रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
सम्पादक महोदय
हिंदी साहित्य वैभव वेब पत्र
श्रीमान जी,
सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्र को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपके पत्र में हो सकेगा!
धन्यवाद
भवदीय
बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी:125033
मोबाईल:9996266210
ग़ज़ल
हर समय क्यों बदगुमानी चुप रहो
क्या वही फिर बदज़ुबानी चुप रहो
रूखे सूखे हो रहे हैं लब मेरे
आँसुओं में है रवानी चुप रहो
ज़ुल्म वो करते हुए ये कह रहा
शख्स मैं हूँ ख़ानदानी चुप रहो
इश्क पर बस अब कभी चर्चा नहीं
खाक़ अपनी ही उड़ानी चुप रहो
आज तो दुनिया नहीं या हम नहीं
दाँव पर दुनिया लगानी चुप रहो
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