हिंदी साहित्य वैभव

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सोमवार, 27 जुलाई 2020

7:09 pm

विकास भारद्वाज के जन्मदिन पर....

आज आपका जन्मदिवस है। ईश्वर तुम्हें वह सबकुछ दें जिसके आप योग्य हो। आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो।  मुझे पता है, आप बहुत ही समझदार इंसान हो आपकी शायरी भी एक दिल को एक अलग एहसास कराती है और आपने कई बार बेहद नाजुक वक्त पर मुझे संभाला है। मेरे लिए एक अच्छे दोस्त और जिससे मै हर बात शेयर कर सकूँ वो आप हो।
यकीनन आपकी ग़ज़लें खूबसूरती और तग़ज़्जुल से लबरेज हैं। आपकी ग़ज़लों में , मुहब्बत और जिंदगी के फलसफे, ग़ज़ल की अपनी ज़ूमीन,अपनी फ़िक्र, अपना लहजा, अपना रंग और अपनी रवानी तो है पर वो जब दूसरों की जमीन छूते हैं तो उस पर भी अपना रंग आसानी से चढ़ा लेते हैं।
आपके प्रधान सम्पादकीय में "मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह" सन् 2018 में प्रकाशित हुआ जिसमें देश के कुछ शायरों को भी सम्मलित किया गया और एक नया ग़ज़ल संग्रह आने वाला भी है...

आपकी ग़ज़लों से कुछ शेर जो मुझे अच्छे लगते है -

रेशमी ख्वाबों  में  अब  इक  रुत  सुहानी  भेजना ।
तुम   नये   खत   में   वही   बातें   पुरानी  भेजना ।।

दिल के रिश्तें में हरिक पल साथ हों हम तुम सुनों ।
जिंदगी  भर   खत्म  ना   हो  वो  कहानी  भेजना ।।

मुहब्बत के शायर विकास जी का एक शेर और -

इक नज़र मुझसे मिला लें जो तू फिर महफिल में ।
देखने   वालों    की    हैरत   नही   देखी   जाती ।।

आपने अपनी शायरी से आजकल के रिश्तों पर कहा -

मिलते  है  अब  कहाँ  रूहानी  रिश्तें  दुनिया  में  ।
लोग  अपना   होने   का  बस   दिलासा  देते  हैं  ।।

छोटी  छोटी  गलतीयाँ  हो  जाती  है ।
पर   तुम्हें   रिश्ता   बचाना   चाहिए ।।

जिंदगी के फलसफे क्या खूब शायरी में बाँधे है -

जिंदगी  से  इस  कदर  गम मिले है क्या कहूँ ।
जख्म, यादें और किस्मत का बहाना हो गया ।।

हो   गये   बेजुबाँ    खिलौने   से ।
अश्क  भर  के  रुला  गई  आँखे ।।
 
दिल है खामोश उम्र भर के लिए ।
राज  दिल  के  छिपा गयी आँखे ।।

जिंदगी    के    हैं    फ़लसफे़   ऐसे  ।
लिखते  लिखते   कई   कलम  टूटे ।।

मसलन— विकास जी कहते हैं—

मिला  धोखा  हमें  जब   लोगों  से  फिर भी ।
हमें    इंसाँ    परखना    क्यूँ    नहीं    आया ।।

बेअसर   हो   गया   था   ज़हर   जाने   क्यूँ ।
उसने  खाया  था  कल  खुदखुशी  के  लिए ।।

विकास जी महाकाल आपको यश, कीर्ति, वैभव, स्वास्थ्य और सद्बुद्धि दें। बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई💐💐🎂🎂😊🎁

हमारी तो दुआ है, कोई गिला नहीं,
वो गुलाब जो आज तक खिला नहीं,
आज के दिन आपको वो सब कुछ मिले,
जो आज तक किसी को कभी मिला नहीं.
दिल से मेरी दुआ है कि खुश रहो तुम,
मिले न कोई गम जहाँ भी रहो तुम,
समंदर की तरह दिल है गहरा तुम्हारा,
सदा खुशियों से भरा रहे दामन तुम्हारा।
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सरगम


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जन्मदिवस पर स्नेहिल शुभकामनाएं और मंगलमय बधाइयां प्रिय विकास जी
- कवि अभिषेक अन्नत (बदायूँ)
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जय हो आपकी
- कवि एवं पूर्व सांसद ओमपाल सिंह निडर
   फिरोजाबाद
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आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ईश्वर आपको लम्बी उम्र प्रदान करें।
- राहुल माथुर (खितौरा)
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हार्दिक शुभकामनाएं जन्मदिवस की जय हो
- अनिल प्रजापति (मेरठ)
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जन्मदिन कि ढेरो शुभकामनायें
Happy birthday
- रोहित उपाध्याय (लखनऊ)
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खुश रहो ...जीते रहो ... शुभकामनाएं
- तनु युग भारद्वाज (दिल्ली)
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Happy birthday vikas babu
    ..God bless you...
- रोहित शर्मा (खितौरा)
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Happy wala b'day vikas.
- नीता कौर
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जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
आज तुम्हारा Birthday है मुँह मीठा करो
- प्रवीणा दीक्षित
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Happy birthday beta
Khush rho
Kamyab rho
- सना परवीन
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जन्मदिन की अशेष बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ भैया
- सुनील नागर सरगम (म०प्र०)
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खट्टा सा मीठा सा रिश्ता है हमारा,
कभी रूठना, कभी मनाना,
लाओ एक मीठा सा केक,
मनाते है जन्मदिन तुम्हारा।
हैप्पी बर्थडे विकास भाई
- निधी दीदी
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जन्मदिन की हार्दिक बधाई संग शुभाशीष प्रिय अनुज
- छंदगुरू शैलेन्द्र खरे "सोम" (छतरपुर,म०प्र०)
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बधाई हो बधाई हो, बधाई हो बधाई हो,
जनमदिन आज जिनका है बधाई हो बधाई हो,,
- ग़ज़लकार भूपधर द्विवेदी "अलबेला"
(रीवा,म०प्र०)
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जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रिय अनुज
- कवि दिलीप कुमार पाठक "सरस"
अध्यक्ष
विश्व जनचेतना ट्रस्ट बीसलपुर (उ०प्र०)
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जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाएं व आर्शीवाद अनुज।
- ग़ज़लकार संतोष कुमार प्रीत
वाराणसी (उ०प्र०)
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जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको
- नन्दनी श्रीवास्तव
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जन्मदिन की बेहद शुभकामनाएँ
शैली सिंह , बिल्सी (उ०प्र०)
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आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं
- कवि ओमपाल शर्मा "ओम"
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और बहुत से मेरे अजीजों ने जन्मदिन की मुबारकबाद दी

4:10 am

जीतेन्द्र कानपुरी के उपदेश -

जीतेन्द्र कानपुरी के उपदेश -

"लक्ष्य को पूरा करने के लिए, पूरी जिंदगी को खपा दो ।
नहीं तो जिंदगी भी बेकार , लक्ष्य भी बेकार ।।"

लेखक एवं राष्ट्रीय कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)

शनिवार, 25 जुलाई 2020

8:39 pm

कविता - "सुनो किसानी करने वालो" - जीतेन्द्र कानपुरी

जीवन की पद्धति को
समझना बहुत जरूरी है ।
अगर चाहते हो सुख सुविधा 
तो बदलना बहुत जरूरी है ।।
बिन बदलाव पुरानी
 चर्चाओं से क्या होगा ।
बच्चों की उन्नति के खातिर
 मर मिटना बहुत जरूरी है ।।

खून पसीना बहाने से 
केवल पेट नहीं भरेगा ।
सोचो सोचो तुम भी सोचो
अकल से चलना बहुत जरूरी है ।।
अगर चाहते हो तुम 
दुनिया भर की दौलत ।
ख्वाबों के सागर में 
उड़ना बहुत जरूरी है ।।

सुनो किसानी करने वालो
बच्चों को पढ़ा देना ।
तुम तो आगे बढ़ नहीं पाए 
मगर उन्हें ही बढ़ा देना ।।
क्योंकि वर्तमान में 
स्थितियां बदल रही है ।
किसानों और मजदूरों की
ऐसी तैसी हो रही है ।।

तुमको भी उनसे अब
आगे बढ़ना बहुत जरूरी है ।
अगर आदमी हो तो 
दमखम रखना बहुत जरूरी है ।।
क्योंकि हल बक्खर से 
 काम नहीं चलेगा बन्धु ।
अगर चाहते हो बदलाव
शिखर में चढ़ना बहुत जरूरी है ।।
लेखक एवं राष्ट्रीय कवि -
जीतेन्द्र पुरी (टैटू वाले)
9118837179

(लेखक ने देश के किसान को अपनी कविता के माध्यम से  जागरूक किया है )
9:13 am

जीतेन्द्र कानपुरी के सुहावने गीत -



जब से नदिया के उस पार गए है हम ।
 जीती बाजी कसम से हार गए है हम ।।

टूटे दिल के सीसे ,एक बेवफा के खातिर ।
खुद अपने मन को मार गए हैं हम ।।

 जब से नदिया के उस पार गए है हम ।
 जीती बाजी कसम से हार गए है हम ।।

 भोला बन गए हम भी,भोली सी सूरत के पीछे ।
त्यागी घर कि सुविधाएं, जीवन भर बरबाद भए है हम ।।

जब से नदिया के उस पार गए है हम ।
 जीती बाजी कसम से हार गए है हम ।।
कवि एवं गीतकार -
जीतेन्द्र पुरी 
9118837179
7:45 am

चीन के विरोध में लेखक कवि जीतेन्द्र कानपुरी की पंक्तियां -



शीर्षक - वीरों की कुर्बानी का बदला ले लेंगे हम -------

ये ना समझो भूल गए ,
याद है हमें सब ।
बीरो की कुर्बानी का ,
बदला ले लेंगे हम ।।
देश में जो आंच आयी ,
सुन लो चीन वालों ।
तुम्हे तिनका समझ के ,
बरबाद कर देंगे हम ।।

छल से कपट से ,
खेल जो खेला है  ।
ये घिनौना खेल तो ,
हम भी खेल सकते है ।।
मगर मेल भाव ,
चाहते हैं हम सब ।
इसलिए वसुदेव ,
कुटुंबकम् बोलते है ।।

कोई हस्ती नहीं जो,
भारत को परास्त करें ।
सुन लो विदेशियों ,
हेकड़ी मिटा देंगे ।।
उतर जो आए ,
हम अपने पे भारत वाले ।
एक पल में तुम्हारी
धज्जियां उड़ा देंगे ।।

और सुनो सीना ,
फाड़ देंगें हम ।
आपके देश में ,
झंडा गाड़ देंगे ।।
तुमने तो मारे है ,
 कुछ ही जवान ।
हम आ गए तो पूरा ,
देश ही उजाड़ देंगें ।।
कवि एवं गीतकार- 
जीतेन्द्र पुरी (टैटू वाले )
(वीर रस पर आधारित कवि कि दमदार पंक्तियां)

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

10:39 pm

नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करनी चाहिए -

नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा  करनी चाहिए-
                          (जीतेन्द्र पुरी विशेष)
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जुलाई या अगस्त में पड़ने वाला ये त्यौहार बहुत ही शुभ फलदाई होता है
सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के दरवाजे के बाहरी किनारे हिस्से में गोबर के नाग बनाकर उन्हें स्थान देना चाहिए कुछ दूध की बूंदें उनके मुख पर डालकर उन्हें दूध पीने का आग्रह भी करना चाहिए ।
ऐसा करने से नाग देवता आदमी को कभी परेशान नहीं करते ।
और हर इंसान और पशुओं पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते है शुक्ल पक्ष की पंचमी का यह त्योहार बेहद पवित्र त्योहार है ।
कहते है भाव अच्छा हो तो सब कुछ करने में अच्छा लगता है ।
नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में लगे काल सर्प दोष में भी कमी आती है , आजीवन चल रही समस्याओं में कमी हो जाती है ।
हिन्दू धर्म ग्रंथो में नाग देवता का विशेष महत्व है नागों के राजा भगवान वासुकी देव का स्मरण करते हुए अगर आप उन्हें लड्डू या दूध या फिर किसी प्रकार का मीठा उन्हें चढ़ाएं मै दावे के साथ ये कह सकता हूं आपकी जीवन में आ रही तमाम बढ़ाएं स्वतः ही नष्ट हो जाएंगी ।
क्योंकि नाग देवता ही विष्णु भगवान की  शैया में है और नाग देवता ही भगवान शिव के गले की शोभा है , इसलिए अगर आप भी समाज में सम्मान पाना चाहते है तो नाग देवता की उपासना अवश्य करें और इस नागपंचमी के अवसर का लाभ उठायें ।
लेखक कवि  -
जीतेन्द्र कान पुरी
9118837179
6:07 am

माँँ की ममता मा का प्यार

माँँ से बड़ा न कोई किरदार - (गीतकार जीतेन्द्र कानपुरी)

माँँ की ममता मा का प्यार ।
माँँ से बड़ा न कोई किरदार ।।
माँँ जिन बच्चो के होती नहीं ।
उनका है जीवन बेकार  ।।
माँँ की ममता ,मा का प्यार 
माँँ से बड़ा न कोई किरदार ....

 कवि, गीतकार ,कहानीकार 
एवं उपन्यास लेखक - जीतेन्द्र कानपुरी
5:47 am

दिल को छूने वाले गीत -

गीत - ये भी क्या कोई जीना है ---
                     (गीतकार - जीतेन्द्र कानपुरी)
दिल ,दिल्ली और पूना है ।  फिर भी ये दिल सूना है ।
तुम्हारे बिना,तुम्हारे बिना। ये भी क्या कोई जीना है ।।
ये भी क्या कोई जीना है
ये भी क्या कोई जीना है ......

बिखरी बिखरी रातें है । मन में हजारों बातें है ।।
पर किससे बताऊं मै । न कोई करीब हसीना है ।।
ये भी क्या कोई जीना है
ये भी क्या कोई जीना है....

हर रोज बस मै जुदाई के । सदमे सहता रहता हूं ।।
बोलने को जी करता है । फिर भी मै चुप रहता हूं ।।
रब ने मुझको मेरी कसम
जी भर के दुख दीन्हा है ..
ये भी क्या कोई जीना है
ये भी क्या कोई जीना है ......
गीतकार एवं राष्ट्रीय कवि -
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
5:11 am

सुहानी यादें

रेडियो का जमाना और बचपन के दिन -

    (गुजरे जमाने की सुहानी यादें)

हमारे बचपन के दिनों में रेडियो और ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का जमाना था ।
ब्लैक एंड व्हाइट टीवी सबके पास नहीं थी , मगर रेडियो ज्यादा तर लोगों के पास था ।
 मेरे पिता जी भी एक रेडियो लाए थे , उस रेडियो को हम रात में खाना खाने के समय चालू कर देते थे , मेरी दादी भी रेडियो का पूरा आनंद लेती थी , पिता जी, मा जी , चाचा  और हम सब लोग एक जगह बैठ जाते थे ,
एक जगह बैठकर खाना खाते थे और विविध भारती सुनते जाते थे ।
रात्रि में रेडियो का स्टेशन बदलने का अपना अलग ही मजा था ।
रात्रि में लखनऊ , कभी भोपाल कभी नजीबाबाद , एवं अन्य तमाम स्टेशनों के अच्छे अच्छे कार्यक्रम सुनने को मिलते थे ।
सुबह रामायण की चौपाई , और रात में बाइबिल की बातें , आकाशवाणी के कवि सम्मेलन एवं मुशायरा की भी गजब की प्रस्तुति सुनने को मिलती थी ।
विविध भारती का हेलो कानपुर या हेलो फरमाइश भी बहुत सुखद था ।
रेडियो केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं था , कई चीजों के लिए लोगों को जागरूकता भी प्रदान करता था , हर रोज देश दुनिया की खबरों को समाचार के माध्यम से हमारे कानों तक पहुंचाता था ।
एक बार रेडियो के सेल ख़तम हो गए । 
और सेल के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे , मैंने मा से कहा बीस रुपए दे दो । मा ने कहा अभी नहीं है , याद है मुझे मै गुस्सा हो गया था ।
फिर बाद में मा ने पैसा दिया ।
मुझे भी बड़ा दुख हुआ कि रेडियो के सेल के लिए मा से भी झगड़ जाता हूं ।
मगर ये मेरा झगड़ा नहीं ,ये तो मेरा रेडियो और आकाशवाणी के प्रति प्रेम था जिसके चक्कर में मै किसी से भी झगड़ा कर लेता था ।
अगर मेरा रेडियो कोई उठा ले जाए ,तो मै अगले दिन उसे छुपा कर रख देता था ।
बस ऐसा ही था बचपन ।
आज भी मै छतरपुर आकाशवाणी को नहीं भूला
न ही युवा वाणी कार्यक्रम को भूला ।
लेकिन समय की व्यस्तता ने अब हमे खाली नहीं रहने दिया । इस वजह से हम रेडियो के ज्यादा नजदीक नहीं रह पाते ।
हमने रेडियो में सबसे ज्यादा लक्ष्मीकांत  - प्यारेलाल , शंकर जयकिशन , कल्याण जी - आनंद जी , नदीम - श्रवण 
 नौशाद ,ओपी नैय्यर ,  खय्याम एवं अन्य मशहूर संगीतकारों की धुनों से सजे कालजई गीत सुने , इनके गीत सुनने के बाद सारी थकान आज भी खत्म हो जाती है , मानसिक स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है ।
सच तो ये है कि रेडियो के जमाने में हम लोग जितना सुकून से जी रहे थे ।
आज की आधुनिकता और महंगी महंगी टेलीविजनों, मोबाइलों में  वो सुकून नहीं है ।
 विविध भारती के दो तीन नाम मुझे याद है मै अपनी बात को खतम करने से पहले , रेडियो में आकाशवाणी प्रोग्राम देने वाले श्री राजेन्द्र त्रिपाठी जी , कमल शर्मा जी और युनूस खान जी को नमन करता हूं । रेडियो में इनकी आवाज़ सुनकर हम सब बहुत प्रभावित होते थे । इनकी आवाज़  में एक जादू था , शायद इनकी वजह से भी लोग रेडियो में चिपके रहते थे ।
कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले) 

( "लेखक ने बचपन के जमाने की बीती बातों को उजागर करते हुए रेडियो से मिलने वाले सुख को अपने लेखन में दर्शाया है , हम आशा करते है पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा ।")

सोमवार, 20 जुलाई 2020

10:26 pm

अमूमन क्या होता है जब एक स्त्री और एक पुरुष

अमूमन क्या होता है
जब एक स्त्री और एक पुरुष
साथ रहने लगते हैं

एक पुरुष उतना ही पाने लगता है
जितना एक स्त्री खोने लगती है

और इसका हिसाब
कोई गणित ,विज्ञान या शास्त्र नहीं दे सकता
और ना ही एक पुरुष

इसका जवाब दे सकती है
केवल और मात्र
पूर्ण से अपूर्ण हुई
एक स्त्री

सलिल सरोज

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

2:16 am

ये कैसी बेख़बरी है

ये कैसी बेख़बरी है , ये कैसी बदमिज़ाज़ी है 
खुदा ही है गिरफ्त में और मौज में काज़ी है

हलक की साँसें रोकर मौत ही दिलनवाज़ी है
इसका अन्जामजदा पाँच वक़्त का नमाज़ी है 

वायदे-इरादे कुछ भी नहीं , बस लफ़्फ़ाज़ी है 
जो भी अच्छा वक़्त था,वो अब केवल माज़ी है 

औरतों का इरादा ढँका रहे , कैसी जाँबाज़ी है 
कुछ दिमाग अब भी बदसलूकी का रिवाज़ी है 

क्या दिया , जो तुम्हारे छीनने की अब बाज़ी है 
बेमतलबी ज़िद्द पर अड़ा समाज कट्टर गाज़ी है 

जितनी चाहो ,हम उतनी बार सच के हाजी हैं 
पर मसअला ये है की सुनने को कौन राज़ी है  

सलिल सरोज 
कार्यकारी अधिकारी 
लोक सभा सचिवालय 
संसद भवन नई दिल्ली

बुधवार, 8 जुलाई 2020

9:42 am

हसीब सोज़ बदायूँनी की अवामी शायरी - सराफत समीर


           बदायूँ हमेशा से इल्म,अदब और मार्फ़त की पुरनूर वादी बना रहा है..हज़रत अमीर खुसरो ने इसकी खाक को सुरमा करने की ख्वाहिश जताई तो मसहफी अमरोहवी ने अपने महबूब की गली को बदायूँ से तस्बीह दी,
   जानां तेरी गली भी बदायूँ से कम नही,
   जिस में कदम कदम पे मज़ारे शहीद है
      मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूँनी ने मुग़ल सल्तनत की तारीख और महाभारत का फारसी में 'रिज़्मनामा ' नाम से तर्जुमा कर हिंदुस्तानी अदब में अपना मकाम बनाया जिसकी पैरवी करते हुए फानी बदायूँनी,दिलावर फ़िगार,महशर बदायूँनी,अदा जाफरी बदायूँनी,शकील बदायूँनी,जीलानी बानो,असद बदायूँनी,इरफान सिद्दीकी, ने उर्दू अदब में अपना बेहद मोहतरम मक़ाम बनाया तो डॉ बृजेन्द्र अवस्थी और डॉ उर्मिलेश शंखधार ने अपनी रोशनी से हिंदी कविता को जगमगाया।
    मौजूदा वक़्त में भी तमाम कवि और शायर अपनी अपनी कोशिशों और काविशों से हिंदी और उर्दू के दामन को अदब और शायरी के जेवरात से सजाने में लगे हैं।मौजूदा दौर के इन तमाम शायरों में एक नाम जो इस वक़्त के तमाम शायरों के लिए लायक ए एहतराम है और शायरी में अपने मख़सूस अंदाज़ की बिना पर हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के मुख्तलिफ ममालिक में बदायूँ का परचम शान से लहराता है..वो नाम है-जनाब Haseeb Soz साहब का।
    हसीब सोज़ साहब बदायूँ के करीब क़स्बा अलापुर में पैदा हुए और यहीं मुकीम हैं। अपने मख़सूस शेरी लहजे की बिना पर हसीब सोज़ के अशआर भीड़ में अपनी हाज़िरी दर्ज कराते हैं और साफ पहचाने जा सकते हैं।आम इंसान की आम ज़िंदगी से जुड़े पहलू उनकी शायरी को खास बनाते हैं।उनके कुछ अशआर तो इतने मशहूर हैं कि जर्बुल मिस्ल (कहावत) की हैसियत रखते हैं-

हमारे दोस्तों में कोई दुश्मन हो भी   सकता है
ये अंग्रेज़ी दवाएं हैं, रिएक्शन हो भी सकता है

यहां मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है
कई झूठे  इकट्ठे  हों  तो सच्चा टूट जाता है

    हसीब सोज़ साहब की शायरी में इश्क़ और मुआश्के की बातें काम ही नज़र आती हैं..इंसानी इक़दार और इंसानियत,रिश्तों की पासदारी,समाज और मुआशरे के बदलते रूप इनकी शायरी के अहम मौजूआत हैं ।

मैं बेवक़ूफ़  कि  मारा  गया  भरोसे  में
कहीं मकान भी बनता है एक हफ्ते  में

मैं अपनी नज़रों में हर दिन ज़लील होता हूँ
अमीरे   शहर  तेरा   एहतराम   करते   हुए

यही तो होता कि अपनी नज़र में गिर जाते
'हसीब सोज़'   मगर   नौकरी   नहीं   जाती

   हसीब सोज़ साहब की ज़बान सहल और आम फ़हम है उनके कारी को उनके अशआर समझने में मशक्कत नही करनी पड़ती, वे हिंदी और अंग्रेज़ी के अल्फ़ाज़ का इस खूबी से शायरी में इस्तेमाल करते हैं कि पढ़ने और सुनने वाला मसर्रत से झूम उठता है।आइए अब मज़मून को ज़्यादा लंबा न खींचकर हसीब सोज़ साहब की शायरी का लुत्फ लिया जाए। पेश हैं उनके ताज़ा मजमूए ' चाँद गूंगा हो गया ' से उनके कुछ खूबसूरत अशआर-

पक्की कोई तो चीज़ हो कच्चे मकान में
मारा   गया   ग़रीब   इसी  खींचतान   में

हम गुनाहगारों का झगड़ा था निबट जाता कभी
लेकिन अब तो बीच मे अल्लाह  वाला पड़ गया

राम तो मैं भी हूँ लेकिन ये मुक़द्दर है मेरा
मेरे वनवास में शामिल कोई सीता न हुई

मेरी हयात है नाटक का आखिरी मंज़र
अब इसके बाद कोई खेल  दूसरा होगा

बावजूद इसके तेरा साथ निभाया मैंने
तू  फटा  नोट था  पूरे  में  चलाया मैंने

ये  इन्तेक़ाम  लिया  अपनी  बदनसीबी  से
हम अपने नाम से पहले नवाब लिखने लगे

करीब  रहने  की  तरकीब  ये निकाली है
कि अपने साथ तेरी सीट बुक करा ली है

मगर ग़रीब की बातों को कौन सुनता है,
मैं  बादशाह  था सबको बताता रहता हूँ

                                    -----
                          -शराफत समीर
                          दातागंज -बदायूँ
                         9058033485

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

6:40 am

कहानी

आदरणीय, हिंदी साहित्य वैभव में मेरी कहानी को भी स्थान प्रदान करने की कृपा करें।

कहानी के साथ मेरा संक्षिप्त परिचय तथा फोटो भी संलग्न है।

सादर धन्यवाद 🙏



#संक्षिप्त परिचय


नाम : रचना निर्मल

जन्म: 5 अगस्त 1969, पंजाब

शिक्षा: ( राजनीति विज्ञान ) स्नाकोत्तर

रुचि : पठन , पाठन,समाज सेवा

कर्म क्रिया:  अध्यापिका , गृहणी, समाजसेवी

प्रेम : सच्चाई देश और प्रकृति से..

प्रिय लेखक : महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, प्रेमचंद,मीर,राहत इंदौरी

साहित्यिक क्षेत्र: गीत,ग़ज़ल,कविता,छन्द,कहानी लघुकथा इत्यादि

साहित्यिक यात्रा : दो वर्ष

प्रकाशन: विभिन्न राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, विभिन्न विधाओं के साझा संकलनों में रचनाएँ सम्मिलित

उपलब्धियाँ: विभिन्न मंचों द्वारा रचनाओं हेतु समय समय पर पुरस्कृत एवं सम्मानित

गोल्डन बुक्स आफ रिकार्ड में प्रकाशित पुस्तक" हे पवन " में कविता- स्त्री और हवा, लघुकथा -कसूर किसका

,सचिव (महिला काव्य मंच (रजि०) , साहित्य शिखर की राष्ट्रीय सचिव, सोपान साहित्यिक संस्था की कार्यकारिणी सदस्या,विहंगिनी की आजीवन सदस्यता

सम्पर्क: फोन: 9971731824 , 7011594469

ईमेल: rachnabhatia800@gmail.com






                           व्यथा





आज राधिका के मन में एक उम्मीद जगी थी कि सब ठीक हो जाएगा। उसके शरीर में दूसरे जीवन की आहट हुई थी।उसने ठान लिया था कि इसे गिराएगी नहीं। बल्कि अपनी जेठानी की झोली में डाल देगी। जिससे चैतन्य के होने के बाद घर में जो तनाव हुआ है वह कुछ कम हो जाए। उसका गृहस्थ जीवन भी सही पटरी पर चलने लगेगा। रोज़ के लड़ाई झगडे अब खत्म हो जाएंगे। इसी उम्मीद से अब वह दिन काटने लगी। हालांकि कुछ नहीं बदला था। वही ताने, वही मार पिटाई रोज़ हो रही थी। किसी में दया नहीं दिखती थी। किसी को चिंता नहीं थी कि उसके अंदर एक जीवन और भी है। राधिका २४ घंटे बस एक ही प्रार्थना करती थी कि उसका बच्चा सही रहे। नियत समय पर एक परी संसार में अाई। पर किसी के चेहरे पर खुशी न थी। केवल राधिका ही उसे निहार रही थी। उसकी बोलती आंखे, पतले गुलाबी होंठ जैसे उसे बांधे जा रहे थे। पर यह मेरा दूध क्यों नहीं ले रही?डॉक्टर बच्चे के कम वज़न पर चिंतित थे। इसलिए बोले ,दो चार दिनों में लेना शुरु कर देगी। थोड़ी कमज़ोर है। सिजेरियन होने के बावजूद अशोक (पति) ने तीसरे दिन छुट्टी करवा दी कि घर में मुश्किल है।

घर आते ही डेढ़ साल के चैतन्य के साथ साथ बाकी काम भी करने लगी। घर में सास के अलावा दो जेठानी भी थी पर ताने देने के अलावा कोई कुछ नहीं करता था। परी सारा दिन सोती थी रिस्पॉन्स तो करती नहीं थी। रात 8.30 से लगभग 11.00 बजे तक बहुत रोती थी जैसे कहीं दर्द हो। रोज़ ही नीयत समय पर जब परी के साथ ऐसा होने लगा तो राधिका ने अशोक से कहा कि डॉक्टर को दिखाना चाहिए एक  समय पर ही क्यों रोती है। सास ने राधिका को डांटते हुए कहा कि कुछ भी खाती हो, कम खाओ तो वो ठीक रहेगी। बहुत कहने पर अशोक परी को डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने उसे देखा। सिर को नापते हुए घबरा गया और दो तीन बार नापा। फिर चिल्ला पड़ा। बच्चे पर ध्यान नहीं है। इसका सिर बड़ नहीं रहा है। यह आवाज़ पर रिस्पॉन्स भी नहीं कर रही ह, न ही इसकी पकड़ मजबूत है। तुम एक बच्चे की पहले भी मां हो। कैसे पाल रही हो? राधिका घबरा कर बोली मैंने नोटिस किया था पर लगा, कमज़ोर है, सोती ज्यादा है इस लिए स्लो है। कुछ दिनों में ठीक हो जाएगी। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिखे और जल्दी से जल्दी रिपोर्ट लाने को कहा। उसमे एक टेस्ट बहुत मंहगा था। घर आते ही अशोक ने मां को बताया। सास ने कहा डॉक्टर ऐसे ही बोलते हैं। अरे महीने की तो है। कुछ दिनों में देखना ठीक हो जाएगी। टेस्ट वेस्ट डॉक्टरों के चोंचले हैं। पर राधिका का दिल न माना। उसने अशोक के हाथ पैर जोड़ कर टेस्ट करवाने के लिए राज़ी कर लिया। दो दिन बाद अशोक अकेले ही डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाने के लिए गए। वापिस आ कर सीधा मां के कमरे में चले गए। ऐसा लगा कि गुप चुप कुछ मंत्रणा चल रही है। राधिका बहुत बेचैन थी। क्या हो रहा है अंदर? क्या सच में मेरी परी को मेरी जेठानी गोद ले लेगी? राधिका का कलेजा मुंह को आ गया। उस दिन को कोसने लगी जब उसने यह मनहूस बात सोची थी। क्या करे? कुछ सूझ न रहा था।वह चाय पानी पूछने के बहाने अन्दर गई तो सब चुप हो गए। सारा दिन राधिका सहमी सी काम करती रही कि आगे क्या होगा, क्या गाज गिरेगी। अगले दिन अशोक राधिका और परी को ले कर नए डॉक्टर के पास गए। वहां केबिन में जाते ही अशोक ने कहा, डॉक्टर के पास अकेले अंदर जाना। ऐसा पहले भी होता था इसलिए राधिका ने बहस करना मुनासिब न समझा और केबिन की ओर बढ़ गई। डॉक्टर ने इशारे से बैठने को कहा और पूछा कि आपको पता है कि आपके बच्चे के साथ क्या दिक्कत है? राधिका ने न में सिर हिला दिया। डॉक्टर ने कहा तुम्हारे पति ने तुम्हे बताया नहीं कि इसका दिमाग नहीं है। राधिका ने परेशान हो कर पूछा कि थोड़ा समय लेगी क्या रिस्पॉन्स करने में? डॉक्टर ने कहा देखिए आपके बच्चे के दिमाग की जगह खाली है। यह कभी रिस्पॉन्स नहीं देगी। यह सिर्फ ऐसे ही रहेगी। क्युकी दिमाग नहीं होने से नर्वस सिस्टम काम नहीं करता। यह न तो किसी को पहचानेगी न ही कोई एक्टिविटी करेगी। सुनते ही राधिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई। रोने लगी। कोई इलाज़ तो होगा। नहीं इसका कोई इलाज़ नहीं है, जन्म से ही वह जगह खाली है। ऐसे बच्चों का कुछ नहीं हो सकता। जब तक जिएंगे बोझ ही रहेंगे। राधिका ने अनजाने डर से परी को अपने साथ जोर से चिपटा लिया। आंसू कब गंगा यमुना बन बहने लगे पता ही नही चला। डॉक्टर साहब प्लीज़, कोई तो इलाज़ होगा। नहीं, कोई इलाज़ नहीं है। धीरे धीरे पूरा सिस्टम फेल होने लगेगा। इसको दौरे पड़ते हैं क्या? नहीं ,डॉक्टर साहेब। रात को रोती बहुत है बस। कानों में कहीं आवाज़ आई, कुछ दिनों में शुरू हो जाएंगे। ध्यान रखें जैसे ही शुरू हो डॉक्टर को दिखा कर दवाई शुरु कर दे। हर दौरे के साथ इसकी कंडीशन और खराब होती जाएगी। बस जितने दिन की सेवा लिखी है आप करिए। कहने के साथ ही उसने दूसरे मरीज़ के लिए घंटी बजा दी।

बेजान सी राधिका केबिन से बाहर अाई और अशोक के पास बैठ गई। बड़े शांत स्वर में उसने पूछा, सब पूछ समझ लिया? राधिका ने धीरे से सिर हिलाया और अशोक की तरफ देखा। अशोक चुप चाप उठा और बाहर अपने स्कूटर की तरफ़ चल दिया। लाश सी बनी राधिका परी को अपने साथ चिपटाए उसी के पीछे चल दी। सारे रास्ते सोचती रही, क्यों किया ईश्वर ये। मेरी परी ही क्यों? उसने किसिका क्या बिगाड़ा है? अशोक  घर के बाहर पहुंच बिना कुछ बोले सास के कमरे में चला गया। राधिका जैसे तैसे अपने कमरे तक पहुंची और परी को गले लगा जोर जोर से रोने लगी। चैतन्य मां को रोता देख सहम गया। मां की पीठ पर सिर रख कर चुप चाप खड़ा रहा। उधर राधिका बसभगवान से प्रार्थना कर रही थी, कि मुझे आप जो मर्ज़ी सज़ा दे दो। इस बच्चे पर यह अत्याचार मत करो। मेरी परी को ठीक कर दो। शाम को अशोक ,सास ,जेठ, जेठानी उसके कमरे में आए। यह काम छोड़ कर रोना कब तक चलेगा? उठो रसोई में जाकर अपना काम करो। इसके लिए कोई अनाथालय ढूंढ़ते हैं। राधिका के उठे कदम वहीं थम गए। यह क्या कह दिया इन लोगों ने। यही मंत्रण चल रहा था कल से क्या? इसका मतलब इन लोगों को पता है। छूटते ही सास से पूछा क्यों मम्मी जी? सास ने कहा तो और इसका क्या करेंगे। साथ ही अशोक बोल पड़े, चलो बोलो नहीं, रसोई में जा कर कुछ बना लो बहुत भूख लगी है।

राधिका न चाहते हुए भी रसोई में जा खाना बनाने लगी।

हाथ और दिमाग अलग दिशा में चल रहे थे। क्या सच में ये अपने परिवार के इस नाज़ुक हिस्से को काट देगे। क्या वह कुछ नहीं कर पाएगी दूसरे ही क्षण दिल से आवाज़ आई, नहीं अशोक ऐसा नहीं होने देंगे। उनकी बेटी है, उन्होंने ही तो परी नाम पर हां कहा था। मुझसे ,चैतन्य से प्यार नहीं है माना। पर छोड़ने की बात तो कभी नहीं की। परी को कहीं नहीं जाने देंगे। रात को धीरे धीरे सिसकियां भर रही थी कि उसे अशोक का स्पर्श महसूस हुआ। इतने दुख में भी? मन में आया हाथ ज़ोर से झटक दे। पर इसके लिए शरीर में जान भी नहीं बची थी। पर यह क्या अशोक बहुत प्यार से बात कर रहे थे, मै तुम्हारा दुःख समझता हूं। मेरी भी तो कुछ लगती है। पर अब रोने से क्या होगा। इतने सालों में पहली बार राधिका को अशोक का स्पर्श अपना सा लगा। झट से उसके गले लग जोर जोर से रोने लगी। अचानक अशोक भी रोने लगा। दोनों एक दूसरे का कंधा अपने आंसुओ से भिगो रहे थे। राधिका अशोक का कॉलर पकड़ कर धीरे धीरे कह रही थी, प्लीज़ इसे कहीं मत भेजो यह हमारी बेटी है। अशोक ने कहा नहीं हमें इसे छोड़ना ही होगा। हम इसका क्या करेंगे। जितनी बड़ी होती जाएगी मुश्किलें बढ़ती जाएगी। कौन इतना पैसा ख़र्च करेगा? पर अभी कुछ मत सोचो,। बातों बातों में कब सुबह हुई पता नहीं चला। सुबह बीच वाली जेठानी आशा ने टोका, रात को बहुत रोने की आवाज़ आ रही थी। राधिका चुप रही। वह चैतन्य को उठाने चली गई।  दो चार दिनों में ही परी को दौरे पड़ने लगे। उसका शरीर ऐंठ जाता था। परी दर्द से तड़पती थी और राधिका उसकी तड़प देख कर रोती थी। सबने परी पर ध्यान देना बंद कर दिया था। आए दिन उसे इंफेक्शन हो जाता, कभी बुखार, कभी छाले। कोई डॉक्टर हाथ लगाने को राज़ी नहीं होता। इमरजेंसी में उसे लेजाना होता। रोज़ कोई न कोई टेस्ट, प्राइवेट डॉकटरों की महंगी फीस के चलते रोज़ घर में लड़ाई आम बात हो गई थी। राधिका ने न जाने कितने व्रत शुरू कर दिए। घर में सभी उसे अनाथालय भेजने पर ज़ोर देने लगे थे। सास को तो राधिका पागल लगती थी। राधिका बिना बोले सब कर रही थी। कैसे अपने जिगर के टुकड़े को बीमार बिस्तर पर पड़ा रहने दे।अब रोज़ राधिका के चक्कर मंदिर, डॉक्टर के पास, और अशोक के चक्कर पंडित, ज्योतिषों के पास लगने लगे।एक दर्द का हल पूछता था। दूसरा मुक्ति का। एक उसकी लंबी उम्र की दुआए करता था दूसरा उसकी मौत की। घर का दबाव बढ़ता जा रहा था। अब अशोक भी परी को कहीं छोड़ आना चाहते थे। जब तब ऐसी ही बातें होती थीं। डॉक्टर, दवाई के खर्च बढ़ते जा रहे थे। एक दिन अशोक ने कहा अब इसे दवाई देने की जरूरत नहीं है। राधिका की आवाज़ में तलख्खी थी ।क्यों? अशोक गुस्से से बोले, तुम उसे मरने क्यों नहीं देती। मां हो तो उसे मुक्त होने दो, या कहीं छोड़ आओ। ऐसे बच्चो के लिए कई आश्रम है। सब वहीं छोड़ते हैं। तुम्हारी लाडो वहां अकेली नहीं है। राधिका गूंगी खड़ी सोच रही थी, यदि बाप की सोच ऐसी है तो दूसरों से क्या शिकायत। कुछ कह पाती इससे पहले ही अशोक घर से बाहर निकल गए। राधिका वहीं फर्श पर बैठ गई और परी को निहारने लगी। क्या करे, कैसे इसे बचाए? इन जालिमों से कोई उम्मीद रखनी बेकार है। जब कभी चैतन्य को प्यार से गले नहीं लगाया तो इसे कहां प्यार देगे?उसे महसूस हो रहा था कि अब उसे ही खड़े होना है। अशोक से भी हर उम्मीद खत्म है। अपने को समझाने लगी ,एक पाई खर्च करना तो दूर, कभी प्यार से बात नहीं की, परी के बारे में क्या सोचेंगे। अब उसे ही खड़ा होना है परी की ढाल बन कर। अब उसे कोई हाथ नहीं लगा सकता। अब वह एक मां की जिम्मेदारी निभाएगी। उसने अपने हाथों अपने आंसू पोंछे और परी के माथे को चूम कर कहा। तेरा कष्ट दूर करना मेरे बस में नहीं। पर तेरी सांसे किसी को न लेने दूगी। मां हूं तेरी ,जीवन की इस लड़ाई में हर पल तेरा साथ दूंगी। चैतन्य को भी गले लगाया। जैसे आश्वस्त कर रही हो कि तू हमेशा हर मुश्किल में मेरे साथ रहेगा न।  इतने में सास की आवाज़ आई, क्या कर रही है उसके साथ, बाहर आ कर मेरे पैर दबा। राधिका उठते उठते वापिस बिस्तर पर बैठ गई। पूरी हिम्मत को इकट्ठा करके जवाब दिया,परी को सुला कर आऊगी। जानती थी शाम को अशोक के आने पर कान भरे जाने थे फिर सबके सामने जिल्लत, मार पिटाई। सब सहेगी कुछ नहीं होने देगी परी को। धीरे से परी के कान में कहा, जब तक मै और तेरा भाई है तुझे किसी से डर नहीं है। और परी की तरफ मुस्कुरा कर देखा। उसे लगा परी कह रही है। शुक्रिया मां ,अब मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता। तुम्हारी बाहों में सुरक्षित हूं मैं। छोटा सा चैतन्य उसके साथ ऐसे चिपक गया जैसे कह रहा हो मां, मै भी तुम्हारे साथ हूं।



स्वरचित 

रचना निर्मल

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

3:29 am

Baljeet

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
      सम्पादक महोदय
      हिंदी साहित्य वैभव वेब पत्र
  
श्रीमान जी,
       सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्र को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपके पत्र में हो सकेगा!
  धन्यवाद

    भवदीय
बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी:125033
मोबाईल:9996266210

ग़ज़ल

हर समय क्यों बदगुमानी चुप रहो
क्या वही फिर बदज़ुबानी चुप रहो

रूखे सूखे हो रहे हैं लब मेरे
आँसुओं में है रवानी चुप रहो

ज़ुल्म वो करते हुए ये कह रहा
शख्स मैं हूँ ख़ानदानी चुप रहो

इश्क पर बस अब कभी चर्चा नहीं
खाक़ अपनी ही उड़ानी चुप रहो

आज तो दुनिया नहीं या हम नहीं
दाँव पर दुनिया लगानी चुप रहो

रविवार, 28 जून 2020

11:49 pm

फिल्म - बुलबुल दो शब्द

फ़िल्म का नाम है bulbhul(बुलबुल)। इसे देखकर अगर मैं दो शब्दों की इसकी व्याख्या करूँ तो मैं इसे "हृदय विदारक" कहूंगी ।
एक बंगाली बच्ची जो बड़ी बहू बनकर ठाकुरों की हवेली में आती है और इस कदर दर्द भरा जीवन जीती है जिसे देखकर "मैली इच्छाएं" कहानी की याद आ गयी ।
एक वयस्क कहानी जो मैंने कुछ महीनों पहले लिखी और किंडल में डाली थी ।
उसकी राजकिशोरी और इसकी बुलबुल एक जैसे ही तो हैं ।
बुलबुल के चेहरे पर सदा मुस्कान चिपकी रहती है और आँखो में दिखता है मुस्कान के पीछे छिपा अथाह दर्द जिसे सत्या( नायक) बुलबुल का देवर , समझ ही नहीं पाता ।
इसमे एक दूसरी बच्ची अपने बाप की मौत पर कहती है " काली मां ने मारा है " ।
चुड़ैल ने नहीं ।
दिल को झझकोर देने वाला कथन था ।
चांद का लाल होना कहानी की जान है और फ़िल्म में नायिका का किरदार 100 में से 101 का हकदार है । वैसे मुझे उसमे(नायिका में ) श्रद्धा कपूर की छवि लगी ।
बड़ी हवेली के बड़े राज दफन रखने वाली कहानी है । देखना न देखना आपकी इच्छा है । ❤️❤️❤️

सुरभी सहगल 

सोमवार, 8 जून 2020

8:55 pm

रेगिस्तान की कविताएं - कमल सिंह सुल्ताना

1.
           ◆◆ आक का दोना ◆◆
_______________________________________
खेत में बने झोंपड़े के पास
आकड़े की छांव में 
निहारता हुआ फसल को
मैं बैठा रहता हूँ देर तक अकेला
कुछ ही समय पश्चात
देखता हूँ कि 
हुकमिंग आ रहे है यहीं
कंधे पर तार बंधी 
गहरी छीली हुई लकड़ी उठाये
हाथ में लटकाए बोतल
एक भरी पूरी एवडजात के साथ ।

उन्होंने इच्छा प्रकट की
हालांकि सारी इच्छाएं है छलनाएँ
क्या की जाए दो बातें
पहली अपने मे रमती हुई
दूसरी जनतंत्र की जाजम की
जो झुलस रहा है भीड़तंत्र बना  ।
बेपर्दा आकड़ो के पास
अग्नि चेतन करते समय 
उन्होंने बना ही दी चाय ।

एक गंभीर समस्या उभरी
कि पान कैसे करें?
वे बर्तन गवाड़ी भूल आये 
मेरी सहयोग की मन में नही है 
पास की आकड़ा हिल - डुला कर
मौन आमंत्रण देता है 
बनाया जाता है तत्काल दोना
और पान किया जाता है
षट - रसों से सिरमौड़
त्रिलोकी पसरा प्रेम का ।

_________________________________________
2.
        ◆◆ ये वह रेत नही ◆◆

ये रेत तो है
किंतु वैसी न रही
इसके होने में अहसास नहीं
उभर आई है कृत्रिमता
मुंह उठाकर देखता हूँ तो 
ठूंठ थे जहां कभी
उग आए है वहां
कई - कई हाथ लंबे खंभे
जो घूमते रहते है वर्तुलाकार
लगातार कई कई दिन रात 
सोख लेते है जो 
मेरी जमीं की सारी पवन ।

पिछले बरस की ही बात है कोई
हुआ है अघोषित बंद का एलान
सब मनाही हुई है 
उन पवन चक्कियों की ओर जाने की
बच्चे नही जा सकते वहां
पाका, पीलू और सांगरी के बहाने ।
लगा दी गई है लंबी रोक
तमाम नासेटों की
अब जिनावर खोते नहीं
चुरा लिए जाते है
आदम - जानवरों के द्वारा ।

एक गहरा लाल बिंदु
पळपळा रहा है अनवरत
क्षणिक दिखता है क्षणिक ओझल
दूर ऊंचे आकाश में
तारों के ही पास
निहारा जा सकता है उसे
उपेक्षित दृष्टिकोण से ।
रात के सन्नाटे में
अध-खुली सी आंखों से ।

ढाणी के ठीक बीचो- बीच
बिछा रखी है कई तारें
जिनमे चलता है करंट
भागती है बिजलियाँ
आवागमन करती है 
तकनीक ढाणी की तरफ ।
पर्दा ओढ़े मां को
खाया जाता है एक डर
सहम जाती है कल्पना से
कहीं ,कभी न कभी
नंगे पांव जमीं नापता
नन्हा धूड़ा चला  न जाये
उस करंट से क्रीड़ा करने ।
  ________________________________
3.
          ◆◆मूमल के देश ◆◆

दूर तक फैले
अपने असीम और दिंगत फैलाव के साथ
ये रेतीले धोरे
इस जहां के नही है 
इन्हें यहां लाया भी न गया
हवाओ के साथ हुई संधि के बाद ।
ये स्वतः उड़ आये है
सरहद पार से
महेंद्रा के देश से ।

इस धोरों में कुछ भी
नयापन जैसा नहीं है 
एक स्वर है
कलकल है,निनाद है
मुस्कुराहट है चिर परिचित सी
कोई वैरागी राग है
किसी एक ही स्वर से उलझा
शायद वो संबोधन है कोई
अरे हां, मूमल ।

मैंने सुना था 
किसी के मुख से कि
धोरे निर्जीव होते है 
अफसोस ! गहरा अफसोस !!
कि मैं सुन न सका
बरसों बीत जाने बाद भी
सांय सांय के सरणाटे संग
घूमते फिरते है जीव
मूमल - महेंद्रा के नाम बांचते। 

__________________________________
4.
        ◆◆हृदयंगम◆◆
____________________________
कि घने बरसों तक 
उलझनों से उलझकर
मैं कर न सका हृदयंगम ।
द्रुत गति से दौड़ती
मोटर- गाड़ियां और रेल
जैसे सब के सब 
मेरे ही तो थे कभी
और फिर छीने गए मुझसे ही
उड़ती धूल के पीछे
पेट की भूख को मैंने
सहजता से किया हृदयंगम ।

कभी देखता हूँ
तेज हवा का एक झोंका
कारी लगे मेरे वस्त्रों से
हो जाता है आर - पार
मानो ! मुझसे पूछता है 
प्रगति का सेहरा बांधे
इस नई - नवेली दुल्हन की
कहां आवश्यकता हुई 
मुंह - दिखाई में में ही जिसके
छीन लिया संस्कृति का मूल
आखिर कब तक बचाओगे ब्याज ।

थोड़ी दूर चलकर सोचता हूँ
मेरे बापू की झुर्रियों के विषय में
लिपटा पड़ा जिससे संतोष
भीषण लू के थपेड़ों
उजड़ आंधियो के सौतेले व्यवहार
और तो और
तपती रेत से हींये के बाद ।
जिस घर को बचाया
वो तो नवीन सभ्यता के
एक हल्के से झोंके भर से
उड़ गया बहुत दूर,बहुत दूर ।

घर मे रखी हुई है
पिछले बरस की धान की बोरी
सवालात करती है मुझसे
आखिर कब तक रखोगे मुझे 
दामों के इंतजार में
बेच क्यों नही देते अब ।
भावनाओ से उलझकर
मानवीय मूल्यों का क्या करोगे
ये छीन लेंगे बहुत जल्द
तुम्हारे सिर की पगड़ी
इससे पहले की धान के भाव गिरे
मुझे बेच डालो 
हां, मुझे बेच डालो तुम ।
         ----- कमल सिंह सुल्ताना
 ______________________________________
डाक पता - ग्राम / पोस्ट -: सुल्ताना
 जिला -: जैसलमेर  ( राजस्थान)
पिन कोड - 345001
संपर्क सूत्र - 9929767689

6:38 am

Fresh feeling. ..hr koi Akeld. ..

मान्यवर  मित्रों , 04.06.2020

दिल  पर  मत  लेना ...


हर  कोई  यहां  अकेला .....

जीवन हर  किसी  को   प्यारा 
बचपन  सबका  राज  दुलारा 
अपराध जीवन में  एक बार
एक  को  दूसरे से  प्यार 
सामाजिक  ज़िम्मेवारिंयों का  पहाड़ 
सारी उम्र  फिर धोबी पछाड़ 
किलकारियां  की  चौतर्फा बहार 
हर  समय  गले  का  हार 
उम्र  संग  कई  मेले 
ज़िन्दगी में कुछ  झमेले 
सोच  बराबर  बदलती  जाये 
कुछ  चीजे संभलती  जाये 
फिर  सब  छूट  जाये 
खाली  हाथ  रह  जाये 
यही  चक्र  हैं  अलबेला 
हर  कोई  यहां  अकेला 

आपका अपना 
वीरेन्द्र  कौशल

गुरुवार, 4 जून 2020

11:47 pm

प्रकाशन हेतु स्वरचित रचना

सपना

विरह के आग़ में जलते जलते
उस दिन मैं काफ़ी दूर आ गया था
वो वीरान और ख़तरनाक जंगल था
वहां मैं कब कैसे पहुंचा मुझे खबर नहीं 
जहां सिंह की दहाड़ और झिंगुरों की कर्कश आवाज थीं
दिन में भी घनघोर अंधेरा और हो रहीं तेज़ बारिश थीं
मैंने प्रकृति के इस रूप का अभिवादन किया
प्रकृति भी ख़ुश हो कर मुझ पर पुष्प वर्षा कर रही थी
मैं ख़ामोश हो कर ये सब चमत्कार देखता रहा
कोयल कोई गीत गा रही थी मयूर नृत्य कर रहे थे 
तभी एक तेज़ रोशनी मेरे आंखों से टकराई
ओह ये क्या मेरी आंखें ये सब सपने में देख रही थी


शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र


मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि ये रचना मेरे द्वारा स्वरचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट उलंघन के मामले में मैं स्वयं जिम्मेदार रहूंगा, प्रकाशक मंडली नहीं।

मंगलवार, 2 जून 2020

5:00 am

प्रकाशन हेतु स्वरचित रचना


विषय - आईना

दर्पण उस रोज़ ख़ामोश था
मैंने उससे पूछा क्या हुआ
बड़े दुःखी मन से वो बोला
सच सबका जो मैं दिखलाता
उलाहने उन सबकी मैं ही पाता
इल्ज़ाम मुझ पर इतना सब आता
फ़िर भी मैं जो जैसा उसको वैसा बतलाता
नाराज़गी फ़िर मैंने आईने का ऐसे दूर किया
देख अपना अक्स उसमें ज़रा सा मुस्कुरा दिया
मुझे यूं मुस्कुराता देख दर्पण भी ख़ुश हुआ
अपनी सारी शिकायतें भूल मेरे संग मुस्कुरा दिया

शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र



मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि प्रस्तुत रचना मेरे द्वारा रचित है। किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में सिर्फ़ मैं जिम्मेदार रहूंगा ,संपादक मंडली का इसमें किसी भी तरह का दोष नहीं होगा।

रविवार, 31 मई 2020

9:35 pm

Baljeet

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
        सम्पादक महोदय,
        हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका

       सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस ग़ज़ल का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
                 धन्यवाद
             भवदीय
            बलजीत सिंह बेनाम
             जन्म तिथि:23/5/1983
             शिक्षा:स्नातक
            सम्प्रति:संगीत अध्यापक
           उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
   हाँसी
मोबाईल:9996266210

ग़ज़ल
मुझे ग़म से निभाना गर नहीं आता
ख़ुशी का ज़िंदगी भर दर नहीं आता

जिसे मंज़िल को पाने का जुनूँ हो
सफ़र से लौट कर वो घर नहीं आता

हिमायत तू जो करता ज़ालिमों की
कभी इल्ज़ाम तेरे सर नहीं आता

सभी से पूछता है हाल ए दिलबर
मगर ख़ुद जा तसल्ली कर नहीं आता

शनिवार, 30 मई 2020

10:43 pm

दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं


विषय - दहेज़

दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं
वो अपने परिवार के लिए ख़ामोशी से सब सहती
अक्सर उसके पैरों को जलाया जाता गर्म चिमटों से
भूखी प्यासी वो तड़पती रहती कई कई दिन रात
मगर कभी नहीं मांग करती अपने मायके से कुछ
वो लड़की है वो जानती है मायके की परिस्थिति
पता है बैंकों से लोन लेकर की गई है उसकी शादी
दर्द,प्रताड़ना को रोज़ सहती लेकिन ख़ामोश रहती
एक दिन ससुराल वालों ने मिट्टी का तेल डाल 
जला दिया उस बहू को जिसके हृदय में लक्ष्मी बसती थी
तड़प और प्यास से वो चिल्लाती रही पापा भैया मां
मगर दहेज के लोभी उसे जलता देख हंसते रहे
 बेटी को मुखाग्नि देते वक़्त पिता ने बस यहीं कहा
"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"
न्याय के देवी ने आंखों में फ़िर बांध लिया काली पट्टी
स्वतंत्र हो कर घूमने लगे उसके ससुराल वाले 
मगर पिता ने वादा पूरा किया उन्हें सजा दिलवाया
मुकदमें के लिए मां ने बेच दी मंगलसूत्र भाई ने छोड़ दी पढ़ाई
आख़िर में पिता की ये बात सच निकली
"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"


शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र

मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरे द्वारा स्वरचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूर्णत मैं ज़िम्मेदार रहूंगा संपादक मंडली नहीं।
4:11 am

प्रकृति,जो है अपने नाम में ही है परिपूर्ण।

प्रकृति से प्यार

प्रकृति,जो है अपने नाम में ही है परिपूर्ण।
सुख, प्रेम,दया ,छाया, संतृप्ति है जिसके गुण।

परोपकार है जिसके संस्कार, लेती नहीं किसी के उपकार।
सेवा ही प्रदान करती हैं कभी जननी,तो कभी संरक्षक बनकर।

माँ की ही छवि है इनमें ,केवल देने का भाव रखती हैं।
लाख कष्ट देते हैं संतान,फिर भी सेवाभाव से पीछे हटती नहीं हैं।

प्रकृति ने दिखाया हमेशा हम पर  प्यार,
अब हमारी बारी है चलो हम भी करें "प्रकृति से प्यार"।

निधि तिवारी,
मुम्बई(महाराष्ट्र)


मैं निधि तिवारी घोषणा करती हूं कि उपरोक्त रचना मेरे द्वारा रचित रचना है।किसी भी तरह के कॉपी राईट उल्लघन के मामले में मेरी जवाबदारी होगी।

गुरुवार, 28 मई 2020

11:28 pm

दुल्हन बनना आसान कहां


विषय - दुल्हन

दुल्हन बनना आसान कहां

नए सपने नई उम्मीद होती है
नए रिश्ते नया परिवार होता है
नई आशा नई पहचान होती है
नया पहनावा नई साज होता है

दुल्हन बनना आसान कहां

नई जिम्मेदारी नया संसार होता है
नया परिवेश नया आगाज़ होता है
नया मंदिर नया भगवान होता है
नए घूंघट में सिमटी नववधू होती है

दुल्हन बनना आसान कहां

नए दुल्हन का सौंदर्य नव मुस्कान होता है
नए विवाहित जीवन का शुरुवात होता है
नया ससुराल पुराना मायका होता है
नई लक्ष्मी अब ससुराल की दुल्हन होती है

शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र

किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूर्णत मेरी जिम्मेदारी होगी।
11:52 am

देखो कैसी विपदा आई

*मजदूर हुआ मजबूर*

देखो कैसी विपदा आई
शहर से गांव के लिए "मजबूर"
है मजदूर मेरा भाई..... 


गया रोजगार, हुआ बेरोजगार, 
पटरी पर कई हजारों मील, 
चलने को बेबस है मेरा
यह भाई, वक्त ने कैसी आंधी चलाई
मजबूर है मेरा मजदूर भाई.... 

हुआ हादसा उस पटरी पर
वह कैसे सोया होगा? 
उन बिखरी रोटियां को देखकर, 
उसके अपनों का दिल कैसे रोया होगा? 

समझ नहीं आता अब क्या होगा
इस वैश्विक महामारी में भी बिना मजदूर के भारत कैसे *आत्मनिर्भर* होगा? 
मजदूर है इसलिए सबसे ज्यादा मजबूर है

*सोनू अवस्थी की कलम से*

 थुरल पालमपुर (कांगड़ा) 
हिमाचल प्रदेश

सोमवार, 25 मई 2020

8:22 am

धर्म के नाम पर कट रहे सर अधर्म के नाम का है बोलबाला


विषय - कलियुग का करामात

धर्म के नाम पर कट रहे सर
अधर्म के नाम का है बोलबाला
लूटी जा रही स्त्रियों की अस्मत
ढाया जा रहा निर्दोष बच्चों पर ज़ुल्म 
रक्तरंजित हो कर पड़ा है मानवता
उड़ाया जा रहा मजाक शहीद सैनिकों का
आतंकवादियों को बताया जा रहा मासूम
मजदूर मजबुर हो कर भटक रहा दरबदर
न्याय की देवी ने लगा रखा है आंखों पर काली पट्टी
छोटे बच्चे कर रहे छोटू बन कर काम ढाबे में
बच्चे मां बाप को ढकेल रहे वृद्धाश्रम में
चारे की तलाश में घूम रही लावारिस गाय
हा यहीं सब है कलियुग का करामात

शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र

मैं शिवम् मिश्रा"गोविंद " घोषणा करता हूं कि ये रचना मेरे द्वारा रचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूरी जिम्मेदारी मेरी स्वयं की होगी।

गुरुवार, 21 मई 2020

9:44 am

हे राम हे अल्लाह मैं मांगू न तुमसे कुछ।

हे राम हे अल्लाह मैं मांगू न तुमसे कुछ।
तेरे यहां आऊं तो देना न मुझको कुछ।
तिरंगे में लिपटा हुआ आए जब वीर कोई।
बस सीने से लगा लेना और चाह न है कुछ।
वीर भारत की आन मान और सम्मान है।
वीर लोगों से ही तो राष्ट्र की पहचान है।
पूजने वालो पूजो वीरों वीर इंसान के रूप में भगवान है।
स्वयं जब राम ने है वीरता का कार्य किया।
सुलाकर दुष्टों को फिर विश्व में है नाम किया।
उन्हीं पद चिन्हों पे थोड़ा तो चल कर देखो।
हे मेरे वीर तुम अब खुद को बदल कर देखो।
फिर कश्मीर क्या लाहौर होगा कदमों में।
खुद को भी राम समझ कर देखो।

नाम                    मनीष मिश्रा

Email ID.           manishmishra7235935410@gmail.com
ग्राम       अल्लापुर रानीमऊ पोस्ट सुंधियामऊ तहसील रामनगर जिला बाराबंकी उत्तर प्रदेश


बुधवार, 20 मई 2020

3:26 am

जब भी बात होती है प्रेम की याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण


विषय - श्री राधा कृष्ण जी

जब भी बात होती है प्रेम की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है विरह की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है त्याग की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है रास की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है विहार की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है संगीत की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है अनुराग की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है मिलन की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है सुर की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है मीरा की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती हैं मटकी की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती हैं राग की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण

मौलिकता प्रमाण पत्र

मैं शिवम् मिश्रा ये घोषणा करता हूं कि "श्री राधा कृष्ण जी" रचना मेरे द्वारा लिखा स्वरचित रचना है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन की जिम्मेदारी मेरी होगी।

शिवम् मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र

रविवार, 17 मई 2020

2:25 pm

अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही - ट्विंकल वर्मा

हमसफ़र
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अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही 
थाम तो लोगे न? 

मजबूती से पकड़ कर रखोगे 
साथ छोड़ोगे तो नहीं न? 

पूरी खुशियाँ तुझ पर लुटा दूंगी 
मुझे गम तो नहीं दोगे न? 

कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते होl 
मुसीबत में पीछे नहीं हटोगे न? 

माँ-पिता, भाई-बहन, दोस्तों को छोड़ कर आउंगीl
सबका किरदार निभा पाओगे न? 

मेरी गलती पर डांटकर नहीं 
प्यार से समझाओगे न? 

सीता की तरह तुम्हें पूजूंगीl
राम की तरह पत्नीव्रता धर्म निभाओगे न? 

मन में डर है, तेरे दर पर कैसे आऊंगीl
मेरे डर पर काबू करके गृहप्रवेश करवा दोगे न? 
       -ट्विंकल वर्मा, आसनसोल(प,बं)

मैं ट्विंकल वर्मा हूँl मैं आसनसोल में रहती हूँl यह मेरी स्वरचित कविता हैl कृपया कर के आप अपने ब्लॉग में स्थान देंl🙏

शुक्रवार, 15 मई 2020

8:07 pm

काव्य गंगा 10 मई 2020 मातृ दिवस पर आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन में 33 प्रतिभागीयों को सम्मानित किया गया


काव्य गंगा यूटयूब चैनल
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https://youtu.be/lCIDUviZH4w

काव्य गंगा 10 मई 2020 मातृ दिवस पर आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन में 33 प्रतिभागीयों को सम्मानित किया गया
1. सरस्वती वंदना -सुनीता शर्मा,भोपाल (म०प्र०)
2. यतिन अधाना, मेरठ (उ०प्र०)
3. दिलीप कुमार पाठक 'सरस' बीसलपुर (पीलीभीत)
4.अजय कुमार पाण्डेय, हैदराबाद ( तेलंगाना )
5.मदन मोहन शर्मा 'सजल'- कोटा (राजस्थान)
6. डा.विजेता साव, 24 परगना नॉथ (प० बंगाल)
7.  खुशबू जैन ,  हाँसी (हरियाणा)
8. डा.बृजेंद्र नारायण द्विवेदी शैलेश, वाराणसी (उ०प्र०)
9. प्रवीणा दीक्षित, कासगंज (उ०प्र०)
10.डॉ स्नेहलता शर्मा, हैदराबाद (तेलंगाना)
11. षटवदन शंखधार, बदायूँ (उ०प्र०)
12.कौस्तुभि शास्त्री, उज्जैन (मध्यप्रदेश)
13. ऊषा कनक पाठक , मिर्जापुर (उ०प्र०)
14. अनिल प्रजापति जख्मी, दतिया (मध्य प्रदेश)
15. दीपाली पंत तिवारी 'दिशा' बंगलुरू(कर्नाटक)
16. परमहंस तिवारी 'परम', वाराणसी, (उ.प्र.)
17. अंकित दीक्षित, बदायूँ (उ०प्र०)
18. शहाना सैफी, पिलखुआ (हापुड़)
19. सीमा सुमन, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)
20. कामेश पाठक, बदायूँ (उ०प्र०)
21. अनुरंजना सिंह, चित्रकूट (उ०प्र०)
22. सीमा चौहान, बदायूँ (उ०प्र०)
23.अनिल शर्मा 'अनिल' बिजनौर (उ०प्र०)
24. इंदुरानी, अमरोहा (उ०प्र०)
25. अशोक धीवर 'जलक्षत्री' रायपुर (छत्तीसगढ़)
26.एस के कपूर 'श्री हंस' , बरेली (उ०प्र०)
27.राजवाला धैर्य, बरेली (उ०प्र०)
28.रीता गुप्ता , बांदा (उ०प्र०)
29. प्रमोद कुमार 'प्रेम' बिजनौर (उ०प्र०)
30. विकास भारद्वाज बदायूँ (उ०प्र०)
31. अरविन्द आचार्य, फर्रुखाबाद (उ०प्र०)
32. अरूणा राजपूत 'राज' हापुड़ (उ०प्र०)
33. कमलकिशोर ताम्रकार , गरियाबन्द (छत्तीसगढ़)
34.मनोज कुमार पाण्डेय, कोलकाता


विशिष्ट पोस्ट

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