एक नज़्म दोस्तों के लिए -
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लम्हा लम्हा तुम्हें याद आएगी मेरी
लम्हा लम्हा तुम्हें याद करता रहूँगा
इन पलों की तुम्हें याद आती रहेगी
हर इक तस्वीर तुमको रुलाती रहेगी
कौन तुमको अब इतना सतायेगा बोलो
रूठ जाओगे तुम तो मनाएगा बोलो
ये हसीं पल न ऐसी कोई बात होगी
बस ख्यालों में तुमसे मुलाकात होगी
बस मैं तन्हा तुम्हें याद करता रहूँगा
डूबता दिल में अपने उभरता रहूँगा
जब अंधेरे गमों के डराने लगेंगे
हौसले भी मेरे डगमगाने लगेंगे
तब मुझे इक किनारे की दरकार होगी
अपनेपन की सहारे की दरकार होगी
तीरगी में उजाले करोगे न बोलो
डूबते दोस्त को हाथ दोगे न बोलो
दोस्त बोलो मुझे तुम भुला तो न दोगे
अपनी यादों से मुझको मिटा तो न दोगे ?
अपनी यादों से मुझको मिटा तो न दोगे ??
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इक खिलौना जो अपनी लड़ाई में टूटा
एक चेहरा जो कागज़ पे आधा है छूटा
फिर तुम्हारी छुअन को तरसते हैं देखो,
मेरी आँखों से आँसू बरसते हैं देखो,
दिन वे अन्दर ही अन्दर दबी आशिक़ी के
दिन रजिस्टर के पीछे लिखी शायरी के
दिन बेफिकरी के, यारी के, आवारगी के
दिन सभी से छिपाकर रखी डायरी के
इन दिनों भी कभी याद आते तो होंगे ?
बेवज़ह ही हँसाते, रुलाते तो होंगे ?
फूल पर बैठी तितली लुभाती तो होगी ?
याद मेरी भी तुमको दिलाती तो होगी ?
अपने कॉलेज की वे खिड़कियाँ याद हैं न ?
अपने कॉलेज की वे सीढ़ियाँ याद हैं न ?
अपनी यादों की किरचन अभी भी वहाँ है.
अपनी बातों की तड़पन अभी भी वहाँ है.
ये नज़ारे जो तुमको बुलाते बहुत हैं.
बिन तुम्हारे ये मुझको रुलाते बहुत हैं.
बिन तुम्हारे ये मुझको रुलाते बहुत हैं. ❤️❤️
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ
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