नरकुल में ले जन्म देह पर घाव अनेकों खाके
तपी आग में कितनी तब यह बनी बांसुरी जाके
तब जग-रास-रचैया मोहन ने अधरों पर लाके
किये अनोखे कार्य इसी बंशी को बजा-बजा के
शहनाई, बांसुरी, नफ़ीरी क्या-क्या रूप गए धर
मन के झंझा को न कहीं स्नेहिल आयाम मिले पर
गहन पीर से बंकिम होकर जब-जब तन जाती थी
यही नफ़ीरी रणरागी रणभेरी बन जाती थी
तब उसकी ध्वनि पर प्रतिध्वनि करती थीं दसों दिशाएं
थिरक-थिरक भैरवी नाच उठती लेकर ज्वालायें
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एक दिवस का भले किन्तु पूर्णत्व चाह है जिसकी
अंदर-अंदर ज्वालायें छवि बाहर रहे शिशिर की
शनैः शनैः पूर्णत्व प्राप्त कर शनैः शनैः खोता है
किन्तु एक क्षण भी निराश राकापति कब होता है
यद्यपि विधि के विधि-विधान से ठगा-ठगा रहता है
भीषण भले यातनाओं में पगा-पगा रहता है
सोये सारी सृष्टि किन्तु वह जगा-जगा रहता है
सतत निरत उद्यम में योगी लगा-लगा रहता है
इसी लगन को मान जगत में भोलेनाथ दिलाते
बंकिम छवि का चंद्र धार वे चंद्रमौलि बन जाते
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ऐसा ही बंकिम था जग में बंकिमचन्द्र चटर्जी
जिसके आगे चली नहीं गोरों के मन की मर्जी
जब अंग्रेजों ने भारत पर बंकिम दृष्टि धरी थी
गोद-भारती की सूखी जो रहती हरी-भरी थी
बलिदानों का भी न कहीं कोई उबाल दिखता था
हर कोने में लूट-पाट का ही बवाल दिखता था
चारों ओर हताशाओं का ही सवाल दिखता था
भारत का लोहू अम्बर पर लाल-लाल दिखता था
जो-जो सर उठते थे वो-वो कटा दिए जाते थे
आज़ादी के सपने जड़ से मिटा दिए जाते थे
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ऐसे में आभारत भारत बुझता दीख पड़ा जब
कलम-बाँकुरे बंकिम का कवि भीतर चीख पड़ा तब
बोला कवि अब गहो कलम यह स्वर ललाम कर जाओ
जीते-जी इन अंग्रेजों का इंतजाम कर जाओ
फूट पड़े धमनी से जिसको सुन लोहू की धारा
बुझी-बुझी आँखें यौवन की हो जाएँ अंगारा
जिसको गाकर मिट जाए यह क़ौमों का बंटवारा
बन जाये स्वातन्त्र्य समर का जो अनन्यतम नारा
गहन चिन्तना में कवि का मन रह-रह रहा खौलता
कई दिवस तक शब्दों की ताक़त को रहा तौलता
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पृथक-पृथक अब कितने वीरों का मैं आश्रय धारूँ
नायकहीन हुआ भारत है किसका नाम पुकारूँ
कौन एक वह तत्व कि जिसकी ख़ातिर बैर भुलाकर
जुड़े राष्ट्र सम्पूर्ण एक ध्वज की छाया में आकर
कितने ही नामों पर चिन्तन हुआ एक ही क्षण में
भाव यथेष्ट न भर पाया पर कोई भी कवि प्रण में
सहसा एक उजाला फूटा छवि वह पड़ी दिखाई
सबसे बड़ी प्रेरणादायक भारत माता पाई
उठा प्रभंजन ऐसा थर-थर काँप उठा यह अम्बर
तब वन्देमातरम गीत अवतरित हुआ धरती पर
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आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ
29 जून 2017
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