हर तरफ़ इक सुगबुगाहट
हर तरफ़ इक आग फैली।
भारती ने फैंक क्या दी
शीश से चादर कुचैली।।
भीति से जुड़ने लगे हैं
सब अभयधारी लुटेरे।
हाथ में तलवार थामे,
क्रोध से आँखें तरेरे।।
है समय यह भ्रान्ति के जब
पट सरकते जा रहे हैं।
स्वार्थ के सब घट अवा में
ही चटकते जा रहे हैं।।
भोर होने के समय पर,
अंध तम हावी हुआ है।
जान ले वह अब धरा पर
सूर्य सम्भावी हुआ है।।
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.
हर तरफ़ इक आग फैली।
भारती ने फैंक क्या दी
शीश से चादर कुचैली।।
भीति से जुड़ने लगे हैं
सब अभयधारी लुटेरे।
हाथ में तलवार थामे,
क्रोध से आँखें तरेरे।।
है समय यह भ्रान्ति के जब
पट सरकते जा रहे हैं।
स्वार्थ के सब घट अवा में
ही चटकते जा रहे हैं।।
भोर होने के समय पर,
अंध तम हावी हुआ है।
जान ले वह अब धरा पर
सूर्य सम्भावी हुआ है।।
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.
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