जब भारत में सोमनाथ का मंदिर गया ढहाया
महालिंग के टुकड़ों को सीढ़ी में गया चुनाया
मंदिर का दरवाजा गजनी मस्ज़िद में लगवाया
तब क्या कोई वीर देवता धरती पर था आया ?
नगरकोट देवी की मूरत के टुकड़े करवाकर
बांटी गयी कसाइयों में थी उसके बाट बनाकर
फिर जब बाटों से मासों के टुकड़े गए थे तोले
तब क्या महाकाल धरती पर रौद्र रूप ले डोले ?
मथुरा, काशी कहाँ नहीं ये दृश्य निरंतर दौड़े !
भारत की अस्मत के टुकड़े किसने नहीं भंभोड़े !
ऐसे में भी किसी देव ने भारत नहीं बचाया
बोलो कौन देव ने कोई पापी राख बनाया ?
धर्मो रक्षति रक्षितः का भूल गए संदेशा
अपने मन में भ्रम लेकर पाले झूठा अंदेशा
भूल गए हम धर्म उसी का जो नित कर्म करे है
रक्षा करने वाले की ही रक्षा धर्म करे है
एक-एक मंदिर की शुचिता नष्ट हुई भारत में
सकल सनातन संस्कृति अपनी भ्रष्ट हुई भारत में
और आँख मूँदे भारत के सोते रहे बहादुर
इसी बात पर रहे म्लेच्छ भारत आने को आतुर
अब तुम सोचो महादेव खुद इनसे लड़ने आएं ?
अपने मंदिर, अपने भक्तों के हित शस्त्र उठायें ?
प्रकृति नहीं करती है कोई हस्तक्षेप कभी भी
होना शेष दीखता भ्रम का पट-आक्षेप अभी भी
धर्मयुद्ध में सारथि बनकर आये कृष्ण भलें हों
और बाण उनकी भी प्रतिज्ञाओं पर खूब चले हों
किन्तु यही था मर्म धर्म हित नर ही आगे आएं
बलिदानों के पथ पर बढ़ कर कुल का मान बढ़ाएं
अरे हिन्दुओ कब तक भेड़ों जैसे कटे रहोगे
आपस में बिन बात अहम की खातिर बंटे रहोगे
बलबानों से धर्म सदा होता आया परिभाषित
वे जबरन ढोते हैं इसको जो होते हैं शासित
क्यों भक्तों पर हमले शिव को डिगा नहीं पाते हैं
इनके चीत्कार क्यों उनको जगा नहीं पाते हैं
भीषण नरसंहार शूल को उठा नहीं पाते हैं
उनके संहारक को भोले मिटा नहीं पाते हैं
कोई प्रलयानल शंकर का कहीं न धधका अब तक
देवराज का वज्र भक्तहित कहीं न फड़का अब तक
साफ़ यही सन्देश स्वयं इस धर्मयुद्ध को तोलो
हर-हर-बम-बम महादेव के जय-जयकारे बोलो
आग वही तीसरे नेत्र की तुममें धधक उठेगी
इंद्रदेव की वज्र शक्ति बाजू में फड़क उठेगी
लड़ते-लड़ते राम नाम ध्वनि होंठों पर आएगी
तो बजरंगबली की ताक़त तुमको मिल जायेगी
यही सीख मिलती है सिख गुरुओं के बलिदानों में
पूजो अपने इष्टदेव को अपनी किरपानों में
कोरे आह्वान से कोई देव नहीं आएगा
भीषण हमलावर के आगे भक्त न बच पायेगा
उठो धर्मभीरुओ, भैरवों जैसा रंग बनाओ
अगर काल से भी लड़ना पड़ जाए तो लड़ जाओ
कब तक हम इस कायरता को ढोते और रहेंगे
कब तक वीर योद्धा अपने सोते और रहेंगे
आज पुनः दत्तात्रेय के महापन्थ पर आओ
अपने अपने पिंड दान कर धर्म युध्द में धाओ
अन्यथा श्वेत पथ अमरनाथ का रक्तिम-रक्तिम होगा
यही इशारा हिन्दूधर्म की खातिर अंतिम होगा.
विधि क्या विधिना के ही सारे योग पलट जायेंगे
और सनातन होने के भ्रम में हम मिट जायेंगे.
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©
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
11 जुलाई,2017
संपर्क सूत्र - 9368656307
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