विषय - आईना
दर्पण उस रोज़ ख़ामोश था
मैंने उससे पूछा क्या हुआ
बड़े दुःखी मन से वो बोला
सच सबका जो मैं दिखलाता
उलाहने उन सबकी मैं ही पाता
इल्ज़ाम मुझ पर इतना सब आता
फ़िर भी मैं जो जैसा उसको वैसा बतलाता
नाराज़गी फ़िर मैंने आईने का ऐसे दूर किया
देख अपना अक्स उसमें ज़रा सा मुस्कुरा दिया
मुझे यूं मुस्कुराता देख दर्पण भी ख़ुश हुआ
अपनी सारी शिकायतें भूल मेरे संग मुस्कुरा दिया
शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र
मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि प्रस्तुत रचना मेरे द्वारा रचित है। किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में सिर्फ़ मैं जिम्मेदार रहूंगा ,संपादक मंडली का इसमें किसी भी तरह का दोष नहीं होगा।
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