कोई कवि कण्ठ कहा कहैगो कहानी बाकी,
करैं जसगान जाको नारद, महेश री.
तलवार की अगारी पै विराजीं रणचंडी,
बाजि बनि बाके उतरे ख़ुदै खगेश री.
यमुना सै नर्मदा लौ, टोंस सै लै चम्बल लौ,
शत्रु घर राखो नहीं दिया एकौ शेष री.
सुनिके दहाड़ फटे मुग़ल पहाड़, ऐसो -
भओ छत्रसाल हो बुन्देलखण्ड केसरी.
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धूरि उठि रही है सुदूर दिशा दक्षिन सै,
पक्षिन को शोर चहुँ ओर घहरायो है.
धौंसा की धमक सुनि बिजुरी चमक रही,
कड़कि रही है मानो काल मण्डरायो है.
चम्बल किनारा तोड़ि मोड़ि चली धारा कौ है,
पारावार देखि पारावार भरमायो है.
का भई कहानी, कहते न बने बानी, कहूँ -
राजा छत्रसाल सेना लैके चढ़ि आयो है।। 1
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
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