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रविवार, 5 अप्रैल 2020

महाराणा प्रताप :- जिस पुतली पे सुनते हैं चाल चेतक की - आदित्य तोमर

महाराणा प्रताप पर कुछ छन्द -

जिस पुतली पे सुनते हैं चाल चेतक की,
कहीं उसके जो कोने भी सिकुड़ जाते थे.
दहलाते थे कलेजे पापियों-दबंगो के तो,
टूटे भारतीयों के हृदय जुड़ जाते थे.
वीर महाराणा की दुधारी भारी तेग देख,
क्रोध भरी आँधियों के वेग मुड़ जाते थे.
दृष्टि उठने भी पाती नहीं थी प्रताप की कि
दुष्ट मुग़लों के धुंएँ-धुंएँ उड़ जाते थे.
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राणा की कहानी को न अतिश्योक्ति मानो कोई
जब भारती भवानी माता धैर्य खोती थी.
सवा सौ किलो का वो कवच बतलाता है कि
राजपूताने की वीर छाती कैसी होती थी.
भाला ये बताता है बहत्तर किलो का हमें,
उसे देख कैसे मुग़लों की फ़ौज़ रोती थी.
रक्त की पिपासु महाराणा की वो तलवार,
नित्य प्रति अरि रक्त से ही मुँह धोती थी.
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आप कहते हैं हमको प्रताप से क्या काम,
पिता पुत्र होने का ही होता नहीं नाता कुछ.
जो प्रताप की प्रखर लपटें न मिल पातीं,
स्वाभिमानी सूर्य कोई भी न चमकाता कुछ.
कहा जाता राजस्थान मुग़लों ने बसाया है,
कोई इतिहासकार कर नहीं पाता कुछ.
जैसे नाम बदल गए हज़ारों शहरों के,
ऐसे ही चित्तौड़ का भी नाम धर जाता कुछ.
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कड़क के बोले पृथ्वीसिंह बीकानेरी, 
देरी हो न जाये बाजे शादीयाना बन्द कीजिये.
इतनी हँसी हँसुली न चली जाए कहीं,
कोरे ये ठहाके भी लगाना बन्द कीजिये.
अकबर वो बबर शेर है भवानी माँ का
तन ताने डर को छिपाना बन्द कीजिये.
भ्रम खाये आप हैं कि भय खा गया प्रताप
मुझे झूठा ख़त ये दिखाना बन्द कीजिये.
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जिसमें हो अंश राणा सांगा की परम्परा का
हार कर भी वो वीर झुक सकता नहीं.
पन्ना धाय की सहायता से हो जो वंशवृक्ष
असहाय होके कभी रुक सकता नहीं.
मीरा ने ममीरा जिन आँखों में लगाया
उन आँखों में अंधेरा कभी टिक सकता नहीं.
जिस हेतु प्राणदाह किया झालाशाह ने
वो चाह के भी खत ऐसा लिख सकता नहीं.
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ

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