आदरणीय, हिंदी साहित्य वैभव में मेरी कहानी को भी स्थान प्रदान करने की कृपा करें।
कहानी के साथ मेरा संक्षिप्त परिचय तथा फोटो भी संलग्न है।
सादर धन्यवाद 🙏
#संक्षिप्त परिचय
नाम : रचना निर्मल
जन्म: 5 अगस्त 1969, पंजाब
शिक्षा: ( राजनीति विज्ञान ) स्नाकोत्तर
रुचि : पठन , पाठन,समाज सेवा
कर्म क्रिया: अध्यापिका , गृहणी, समाजसेवी
प्रेम : सच्चाई देश और प्रकृति से..
प्रिय लेखक : महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, प्रेमचंद,मीर,राहत इंदौरी
साहित्यिक क्षेत्र: गीत,ग़ज़ल,कविता,छन्द,कहानी लघुकथा इत्यादि
साहित्यिक यात्रा : दो वर्ष
प्रकाशन: विभिन्न राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, विभिन्न विधाओं के साझा संकलनों में रचनाएँ सम्मिलित
उपलब्धियाँ: विभिन्न मंचों द्वारा रचनाओं हेतु समय समय पर पुरस्कृत एवं सम्मानित
गोल्डन बुक्स आफ रिकार्ड में प्रकाशित पुस्तक" हे पवन " में कविता- स्त्री और हवा, लघुकथा -कसूर किसका
,सचिव (महिला काव्य मंच (रजि०) , साहित्य शिखर की राष्ट्रीय सचिव, सोपान साहित्यिक संस्था की कार्यकारिणी सदस्या,विहंगिनी की आजीवन सदस्यता
सम्पर्क: फोन: 9971731824 , 7011594469
ईमेल: rachnabhatia800@gmail.com
व्यथा
आज राधिका के मन में एक उम्मीद जगी थी कि सब ठीक हो जाएगा। उसके शरीर में दूसरे जीवन की आहट हुई थी।उसने ठान लिया था कि इसे गिराएगी नहीं। बल्कि अपनी जेठानी की झोली में डाल देगी। जिससे चैतन्य के होने के बाद घर में जो तनाव हुआ है वह कुछ कम हो जाए। उसका गृहस्थ जीवन भी सही पटरी पर चलने लगेगा। रोज़ के लड़ाई झगडे अब खत्म हो जाएंगे। इसी उम्मीद से अब वह दिन काटने लगी। हालांकि कुछ नहीं बदला था। वही ताने, वही मार पिटाई रोज़ हो रही थी। किसी में दया नहीं दिखती थी। किसी को चिंता नहीं थी कि उसके अंदर एक जीवन और भी है। राधिका २४ घंटे बस एक ही प्रार्थना करती थी कि उसका बच्चा सही रहे। नियत समय पर एक परी संसार में अाई। पर किसी के चेहरे पर खुशी न थी। केवल राधिका ही उसे निहार रही थी। उसकी बोलती आंखे, पतले गुलाबी होंठ जैसे उसे बांधे जा रहे थे। पर यह मेरा दूध क्यों नहीं ले रही?डॉक्टर बच्चे के कम वज़न पर चिंतित थे। इसलिए बोले ,दो चार दिनों में लेना शुरु कर देगी। थोड़ी कमज़ोर है। सिजेरियन होने के बावजूद अशोक (पति) ने तीसरे दिन छुट्टी करवा दी कि घर में मुश्किल है।
घर आते ही डेढ़ साल के चैतन्य के साथ साथ बाकी काम भी करने लगी। घर में सास के अलावा दो जेठानी भी थी पर ताने देने के अलावा कोई कुछ नहीं करता था। परी सारा दिन सोती थी रिस्पॉन्स तो करती नहीं थी। रात 8.30 से लगभग 11.00 बजे तक बहुत रोती थी जैसे कहीं दर्द हो। रोज़ ही नीयत समय पर जब परी के साथ ऐसा होने लगा तो राधिका ने अशोक से कहा कि डॉक्टर को दिखाना चाहिए एक समय पर ही क्यों रोती है। सास ने राधिका को डांटते हुए कहा कि कुछ भी खाती हो, कम खाओ तो वो ठीक रहेगी। बहुत कहने पर अशोक परी को डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने उसे देखा। सिर को नापते हुए घबरा गया और दो तीन बार नापा। फिर चिल्ला पड़ा। बच्चे पर ध्यान नहीं है। इसका सिर बड़ नहीं रहा है। यह आवाज़ पर रिस्पॉन्स भी नहीं कर रही ह, न ही इसकी पकड़ मजबूत है। तुम एक बच्चे की पहले भी मां हो। कैसे पाल रही हो? राधिका घबरा कर बोली मैंने नोटिस किया था पर लगा, कमज़ोर है, सोती ज्यादा है इस लिए स्लो है। कुछ दिनों में ठीक हो जाएगी। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिखे और जल्दी से जल्दी रिपोर्ट लाने को कहा। उसमे एक टेस्ट बहुत मंहगा था। घर आते ही अशोक ने मां को बताया। सास ने कहा डॉक्टर ऐसे ही बोलते हैं। अरे महीने की तो है। कुछ दिनों में देखना ठीक हो जाएगी। टेस्ट वेस्ट डॉक्टरों के चोंचले हैं। पर राधिका का दिल न माना। उसने अशोक के हाथ पैर जोड़ कर टेस्ट करवाने के लिए राज़ी कर लिया। दो दिन बाद अशोक अकेले ही डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाने के लिए गए। वापिस आ कर सीधा मां के कमरे में चले गए। ऐसा लगा कि गुप चुप कुछ मंत्रणा चल रही है। राधिका बहुत बेचैन थी। क्या हो रहा है अंदर? क्या सच में मेरी परी को मेरी जेठानी गोद ले लेगी? राधिका का कलेजा मुंह को आ गया। उस दिन को कोसने लगी जब उसने यह मनहूस बात सोची थी। क्या करे? कुछ सूझ न रहा था।वह चाय पानी पूछने के बहाने अन्दर गई तो सब चुप हो गए। सारा दिन राधिका सहमी सी काम करती रही कि आगे क्या होगा, क्या गाज गिरेगी। अगले दिन अशोक राधिका और परी को ले कर नए डॉक्टर के पास गए। वहां केबिन में जाते ही अशोक ने कहा, डॉक्टर के पास अकेले अंदर जाना। ऐसा पहले भी होता था इसलिए राधिका ने बहस करना मुनासिब न समझा और केबिन की ओर बढ़ गई। डॉक्टर ने इशारे से बैठने को कहा और पूछा कि आपको पता है कि आपके बच्चे के साथ क्या दिक्कत है? राधिका ने न में सिर हिला दिया। डॉक्टर ने कहा तुम्हारे पति ने तुम्हे बताया नहीं कि इसका दिमाग नहीं है। राधिका ने परेशान हो कर पूछा कि थोड़ा समय लेगी क्या रिस्पॉन्स करने में? डॉक्टर ने कहा देखिए आपके बच्चे के दिमाग की जगह खाली है। यह कभी रिस्पॉन्स नहीं देगी। यह सिर्फ ऐसे ही रहेगी। क्युकी दिमाग नहीं होने से नर्वस सिस्टम काम नहीं करता। यह न तो किसी को पहचानेगी न ही कोई एक्टिविटी करेगी। सुनते ही राधिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई। रोने लगी। कोई इलाज़ तो होगा। नहीं इसका कोई इलाज़ नहीं है, जन्म से ही वह जगह खाली है। ऐसे बच्चों का कुछ नहीं हो सकता। जब तक जिएंगे बोझ ही रहेंगे। राधिका ने अनजाने डर से परी को अपने साथ जोर से चिपटा लिया। आंसू कब गंगा यमुना बन बहने लगे पता ही नही चला। डॉक्टर साहब प्लीज़, कोई तो इलाज़ होगा। नहीं, कोई इलाज़ नहीं है। धीरे धीरे पूरा सिस्टम फेल होने लगेगा। इसको दौरे पड़ते हैं क्या? नहीं ,डॉक्टर साहेब। रात को रोती बहुत है बस। कानों में कहीं आवाज़ आई, कुछ दिनों में शुरू हो जाएंगे। ध्यान रखें जैसे ही शुरू हो डॉक्टर को दिखा कर दवाई शुरु कर दे। हर दौरे के साथ इसकी कंडीशन और खराब होती जाएगी। बस जितने दिन की सेवा लिखी है आप करिए। कहने के साथ ही उसने दूसरे मरीज़ के लिए घंटी बजा दी।
बेजान सी राधिका केबिन से बाहर अाई और अशोक के पास बैठ गई। बड़े शांत स्वर में उसने पूछा, सब पूछ समझ लिया? राधिका ने धीरे से सिर हिलाया और अशोक की तरफ देखा। अशोक चुप चाप उठा और बाहर अपने स्कूटर की तरफ़ चल दिया। लाश सी बनी राधिका परी को अपने साथ चिपटाए उसी के पीछे चल दी। सारे रास्ते सोचती रही, क्यों किया ईश्वर ये। मेरी परी ही क्यों? उसने किसिका क्या बिगाड़ा है? अशोक घर के बाहर पहुंच बिना कुछ बोले सास के कमरे में चला गया। राधिका जैसे तैसे अपने कमरे तक पहुंची और परी को गले लगा जोर जोर से रोने लगी। चैतन्य मां को रोता देख सहम गया। मां की पीठ पर सिर रख कर चुप चाप खड़ा रहा। उधर राधिका बसभगवान से प्रार्थना कर रही थी, कि मुझे आप जो मर्ज़ी सज़ा दे दो। इस बच्चे पर यह अत्याचार मत करो। मेरी परी को ठीक कर दो। शाम को अशोक ,सास ,जेठ, जेठानी उसके कमरे में आए। यह काम छोड़ कर रोना कब तक चलेगा? उठो रसोई में जाकर अपना काम करो। इसके लिए कोई अनाथालय ढूंढ़ते हैं। राधिका के उठे कदम वहीं थम गए। यह क्या कह दिया इन लोगों ने। यही मंत्रण चल रहा था कल से क्या? इसका मतलब इन लोगों को पता है। छूटते ही सास से पूछा क्यों मम्मी जी? सास ने कहा तो और इसका क्या करेंगे। साथ ही अशोक बोल पड़े, चलो बोलो नहीं, रसोई में जा कर कुछ बना लो बहुत भूख लगी है।
राधिका न चाहते हुए भी रसोई में जा खाना बनाने लगी।
हाथ और दिमाग अलग दिशा में चल रहे थे। क्या सच में ये अपने परिवार के इस नाज़ुक हिस्से को काट देगे। क्या वह कुछ नहीं कर पाएगी दूसरे ही क्षण दिल से आवाज़ आई, नहीं अशोक ऐसा नहीं होने देंगे। उनकी बेटी है, उन्होंने ही तो परी नाम पर हां कहा था। मुझसे ,चैतन्य से प्यार नहीं है माना। पर छोड़ने की बात तो कभी नहीं की। परी को कहीं नहीं जाने देंगे। रात को धीरे धीरे सिसकियां भर रही थी कि उसे अशोक का स्पर्श महसूस हुआ। इतने दुख में भी? मन में आया हाथ ज़ोर से झटक दे। पर इसके लिए शरीर में जान भी नहीं बची थी। पर यह क्या अशोक बहुत प्यार से बात कर रहे थे, मै तुम्हारा दुःख समझता हूं। मेरी भी तो कुछ लगती है। पर अब रोने से क्या होगा। इतने सालों में पहली बार राधिका को अशोक का स्पर्श अपना सा लगा। झट से उसके गले लग जोर जोर से रोने लगी। अचानक अशोक भी रोने लगा। दोनों एक दूसरे का कंधा अपने आंसुओ से भिगो रहे थे। राधिका अशोक का कॉलर पकड़ कर धीरे धीरे कह रही थी, प्लीज़ इसे कहीं मत भेजो यह हमारी बेटी है। अशोक ने कहा नहीं हमें इसे छोड़ना ही होगा। हम इसका क्या करेंगे। जितनी बड़ी होती जाएगी मुश्किलें बढ़ती जाएगी। कौन इतना पैसा ख़र्च करेगा? पर अभी कुछ मत सोचो,। बातों बातों में कब सुबह हुई पता नहीं चला। सुबह बीच वाली जेठानी आशा ने टोका, रात को बहुत रोने की आवाज़ आ रही थी। राधिका चुप रही। वह चैतन्य को उठाने चली गई। दो चार दिनों में ही परी को दौरे पड़ने लगे। उसका शरीर ऐंठ जाता था। परी दर्द से तड़पती थी और राधिका उसकी तड़प देख कर रोती थी। सबने परी पर ध्यान देना बंद कर दिया था। आए दिन उसे इंफेक्शन हो जाता, कभी बुखार, कभी छाले। कोई डॉक्टर हाथ लगाने को राज़ी नहीं होता। इमरजेंसी में उसे लेजाना होता। रोज़ कोई न कोई टेस्ट, प्राइवेट डॉकटरों की महंगी फीस के चलते रोज़ घर में लड़ाई आम बात हो गई थी। राधिका ने न जाने कितने व्रत शुरू कर दिए। घर में सभी उसे अनाथालय भेजने पर ज़ोर देने लगे थे। सास को तो राधिका पागल लगती थी। राधिका बिना बोले सब कर रही थी। कैसे अपने जिगर के टुकड़े को बीमार बिस्तर पर पड़ा रहने दे।अब रोज़ राधिका के चक्कर मंदिर, डॉक्टर के पास, और अशोक के चक्कर पंडित, ज्योतिषों के पास लगने लगे।एक दर्द का हल पूछता था। दूसरा मुक्ति का। एक उसकी लंबी उम्र की दुआए करता था दूसरा उसकी मौत की। घर का दबाव बढ़ता जा रहा था। अब अशोक भी परी को कहीं छोड़ आना चाहते थे। जब तब ऐसी ही बातें होती थीं। डॉक्टर, दवाई के खर्च बढ़ते जा रहे थे। एक दिन अशोक ने कहा अब इसे दवाई देने की जरूरत नहीं है। राधिका की आवाज़ में तलख्खी थी ।क्यों? अशोक गुस्से से बोले, तुम उसे मरने क्यों नहीं देती। मां हो तो उसे मुक्त होने दो, या कहीं छोड़ आओ। ऐसे बच्चो के लिए कई आश्रम है। सब वहीं छोड़ते हैं। तुम्हारी लाडो वहां अकेली नहीं है। राधिका गूंगी खड़ी सोच रही थी, यदि बाप की सोच ऐसी है तो दूसरों से क्या शिकायत। कुछ कह पाती इससे पहले ही अशोक घर से बाहर निकल गए। राधिका वहीं फर्श पर बैठ गई और परी को निहारने लगी। क्या करे, कैसे इसे बचाए? इन जालिमों से कोई उम्मीद रखनी बेकार है। जब कभी चैतन्य को प्यार से गले नहीं लगाया तो इसे कहां प्यार देगे?उसे महसूस हो रहा था कि अब उसे ही खड़े होना है। अशोक से भी हर उम्मीद खत्म है। अपने को समझाने लगी ,एक पाई खर्च करना तो दूर, कभी प्यार से बात नहीं की, परी के बारे में क्या सोचेंगे। अब उसे ही खड़ा होना है परी की ढाल बन कर। अब उसे कोई हाथ नहीं लगा सकता। अब वह एक मां की जिम्मेदारी निभाएगी। उसने अपने हाथों अपने आंसू पोंछे और परी के माथे को चूम कर कहा। तेरा कष्ट दूर करना मेरे बस में नहीं। पर तेरी सांसे किसी को न लेने दूगी। मां हूं तेरी ,जीवन की इस लड़ाई में हर पल तेरा साथ दूंगी। चैतन्य को भी गले लगाया। जैसे आश्वस्त कर रही हो कि तू हमेशा हर मुश्किल में मेरे साथ रहेगा न। इतने में सास की आवाज़ आई, क्या कर रही है उसके साथ, बाहर आ कर मेरे पैर दबा। राधिका उठते उठते वापिस बिस्तर पर बैठ गई। पूरी हिम्मत को इकट्ठा करके जवाब दिया,परी को सुला कर आऊगी। जानती थी शाम को अशोक के आने पर कान भरे जाने थे फिर सबके सामने जिल्लत, मार पिटाई। सब सहेगी कुछ नहीं होने देगी परी को। धीरे से परी के कान में कहा, जब तक मै और तेरा भाई है तुझे किसी से डर नहीं है। और परी की तरफ मुस्कुरा कर देखा। उसे लगा परी कह रही है। शुक्रिया मां ,अब मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता। तुम्हारी बाहों में सुरक्षित हूं मैं। छोटा सा चैतन्य उसके साथ ऐसे चिपक गया जैसे कह रहा हो मां, मै भी तुम्हारे साथ हूं।
स्वरचित
रचना निर्मल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400