सपना
विरह के आग़ में जलते जलते
उस दिन मैं काफ़ी दूर आ गया था
वो वीरान और ख़तरनाक जंगल था
वहां मैं कब कैसे पहुंचा मुझे खबर नहीं
जहां सिंह की दहाड़ और झिंगुरों की कर्कश आवाज थीं
दिन में भी घनघोर अंधेरा और हो रहीं तेज़ बारिश थीं
मैंने प्रकृति के इस रूप का अभिवादन किया
प्रकृति भी ख़ुश हो कर मुझ पर पुष्प वर्षा कर रही थी
मैं ख़ामोश हो कर ये सब चमत्कार देखता रहा
कोयल कोई गीत गा रही थी मयूर नृत्य कर रहे थे
तभी एक तेज़ रोशनी मेरे आंखों से टकराई
ओह ये क्या मेरी आंखें ये सब सपने में देख रही थी
शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र
मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि ये रचना मेरे द्वारा स्वरचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट उलंघन के मामले में मैं स्वयं जिम्मेदार रहूंगा, प्रकाशक मंडली नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400