रेडियो का जमाना और बचपन के दिन -
(गुजरे जमाने की सुहानी यादें)
हमारे बचपन के दिनों में रेडियो और ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का जमाना था ।
ब्लैक एंड व्हाइट टीवी सबके पास नहीं थी , मगर रेडियो ज्यादा तर लोगों के पास था ।
मेरे पिता जी भी एक रेडियो लाए थे , उस रेडियो को हम रात में खाना खाने के समय चालू कर देते थे , मेरी दादी भी रेडियो का पूरा आनंद लेती थी , पिता जी, मा जी , चाचा और हम सब लोग एक जगह बैठ जाते थे ,
एक जगह बैठकर खाना खाते थे और विविध भारती सुनते जाते थे ।
रात्रि में रेडियो का स्टेशन बदलने का अपना अलग ही मजा था ।
रात्रि में लखनऊ , कभी भोपाल कभी नजीबाबाद , एवं अन्य तमाम स्टेशनों के अच्छे अच्छे कार्यक्रम सुनने को मिलते थे ।
सुबह रामायण की चौपाई , और रात में बाइबिल की बातें , आकाशवाणी के कवि सम्मेलन एवं मुशायरा की भी गजब की प्रस्तुति सुनने को मिलती थी ।
विविध भारती का हेलो कानपुर या हेलो फरमाइश भी बहुत सुखद था ।
रेडियो केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं था , कई चीजों के लिए लोगों को जागरूकता भी प्रदान करता था , हर रोज देश दुनिया की खबरों को समाचार के माध्यम से हमारे कानों तक पहुंचाता था ।
एक बार रेडियो के सेल ख़तम हो गए ।
और सेल के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे , मैंने मा से कहा बीस रुपए दे दो । मा ने कहा अभी नहीं है , याद है मुझे मै गुस्सा हो गया था ।
फिर बाद में मा ने पैसा दिया ।
मुझे भी बड़ा दुख हुआ कि रेडियो के सेल के लिए मा से भी झगड़ जाता हूं ।
मगर ये मेरा झगड़ा नहीं ,ये तो मेरा रेडियो और आकाशवाणी के प्रति प्रेम था जिसके चक्कर में मै किसी से भी झगड़ा कर लेता था ।
अगर मेरा रेडियो कोई उठा ले जाए ,तो मै अगले दिन उसे छुपा कर रख देता था ।
बस ऐसा ही था बचपन ।
आज भी मै छतरपुर आकाशवाणी को नहीं भूला
न ही युवा वाणी कार्यक्रम को भूला ।
लेकिन समय की व्यस्तता ने अब हमे खाली नहीं रहने दिया । इस वजह से हम रेडियो के ज्यादा नजदीक नहीं रह पाते ।
हमने रेडियो में सबसे ज्यादा लक्ष्मीकांत - प्यारेलाल , शंकर जयकिशन , कल्याण जी - आनंद जी , नदीम - श्रवण
नौशाद ,ओपी नैय्यर , खय्याम एवं अन्य मशहूर संगीतकारों की धुनों से सजे कालजई गीत सुने , इनके गीत सुनने के बाद सारी थकान आज भी खत्म हो जाती है , मानसिक स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है ।
सच तो ये है कि रेडियो के जमाने में हम लोग जितना सुकून से जी रहे थे ।
आज की आधुनिकता और महंगी महंगी टेलीविजनों, मोबाइलों में वो सुकून नहीं है ।
विविध भारती के दो तीन नाम मुझे याद है मै अपनी बात को खतम करने से पहले , रेडियो में आकाशवाणी प्रोग्राम देने वाले श्री राजेन्द्र त्रिपाठी जी , कमल शर्मा जी और युनूस खान जी को नमन करता हूं । रेडियो में इनकी आवाज़ सुनकर हम सब बहुत प्रभावित होते थे । इनकी आवाज़ में एक जादू था , शायद इनकी वजह से भी लोग रेडियो में चिपके रहते थे ।
कवि एवं कहानीकार -
जीतेन्द्र कानपुरी ( टैटू वाले)
( "लेखक ने बचपन के जमाने की बीती बातों को उजागर करते हुए रेडियो से मिलने वाले सुख को अपने लेखन में दर्शाया है , हम आशा करते है पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा ।")
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