन्नुम क्यों बना डाला ये तो दुनियां की जन्नत थी ।
ये मेरा पहले भी दिल था ये मेरा आज भी दिल है ।।

अजी आतंक ने मुस्लिम का सर नीचा किया अकरम ।
अमन  को  चाहने  वाला  न  कोई  इसमें  शामिल  है ।।

अकरम खान

ग़ज़ल 4
212   212    212   212 

शान महफिल में अपनी जमाया करो ।
गीत  मेरे  तुम  अब  गुनगुनाया करो ।।

हम मिलेगें सनम शाम को आज  पर ।
ज़ाम आंखो से गर तुम पिलाया करो ।।

सब  गिले  दूर  हो जाय तुमसे सुनो ।
ग़र नज़र से नज़र तुम मिलाया करो ।।

उसकी यादों को दिल में बसाया मैंने ।
जख़्म  यूँ  दिल  के मत दुखाया करो ।।

छोटी सी बातों पर तुम जो नाराज हो ।
यूँ  सितम  दिल पे  मेरे , न ढाया करो ।।

अकरम खान

ग़ज़ल 5
2122     122    122 12

चोट  खाती   रही   मुस्कराती  रही ।
दूध दुनियां को अपना पिलाती रही ।।

फब्तियां  कस  रहा  था  जमाना मगर ।
फब्तियों  को  गले  वो  लगाती  रही ।।

बहन बेटी बनी पत्नी बन के वो माँ ।
सारे रिश्ते मुकम्मल निभाती रही ।।

कितने धोखे दिये हमने कोढे़ दिये ।
सारे जुल्मों के सदमें उठाती रही ।।

जुल्म सहने की आदत ने बुजदिल किया ।
फिर भी जिंदादिली वो बढा़ती रही ।।

पेट  में  ही  इसे  मारता  नादाँ  है ।
फिर भी खुद को तसल्ली दिलाती रही ।।

आँख को बंद करके जमाना सुने ।
बेबसी वो सभी को सुनाती रही ।।

देके ममता को वो खा़क में मिल गयी ।
पर जमाने का गुलशन सजाती रही ।।

ना  धुँआ  ही  उठा सांस गुम हो गई ।
अपनी साँसों को 'अकरम' दबाती रही।।


ग़ज़ल 6
212×4
चाँदनी   रात   भर  जग  मगाती  रही ।
फिर  बहारों  के  सपनें  सजाती  रही ।।
राह  ए  इश्क  में  तो  मिली ठोकरें ।
जिंदगी  हर  कदम आजमाती रही ।।
हिज्र  की  रातें  भी आँखों  में काटी हैं ।
जिंदगी   क्यूँ   मुझे   ही  रुलाती  रही ।।
जख्म  दामन  मे  अपने  समेंटें  हुऐ ।
जिंदगी   तीरगी  को   मिटाती  रही ।।
बर्षा पानी छायी बदली यूँ रात भर ।
फिर तेरी याद मुझको सताती रही ।।


अकरम 7 
 212×4
हम सनम तुझमें ही आज खोने लगे ।
बन गये हमसफर, साथ चलने  लगे ।।

जब से तुम जिंदगी में आयी हो सनम ।
प्यार  की  राहों  में  फूल  खिलने लगे ।।

जो मुझे साथ तेरा मिला तब से ही ।
फासले किस कदर देख घटने लगे ।।

अपनी भी जिंदगी खूबसूरत होगी ।
इश्क  में  यार के हम तो होने लगे ।।

संग चलने का वादा अभी कर लिया ।
देखकर लोग  हमको वो जलने लगे ।।


 8

122  122  122  12 
खुशियों भरी थी हर जिदंगी

वो मिलकर जुदा तो नहीं हो गया ।
सनम  वेवफा  तो  नही  हो  गया ।।

जाने कौन सी बात दिल को लगी ।
सनम गमज़दा तो  नही  हो  गया ।।

मैं सच बोला था और वो शक्की थे ।
कहीं  फासला  तो  नही  हो  गया ।।

 किसी  बात पर  वो  मुझे  छोडकर ।
 कहीं  वो  खफा  तो  नहीं  हो गया ।।

पराये   हुए   अपने   ऐसा   लगा ।
कहीं  हादसा  तो  नही  हो  गया ।।

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

7:39 am

जिला हरदोई स्वाधार गृह से 19 महिलाएं लापता ----राजेश मिश्र प्रयास

----शव्द प्रहार-----------

जिला हरदोई बीच
               महिला स्वाधार गृह
महिलाएं लापता हैं
               गिनती उन्नीस है
सुर्पनखा ताड़का भी
               गृहों में डटी पड़ीं हैं
बड़ा भाई कर रहा
               इकट्ठी ये फीस है
धीरे धीरे खुली पोल
             गपला था गोल मोल
मुझको दिखाई दिया
             जिन्दा दसशीस है
जाँच में खुलासा हुआ
             दुष्टों में इजाफा हुआ
खा रहा है नारियों को
               कौन सा खब्बीस है

💐💐💐💐💐💐💐💐
    राजेश मिश्र प्रयास
   बीसलपुर पीलीभीत
यदि सच लगे तो आप सभी का आशीर्वाद चाहता हूँ

7:26 am

ऐ अमर वीर बलिदानी भारत के सपूत - प्रदीप ध्रुवभोपाली


ऐ अमर वीर बलिदानी भारत के सपूत अंगार लिखो।
तुम मातृभूमि के लिए करो उत्सर्ग और तुम प्यार लिखो।


दुश्मन को कर दो तहस नहस औ धूल चटा दो तुम उनको
दुश्मन के लाखों शीश काट जय महाकाल जयकार लिखो।


जो लहू आग की तरह गर्म न हुआ लहू नहिं पानी है,
तुम महाप्रलय बन टूट पड़ो दुश्मन पे हाहाकार लिखो।


ऐ शूरवीर तुम बनो काल दुश्मन को मृत्यु दो अकाल,
तुम करो वार मरते हजार हो दुश्मन का संहार लिखो।


महाराणाप्रताप का है प्रताप लक्ष्मीबाई का तेज भी है,
बम तोप मिसाइल का गर्जन खूँ की प्यासी तलवार लिखो।


ये भगतसिंह आज़ाद राजगुरु का बलिदान नहीं भूलें,
हो पाक और नापाक कोई अब युद्ध हो आरोपार लिखो।

■■■■■■■■■■■■■■
प्रदीप ध्रुवभोपाली, म,प्र
भोपाल, दिनाँक-04/08/2018
मो.-09893677052
■■■■■■■■■■■■■■

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

1:02 am

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में नमिता नज्म की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल 1                         
2122 1212 22
                                         
मेरी आँखों के आब जैसा था ।
वो महकते गुलाब जैसा था ।।
               
उसकी  आँखों में वो नशा था ।
हां वो बिलकुल शराब जैसा था ।।

ख्वाहिशों के हुजूम बढते तब ।
वो तो रंगीन ख्वाब जैसा था ।।

 तू तो मेरी हदो से बाहर था ।
 कोई हीरा नायाब जैसा था ।।

 मेरी मंज़िल कभी नहीं था वो ।
 फिर भी मेरे जनाब जैसा था ।।
     
  नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल 2

1222  1212  1222  1222

दिले नादान को न पूछ कैसे हमने समझाया ।
कभी मुट्ठी में आसमां थाली में चाँद दिखलाया ।।

गुज़ारी एक उम्र हमने तुम्हारे इंतज़ार में ।
न टूटे ख्वाब नींद से अजी खुद को न उठाया ।।

मचलती लहरों पे अक्सर तिरी तस्वीर बनती है ।
बड़ी शिद्द्त से ये हुनर मैनें आँखों को सिखलाया ।।

अलग ये बात है कि तुम निभा  पाए न कुछ वादे ।
तुम्हारे आने की आहट से हर पल दिल को धड़काया ।।

मेरी आँखों में तेरे वस्ल के मंज़र मचलते है ।
कहीं गिर जाए न मोती जो हर पल बचाया है ।।

 नमिता "नज़्म "

ग़ज़ल 3
212  212   212    22

मौसमों से बदल कैसे जाते हो ।
क्यों मुझे इतना तुम सताते हो ।।

मेरी सांसो को तुम रोक कर तुम अब ।
क्यों यूं रफ्तार दिल की घटाते हो ।

आँखों में ख्वाब भी अब नहीं यारा ।
क्यों मिरी अब नींदे तुम उड़ाते हो ।।

अपने ही दिल से की ये बगावत क्यों ।
कैसी चाहत ये जो तुम निभाते हो ।।

कतरा कतरा बचा है मिरे अंदर ।
क्यों उसे लहरों से तुम लड़ाते हो ।।

नमिता "नज़्म"

गज़ल  4
2122    2122   212

उल्फत  होनी  थी  इशारा  हो  गया ।
इक  कदम  ठहरें  किनारा  हो  गया ।।

हम तो थे तन्हा वो बन साथी आये ।
आसमाँ भी फिर हमारा हो गया ।।

चलती थमती जिंदगी तेरी खातिर ।
अब मुकम्मल वो सहारा हो गया ।।

दोस्तों में थे हम बहुत प्यारे अजी ।
तुमसे मिलकर दिल तुम्हारा हो गया ।।

साथ मेरे अब सफर में नज़्म है ।
खूबसूरत  सा  नज़ारा  हो गया ।।

नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल  5
2212      1221   2122

पहचान  पर  जमी  गर्द  धुल  रही है ।
ख्वाहिश की बेड़ियाँ आज खुल  रही है ।।

मेरा  वजूद  अब  उभरने  लगा  है ।
अब जिंदगी यूँ ही चाक सिल रही है ।।

तेरी निगाहों में छिपती यही  मुहब्बत ।
यूँ हमसफ़र  की  खुशबु मिल रही है ।।


ये मेरा दिल धड़कता तेरे लिऐ ही ।
मैं राह में खड़ी धूप भी खिल रही है ।।

उससे मिला मेरा दिल यूँ नज़्म जैसे ।
अब प्यार की मिठास सी घुल रही है ।।

नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल  6
1222    1222  1222   1222

ये जो उल्फत हैं अब सारे जमाने को बतानी है ।
उसी के साथ ही अब जिंदगी मुझको बितानी है ।।

ये दरख़्त मुहब्बत और जज़्बातो के है यारा ।
इन्ही की छाँव छोटी आशियाँ अपनी बनानी है ।।

अलग से तो कोई लम्हा नहीं   आयेगा अब अपना ।
सफर में ही सभी ख़्वाहिश यूँ ही मिलकर सजानी है ।।

ये तेरे मेरे ख्वाबो के चमकते  जुगनू है अब तो ।
इन्ही से अब हमें मिलकर अंधेरी को हरानी है ।।

हया तो मुश्किलें देती रहेगी "नज़्म" दस्तक पर ।             
इन्हें तो साथ मिल-जुल कर हमें ही तो निभानी है ।।

नमिता "नज़्म"

ग़ज़ल  7
2122    1222    1122  22

दिल की मानिंद कोई और मचलता क्यों है ।
है अगर संग तो वो मोम सा गलता क्यों है ।।

मेरे दिल में है क्या मै कैसे बताउ उसको ।
हमसफ़र वो नहीं तो साथ में  चलता क्यों है ।।

मेरा दामन भरा है चाँद सितारों से  पर ।
मेरी क़िस्मत में फिर अँधेरा ही दिखता क्यों है ।।

इंतजार कभी अब खत्म नहीं होगा पर ।                                आइना देख कर वो रोज सँवरता क्यों है ।। 

मैंने माना नहीं मिलना है तुझे अब मुझसे ।                 
तेरी नज़रो में इतना प्यार छलकता क्यों है ।।

नमिता " नज़्म "

ग़ज़ल  8
2122     1222       12   
                     
सारे  एहसास  तुझसे  मिलते  हैं ।   
तुझसे  ज़ज्बात   मेरे  मिलते  हैं ।।

 देख  बरसे है मुझपे अब बादल  ।
 तुझसे  बरसात  भी  तो  मिलते  हैं

 मेरे  क़दमो  को  तेरा  साथ  मिले ।
आओं  हालात  से हम  मिलते  हैं ।।

 मैं  करूँ  दिल  की  बातें  तुझसे सब ।
 अपने  ख्यालात  भी  तो  मिलते हैं ।।

 मर   के   भी   मैं  बनूगीं  तेरी  ही ।
 हर  ज़नम  में अगर  वो मिलते हैं ।।

 नमिता "नज़्म "
9 अगस्त 2018 

बुधवार, 8 अगस्त 2018

1:04 am

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह में डा. नसिमा निशा की कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल 1

नदी की धार, समन्दर, लहर किनारों ने ।
लगाया पार, हमेशा ही तेज़ धारों ने ।।

सभी को रौशनी मिलती है आसमाँ से,
हमें तो अंधेरा ही बख्शा है चाँद तारों ने ।।

असीर हौसला उड़ने का दे रहे लेकिन,
हमारे पंख काट दिये हैं हमारे सहारों ने ।।

किसे करें शिकायत कि आईना अपना,
किया है चूर -चूर खुद अपने ही प्यारों ने ।।

' निशा 'खिज़ा ने ज़रूर हमारा साथ दिया,
फ़रेब तो बारहा हमको दिया बहारों ने ।।

डा. नसीमा निशा

गज़ल 2

वज्न - 2122 1212 22

दर्दे दिल की किताब रहने दो ।
ये मुसलसल अज़ाब रहने दो ।।

नींद तो मेरी आपने छींनी ।
मेरी आँखों में ख्वाब रहने दो ।।

हर खुशी आपको मुबारक हो ।
मेरी आँखों में आब रहने दो ।।

इश्क में हमने तुमने क्या पाया ।
फ़िर करेंगे हिसाब रहने दो ।।

आप से क्या वफ़ा की उम्मीदें ।
अब तो छॊडॊ जनाब रहने दो ।।

ये बहाना है लड़खड़ाने का ।
मेरी आंखें शराब रहने दो ।।

तुमसे कोई सवाल नही मेरा ।
पास अपने जवाब रहने दो ।।

सब हक़ीक़त निशा पता है अब ।
कैसे   हो   तुम   नवाब  रहने दो ।।

ड़ा० नसीमा निशा

गज़ल 3

उसके वहमो गुमान में रहना ।
हर घड़ी इम्तिहान में रहना ।।

बन के बादल किसी की यादॊ का
फ़िक़्र के आसमान मे रहना ।।

दुश्मनी क्यों किसी से हम रख्खें ।
कब तलक है जहान में रहना ।।

रूह भी चाहती है आज़ादी ।
क्यों बदन के मक़ान में रहना ।।

करके एहसान जो जताते हैं ।
क्यों समझते हैं शान में रहना ।।

तू तो सूरज है रौशनी देकर ।
हर घड़ी तुम ढलान में रहना ।।

जानते हैं कि दुनिया फ़ानी है ।
क्यों यहाँ आन-बान में रहना ।।

पर-क़तर जायें ये 'निशा' फ़िर भी ।
हौसलो से उड़ान में रहना ।।

ड़ा० नसीमा निशा

गज़ल 4

वज्न - 212 212 212 212

सिस्कियां ले रहे आज रिश्ते सभी ।
 झूठ लगने लगे लोग हंसते सभी ।।

हर तरफ़ साज़िशो की चली है हवा ।
खौफ़ज़द हो रहे सब्ज़-पत्ते सभी।।

भाव इंसानियत का उतरता गया ।
आदमी हो गये आज सस्ते सभी ।।

हमसफ़र वो नहीं साथ फ़िर भी रहे ।
एक हम ही नही लोग कहते सभी ।।

उठ रहा है धुआँ अब यहाँ इसलिये ।
बुझ गए दीप अब जलते-जलते सभी ।।

भूख से बिलबिलाती गरीबी यहाँ ।
देख कर भी मियाँ आगे बढ़ते सभी ।।

कर 'निशा' जानो-दिल तू खुदा पे फ़िदा ।
एक उसके सिवा गैर लगते सभी ।।

ड़ा० नसीमा निशा

ग़ज़ल 5

वज्न - 122    122    122  122

ये  दिल  जैसे  जैसे  मचलता रहेगा ।
वही  दर्द  ग़ज़लों  में  ढलता  रहेगा ।।

ये फ़िरकापरस्ती का आलम जहाँ में ।
कभी  ख़त्म  होगा  या  चलता रहेगा ।।

कहाँ  एक  सा  कुछ  रहा  है  जहाँ में ।
ये  मौसम  है  प्यारे,  बदलता  रहेगा ।।

कोई  बेइमानी  नहीं  अब  चलेगी ।
ये  नेकी  का  सिक्का  है चलता रहेगा।।

सिला चाहतो का भले तुम न देना ।
वफ़ा का दिया फ़िर भी जलता रहेगा ।।

नज़र  दिल तुम्हारा ज़बा भी तुम्हारी ।
हरिक हक़ तुम्हें ही क्या मिलता रहेगा ।।

"निशा "चाहने से न बदलेगी दुनिया ।
ज़माना  तुम्हें  ही  बदलता  रहेगा ।।

डॉ नसीमा "निशा"

ग़ज़ल 6
वज्न- 222    221   122

होने को  मशहूर  हुए हैं ।
अपनो  से ही दूर हुए हैं ।।

थी मजबूरी थाम सके न ।
अच्छे दिन काफ़ूर हुए हैं ।।

घर की क़ीमत जाने वो ही ।
घर  से  जो  भी दूर हुए हैं ।।

दौलत  का  जादू चढें जब ।
रिश्ते  सब  नासूर  हुए हैं ।।

उतरा हैं जो उम्रे-नशा अब ।
मंज़र   सब  बेनूर   हुए  हैं ।।

भूलेंगे हम देखो 'निशा' सब ।
आज बहुत मजबूर हुए हैं ।।

ड़ा० नसीमा निशा

ग़ज़ल 7
212     2212    2212

ज़िन्दगी  बेजान  है  तेरे बिना ।
कुछ नहीं आसान है तेरे बिना ।।

क्या कहें कैसे कहें ए जानेजाँ ।
ज़िन्दगी हलकान है तेरे बिना ।।

इश्क  न  जाने  ये  कैसा  मर्ज़  है ।
खुद  से  है अंजान हम - तेरे बिना  ।।

भाग जाता है हदो को तोड़ कर ।
दिल  बहुत नादान है  तेरे बिना ।।

थी निशा की शोखियाँ अनमोल सी ।
ज़िन्दगी  वीरान  है  तेरे  बिना l।

ड़ा० नसीमा निशा

गज़ल 8
222 221 122

देखो तो दीवार कहाँ है ।
दो धारी तलवार कहाँ है ।।

तुम भी इंसा ,हम भी इंसा ।
सोचो तो तक़रार कहाँ है ।।

गंगा- जल जो चाहे पी ले ।
मज़हब पहरेदार कहाँ है ।।

साथ जियेगें, साथ मरेगें ।
बोलो वो इक़रार कहाँ है ।।

एक फ़लक है एक ज़मी है ।
हमको भी इंकार कहाँ है ।।

हाथ पकड ग़र साथ चले तो ।
फिर मंन्ज़िल दुश्वार कहाँ है ।।

आज निशा सब रिश्ते बदले ।
पहले  जैसा   प्यार कहाँ है ।।

ड़ा० नसीमा निशा

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

9:58 pm

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह से नेहा चाचरा बहल की कुछ ग़ज़लें

1

और कुछ दे नहीं सकते तुम्हे हम प्यार के सिवा ।
दिल में रह नहीं सकता कोई दिलदार के सिवा ।।

मैं रस्ता ताकती हूँ किस घड़ी तू मिलने आजाए ।
हां मैंने पा लिया सब कुछ तेरे दीदार के सिवा ।।

निगाहों में समा जा तू तो दिल को चैन आजाए ।
मुझको कुछ नहीं भाए तेरे इक़रार के सिवा ।।

सुकूं मिल जाता है मुझको देखकर एक झलक तेरी ।
कि मैने सुन लिया सब कुछ तेरे इज़हार के सिवा ।।

जो तेरी याद आये तो तड़प के आहें भरती हूँ ।
याद बस तू ही है मुझको तेरे तकरार के सिवा ।।

ये 'नेहा' बात बोले तो उसे तुम गौर से सुनना ।
नही अब चाहतें दिल की बस तेरे प्यार के सिवा ।।

© नेहा चाचरा बहल

2

तुमसे मिलने को हम भी बेकरार बैठे हैं ।
पलकें बिछा के हम अंगना बुहार बैठे हैं ।।

यूँ तो दीदारे चाँद रोज़ ही कर लेते हैं ।
अब तो पूनम का करने इंतज़ार बैठे हैं ।।

इश्क की खाई में हर शख्स फिसल जाता है ।
तू अगर साथ दे हम भी तैयार बैठे हैं ।।

तेरी आंखों से जाम हमको भी पी लेने दे ।
प्याले हम प्यार के लेकर हज़ार बैठे हैं ।।

अब तो ज़िंदा हैं बस सनम तुम्हारी चाहत से ।
प्रेम बरखा समेटे कब से यार बैठे हैं ।।

ज़ुस्तजू में लगे हैं सिर्फ तुमसे मिलने की ।
तेरे स्वागत में हम बाहें पसार बैठे हैं ।।

न जाने 'नेहा' कि तू किस घड़ी आजायेगा ।
तेरे लिए सजा के घर के द्वार बैठे हैं ।।

3

दूर से ही सही नज़रो को मिल ही जाने दो ।
आज फ़िर गीत मुझको प्यार का तुम गाने दो ।।

यूँ तो रंगीन है हर शाम यहाँ यारों की ।
इस हँसी शाम में कुछ पल मुझे बिताने दो ।।

देखो तुम देख कर के बदसलूकी करते हो ।
इक नज़र तुझको देखलूं मुझको आने दो ।।

यकीं करो कि चाहतें बहुत हैं तेरे लिये ।
खैरमकदम में हमे पल्कों को बिछाने दो ।।

ये मानते हैं नेहा ,वक़्त मुक्कमल नहीं है ।
पल दो पल ही सही खुदको तुम सताने दो ।।

4

तुम कहते हो तो तुमको मैं एक गीत सुनाती हूँ ।
अपने दिल का हाल तुम्हे गाकर ही बताती हूँ ।।

क्यों हो तुम यूँ खफ़ा खफ़ा इतराते फिरते हो ।
मैं ही बुद्धु हूँ क्या तुम पर जान लुटाती हूँ ।।

जिस पर जग ऐतबार करे वो प्यार का सौदा है ।
आओ बैठो पास मेरे मैं प्यार सिखाती हूँ ।।

दिल की धड़कन साथ न दे इसका क्या भरोसा है ।
रखलो दिल पे हाथ,मैं दिल का हाल सुनाती हूँ ।।

मेरे दिल का मीत है वो,दिल जिसने तोड़ा है ।
नाम से जिसके आज भी मैं हर पल मुस्काती हूँ ।।

ये भी सच है तन्हाई में हर याद उसी की है ।
जिसकी याद में मैं 'नेहा', सब कुछ लिख जाती हूँ ।।

5

काश सच ये ख़्वाब वाली बात हो जाय ।
तेरा मेरा हो साथ तब बरसात हो हो जाय ।।

हाथों में हो हाथ और भीगे हों दो बदन ।
संग सुबह से शाम और फ़िर रात हो जाय ।।

तू टूट के पिघले जिधर बाज़ु हों वो मेरी ।
ऐसी ही कुछ खुदा की करामात हो जाय ।।

खामोश रहें लब और आंखों से बोलें हम ।
ऐसी भी मेरे यार अपनी मुलाकात हो जाय ।।

'नेहा' निबाहेंगे सदा रिश्तों को उम्र भर ।
ये अपनी मुहब्बत की बस शुरुआत हो जाय ।।

6

कोशिश रहेगी दिल को तेरे मैं करार दूँ ।
भूले न जिसको तू कभी तुझको  वो प्यार दूँ ।।

बातों में हंसी रात को ज़ाया न कीजिये ।
बिखरी हैं रुख पे ज़ुल्फ़ जो इसको सवाँर दूँ ।।

मांगे बिना ही तूने मुझे सबकुछ तो दे दिया ।
अब आ ज़रा करीब तुझे बाहों का हार दूँ ।।

बरसात का यूँ आना और साथ में है तू ।
भीगे लबों पे तेरे  मैं खुद को ही वार दूँ ।।

ज़िक्र तुझसे प्यार का तुझसे ही कर दिया ।
'नेहा' ये तू भी कह दे, प्यार बेशुमार दूँ ।।

7

कुछ हकीकत मेरी शेरों में छुपी होती है ।
दिल की आवाज़ सदा कलम से जुडी होती है ।।

जिगर में दर्द है,चेहरे पे जो दिखता ही नहीं ।
लबों पे इस कदर मुस्कान बिखरी होती है ।।

मुझको खुद नहीं पता  कि मैं परेशां क्यों हूँ ।
क्यूं दिल धड़कने की आवाज़ बढी होती है ।।

मैं रूठ कर भी नहीं रूठी सी रह पाऊँ उनसे ।
कि उनसे मिलने की जल्दी भी इतनी होती है ।।

हँसूं मैं जोर से तो इसमें बुराई क्या है ।
मैं मुस्कराऊँ तो भी सबकी नज़र होती है ।।

क्यों गुर्बतें तेरी आँखों में नेहा रहती हैं ।
अधूरे ख्वाबों की हर बात जुडी होती है ।।

© नेहा

8

ये प्यार ही तो है जो बेकरार करता है ।
मेरा दिल अब भी तुझपे ऐतबार करता है ।।

कितना चाहूँ मैं तुझे ये बताना मुश्किल है ।
दिल तो हर ख्वाब में दीदारे यार करता है ।।

हसरतें ये दिल की आज मेरे बस में नहीं ।
दिल तुझे मिलने की कोशिश हज़ार करता है ।।

दरमिया हमारे देखो दूरियां बहुत हैं ।
मेरा दिल फिर भी तुझपे जान निसार करता है ।।

नेहा नाकाम है तुझसे मिल नहीं पाती ।
रूबरू हम मिलें दिल इंतज़ार करता है ।।

© नेहा चाचरा बहल 

रविवार, 5 अगस्त 2018

5:38 am

मित्र प्यार की, सरस धार - दिलीप कुमार पाठक

मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई के साथ ~

मित्र प्यार की, सरस धार है|
मित्र प्यार का, सरल सार है||
मित्र प्यास है, नवल आस है|
मित्र गंध का, कमल पास है||

मित्र सृष्टि की,अनुपमा लगी|
मित्र प्रीत में, सहजता पगी||
मित्र गीत का, अधर साज है|
मित्र राग से, नवल आज है||

मित्र साथ में, सहज गीत से|
मित्र हार में, सकल जीत से||
मित्र प्रात सा, नयन योग है|
मित्र ज्ञान का, मधुर भोग है||

मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ
🌹🙏🏻🌹

©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
              संस्थापक
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति
      बीसलपुर (पीलीभीत)

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.