हिंदी साहित्य वैभव

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रविवार, 31 मई 2020

9:35 pm

Baljeet

रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
        सम्पादक महोदय,
        हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका

       सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस ग़ज़ल का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा!
                 धन्यवाद
             भवदीय
            बलजीत सिंह बेनाम
             जन्म तिथि:23/5/1983
             शिक्षा:स्नातक
            सम्प्रति:संगीत अध्यापक
           उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
   हाँसी
मोबाईल:9996266210

ग़ज़ल
मुझे ग़म से निभाना गर नहीं आता
ख़ुशी का ज़िंदगी भर दर नहीं आता

जिसे मंज़िल को पाने का जुनूँ हो
सफ़र से लौट कर वो घर नहीं आता

हिमायत तू जो करता ज़ालिमों की
कभी इल्ज़ाम तेरे सर नहीं आता

सभी से पूछता है हाल ए दिलबर
मगर ख़ुद जा तसल्ली कर नहीं आता

शनिवार, 30 मई 2020

10:43 pm

दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं


विषय - दहेज़

दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं
वो अपने परिवार के लिए ख़ामोशी से सब सहती
अक्सर उसके पैरों को जलाया जाता गर्म चिमटों से
भूखी प्यासी वो तड़पती रहती कई कई दिन रात
मगर कभी नहीं मांग करती अपने मायके से कुछ
वो लड़की है वो जानती है मायके की परिस्थिति
पता है बैंकों से लोन लेकर की गई है उसकी शादी
दर्द,प्रताड़ना को रोज़ सहती लेकिन ख़ामोश रहती
एक दिन ससुराल वालों ने मिट्टी का तेल डाल 
जला दिया उस बहू को जिसके हृदय में लक्ष्मी बसती थी
तड़प और प्यास से वो चिल्लाती रही पापा भैया मां
मगर दहेज के लोभी उसे जलता देख हंसते रहे
 बेटी को मुखाग्नि देते वक़्त पिता ने बस यहीं कहा
"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"
न्याय के देवी ने आंखों में फ़िर बांध लिया काली पट्टी
स्वतंत्र हो कर घूमने लगे उसके ससुराल वाले 
मगर पिता ने वादा पूरा किया उन्हें सजा दिलवाया
मुकदमें के लिए मां ने बेच दी मंगलसूत्र भाई ने छोड़ दी पढ़ाई
आख़िर में पिता की ये बात सच निकली
"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"


शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र

मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरे द्वारा स्वरचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूर्णत मैं ज़िम्मेदार रहूंगा संपादक मंडली नहीं।
4:11 am

प्रकृति,जो है अपने नाम में ही है परिपूर्ण।

प्रकृति से प्यार

प्रकृति,जो है अपने नाम में ही है परिपूर्ण।
सुख, प्रेम,दया ,छाया, संतृप्ति है जिसके गुण।

परोपकार है जिसके संस्कार, लेती नहीं किसी के उपकार।
सेवा ही प्रदान करती हैं कभी जननी,तो कभी संरक्षक बनकर।

माँ की ही छवि है इनमें ,केवल देने का भाव रखती हैं।
लाख कष्ट देते हैं संतान,फिर भी सेवाभाव से पीछे हटती नहीं हैं।

प्रकृति ने दिखाया हमेशा हम पर  प्यार,
अब हमारी बारी है चलो हम भी करें "प्रकृति से प्यार"।

निधि तिवारी,
मुम्बई(महाराष्ट्र)


मैं निधि तिवारी घोषणा करती हूं कि उपरोक्त रचना मेरे द्वारा रचित रचना है।किसी भी तरह के कॉपी राईट उल्लघन के मामले में मेरी जवाबदारी होगी।

गुरुवार, 28 मई 2020

11:28 pm

दुल्हन बनना आसान कहां


विषय - दुल्हन

दुल्हन बनना आसान कहां

नए सपने नई उम्मीद होती है
नए रिश्ते नया परिवार होता है
नई आशा नई पहचान होती है
नया पहनावा नई साज होता है

दुल्हन बनना आसान कहां

नई जिम्मेदारी नया संसार होता है
नया परिवेश नया आगाज़ होता है
नया मंदिर नया भगवान होता है
नए घूंघट में सिमटी नववधू होती है

दुल्हन बनना आसान कहां

नए दुल्हन का सौंदर्य नव मुस्कान होता है
नए विवाहित जीवन का शुरुवात होता है
नया ससुराल पुराना मायका होता है
नई लक्ष्मी अब ससुराल की दुल्हन होती है

शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र

किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूर्णत मेरी जिम्मेदारी होगी।
11:52 am

देखो कैसी विपदा आई

*मजदूर हुआ मजबूर*

देखो कैसी विपदा आई
शहर से गांव के लिए "मजबूर"
है मजदूर मेरा भाई..... 


गया रोजगार, हुआ बेरोजगार, 
पटरी पर कई हजारों मील, 
चलने को बेबस है मेरा
यह भाई, वक्त ने कैसी आंधी चलाई
मजबूर है मेरा मजदूर भाई.... 

हुआ हादसा उस पटरी पर
वह कैसे सोया होगा? 
उन बिखरी रोटियां को देखकर, 
उसके अपनों का दिल कैसे रोया होगा? 

समझ नहीं आता अब क्या होगा
इस वैश्विक महामारी में भी बिना मजदूर के भारत कैसे *आत्मनिर्भर* होगा? 
मजदूर है इसलिए सबसे ज्यादा मजबूर है

*सोनू अवस्थी की कलम से*

 थुरल पालमपुर (कांगड़ा) 
हिमाचल प्रदेश

सोमवार, 25 मई 2020

8:22 am

धर्म के नाम पर कट रहे सर अधर्म के नाम का है बोलबाला


विषय - कलियुग का करामात

धर्म के नाम पर कट रहे सर
अधर्म के नाम का है बोलबाला
लूटी जा रही स्त्रियों की अस्मत
ढाया जा रहा निर्दोष बच्चों पर ज़ुल्म 
रक्तरंजित हो कर पड़ा है मानवता
उड़ाया जा रहा मजाक शहीद सैनिकों का
आतंकवादियों को बताया जा रहा मासूम
मजदूर मजबुर हो कर भटक रहा दरबदर
न्याय की देवी ने लगा रखा है आंखों पर काली पट्टी
छोटे बच्चे कर रहे छोटू बन कर काम ढाबे में
बच्चे मां बाप को ढकेल रहे वृद्धाश्रम में
चारे की तलाश में घूम रही लावारिस गाय
हा यहीं सब है कलियुग का करामात

शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र

मैं शिवम् मिश्रा"गोविंद " घोषणा करता हूं कि ये रचना मेरे द्वारा रचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूरी जिम्मेदारी मेरी स्वयं की होगी।

गुरुवार, 21 मई 2020

9:44 am

हे राम हे अल्लाह मैं मांगू न तुमसे कुछ।

हे राम हे अल्लाह मैं मांगू न तुमसे कुछ।
तेरे यहां आऊं तो देना न मुझको कुछ।
तिरंगे में लिपटा हुआ आए जब वीर कोई।
बस सीने से लगा लेना और चाह न है कुछ।
वीर भारत की आन मान और सम्मान है।
वीर लोगों से ही तो राष्ट्र की पहचान है।
पूजने वालो पूजो वीरों वीर इंसान के रूप में भगवान है।
स्वयं जब राम ने है वीरता का कार्य किया।
सुलाकर दुष्टों को फिर विश्व में है नाम किया।
उन्हीं पद चिन्हों पे थोड़ा तो चल कर देखो।
हे मेरे वीर तुम अब खुद को बदल कर देखो।
फिर कश्मीर क्या लाहौर होगा कदमों में।
खुद को भी राम समझ कर देखो।

नाम                    मनीष मिश्रा

Email ID.           manishmishra7235935410@gmail.com
ग्राम       अल्लापुर रानीमऊ पोस्ट सुंधियामऊ तहसील रामनगर जिला बाराबंकी उत्तर प्रदेश


बुधवार, 20 मई 2020

3:26 am

जब भी बात होती है प्रेम की याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण


विषय - श्री राधा कृष्ण जी

जब भी बात होती है प्रेम की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है विरह की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है त्याग की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है रास की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है विहार की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है संगीत की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है अनुराग की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है मिलन की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है सुर की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती है मीरा की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती हैं मटकी की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण
जब भी बात होती हैं राग की
याद आते हैं मुझे श्री राधा कृष्ण

मौलिकता प्रमाण पत्र

मैं शिवम् मिश्रा ये घोषणा करता हूं कि "श्री राधा कृष्ण जी" रचना मेरे द्वारा लिखा स्वरचित रचना है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन की जिम्मेदारी मेरी होगी।

शिवम् मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र

रविवार, 17 मई 2020

2:25 pm

अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही - ट्विंकल वर्मा

हमसफ़र
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही 
थाम तो लोगे न? 

मजबूती से पकड़ कर रखोगे 
साथ छोड़ोगे तो नहीं न? 

पूरी खुशियाँ तुझ पर लुटा दूंगी 
मुझे गम तो नहीं दोगे न? 

कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते होl 
मुसीबत में पीछे नहीं हटोगे न? 

माँ-पिता, भाई-बहन, दोस्तों को छोड़ कर आउंगीl
सबका किरदार निभा पाओगे न? 

मेरी गलती पर डांटकर नहीं 
प्यार से समझाओगे न? 

सीता की तरह तुम्हें पूजूंगीl
राम की तरह पत्नीव्रता धर्म निभाओगे न? 

मन में डर है, तेरे दर पर कैसे आऊंगीl
मेरे डर पर काबू करके गृहप्रवेश करवा दोगे न? 
       -ट्विंकल वर्मा, आसनसोल(प,बं)

मैं ट्विंकल वर्मा हूँl मैं आसनसोल में रहती हूँl यह मेरी स्वरचित कविता हैl कृपया कर के आप अपने ब्लॉग में स्थान देंl🙏

शुक्रवार, 15 मई 2020

8:07 pm

काव्य गंगा 10 मई 2020 मातृ दिवस पर आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन में 33 प्रतिभागीयों को सम्मानित किया गया


काव्य गंगा यूटयूब चैनल
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https://youtu.be/lCIDUviZH4w

काव्य गंगा 10 मई 2020 मातृ दिवस पर आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन में 33 प्रतिभागीयों को सम्मानित किया गया
1. सरस्वती वंदना -सुनीता शर्मा,भोपाल (म०प्र०)
2. यतिन अधाना, मेरठ (उ०प्र०)
3. दिलीप कुमार पाठक 'सरस' बीसलपुर (पीलीभीत)
4.अजय कुमार पाण्डेय, हैदराबाद ( तेलंगाना )
5.मदन मोहन शर्मा 'सजल'- कोटा (राजस्थान)
6. डा.विजेता साव, 24 परगना नॉथ (प० बंगाल)
7.  खुशबू जैन ,  हाँसी (हरियाणा)
8. डा.बृजेंद्र नारायण द्विवेदी शैलेश, वाराणसी (उ०प्र०)
9. प्रवीणा दीक्षित, कासगंज (उ०प्र०)
10.डॉ स्नेहलता शर्मा, हैदराबाद (तेलंगाना)
11. षटवदन शंखधार, बदायूँ (उ०प्र०)
12.कौस्तुभि शास्त्री, उज्जैन (मध्यप्रदेश)
13. ऊषा कनक पाठक , मिर्जापुर (उ०प्र०)
14. अनिल प्रजापति जख्मी, दतिया (मध्य प्रदेश)
15. दीपाली पंत तिवारी 'दिशा' बंगलुरू(कर्नाटक)
16. परमहंस तिवारी 'परम', वाराणसी, (उ.प्र.)
17. अंकित दीक्षित, बदायूँ (उ०प्र०)
18. शहाना सैफी, पिलखुआ (हापुड़)
19. सीमा सुमन, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)
20. कामेश पाठक, बदायूँ (उ०प्र०)
21. अनुरंजना सिंह, चित्रकूट (उ०प्र०)
22. सीमा चौहान, बदायूँ (उ०प्र०)
23.अनिल शर्मा 'अनिल' बिजनौर (उ०प्र०)
24. इंदुरानी, अमरोहा (उ०प्र०)
25. अशोक धीवर 'जलक्षत्री' रायपुर (छत्तीसगढ़)
26.एस के कपूर 'श्री हंस' , बरेली (उ०प्र०)
27.राजवाला धैर्य, बरेली (उ०प्र०)
28.रीता गुप्ता , बांदा (उ०प्र०)
29. प्रमोद कुमार 'प्रेम' बिजनौर (उ०प्र०)
30. विकास भारद्वाज बदायूँ (उ०प्र०)
31. अरविन्द आचार्य, फर्रुखाबाद (उ०प्र०)
32. अरूणा राजपूत 'राज' हापुड़ (उ०प्र०)
33. कमलकिशोर ताम्रकार , गरियाबन्द (छत्तीसगढ़)
34.मनोज कुमार पाण्डेय, कोलकाता


गुरुवार, 14 मई 2020

5:05 am

रोटी ढूंढ़ रहा जिसे हर मजदूर


विषय - रोटी

रोटी 
ढूंढ़ रहा जिसे हर मजदूर
रोटी 
तलाश रहा जिसे हर भिखारी
रोटी
गेहूं उगा रहा किसान जिसके लिए
रोटी 
जिसके लिए हुआ कई युद्ध
रोटी
एक मां खिला रही बच्चे को
रोटी
 बाप कर रहा जिसके लिए मेहनत
रोटी
साहूकार के यहां जिसके लिए रख रहे लोग घर गिरवी
रोटी
पसीना बहा रहा जिसके लिए मजदूर
रोटी 
 कुपोषण का शिकार हो रहे जिसके कमी से
रोटी
जिसके लिए चल रही चक्कियां रात दिन
रोटी
जिसके लिए हम आप लगा रहे रोज़ ऑफिस के चक्कर
रोटी
जिसके लिए किसान बहा रहा पसीना


शिवम् मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र

शनिवार, 9 मई 2020

4:06 am

महाराणा प्रताप :- मात्रभूमि पर मिटने वाला


मात्रभूमि पर मिटने वाला
वीर प्रताप महाराणा था
चेतक जिसका घोड़ा
चित्तौड़गढ़ का महाराजा था
हाथ में जिसके रहता भाला
शूरवीर वो मस्त मतवाला था
महा प्रतापी राजा वो
शूरवीर राज्य का रखवाला था
हल्दीघाटी की युद्धभूमि में
जो लड़ा वो महा प्रतापी था
जय भवानी जिसका नारा
हिन्दू शिरोमणि वो राणा था

शिवम् मिश्रा
मुंबई महाराष्ट्र 

मंगलवार, 5 मई 2020

6:24 am

भीड़ लगी मधुशाला में


भीड़ लगी मधुशाला में,
जान बसी अब मधुशाला में

नशा नहीं अब कोई बोतल में
नशा भरा है सब मधुशाला में

नाच नचाती ,भूख मिटाती
हर इलाज़ है इस मधुशाला में

बेच रहा हर ईमान अपना
मौज उड़ाता मधुशाला में

बच्चे भूखे रोते सोते हैं घर में
नवजीवन पाता वो मधुशाला में

आग लगा दो इस जग में सब
जाम न छलके जो मधुशाला में

भूल गया गरीब है वो बस्ती में,
अमीर बन बैठा है मधुशाला में

शिवम् मिश्रा
(शिक्षक)
मुंबई महाराष्ट्र 

सोमवार, 4 मई 2020

8:39 am
हम वहीं हैं यहां थे...

हम वहीं हैं यहां थे
मगर तुम वो नहीं रहे।
वक्त ठहर सा गया,
जब से तुम मिल गये।
मैं जो हूं वो नहीं थी कभी,
मुझमें अब मैं कहां रही।
मगर तुम वो नहीं रहे।
वो जो मेरी टीस सुनता था,
कोसों दूर से,न जाने कैसे?
लाश बन जाती थी मैं,
सांस फूंकता था मुझमें।
दूर हो जाती थी जब खुद से,
मेरा बनकर ,
बस जाता था मुझमें।
मगर तुम वो नहीं रहे।
प्रेम की मूर्ति बन जाता था,
मुझे मुझसे ही मिलवाता था।
अब ढूंढ़ती हूं लाख,
 मगर नहीं मिलते।
मुरझाए फूल शायद ,
दोबारा नहीं खिलते।
भ्रमर फूल के मौसम में,
आकर चला गया शायद,
जो फूल खिल चुके एक बार,
शायद फिर नहीं खिलते।
जो बिछुड जाए ,
फिर नहीं मिलते।
मगर तुम मेरे भीतर बसे हो,
कहां जाओगे।
ठोकर कभी लग जाए,
याद रखना, यहां छोड़ा था,
वहीं फिर हमें पाओगे।
विश्वास है, वही मेरे मनमीत बनकर,
 लौट आओगे।
हम वहीं हैं यहां थे,
मगर तुम वो नहीं रहे।

कौशल बंधना पंजाबी।
भाखड़ा नांगल डैम
पंजाब।
8:38 am
भीष्म

शाम हो गई थी उम्र की,
उसका हृदय महान् था।
अंदर दर्द भरा था उसके ,
पर विचार दृढ़ इंसान था।
भीष्म था वो,प्रतिज्ञाबद्ध,
स्वयं में ही वह महान् था।
उसकी प्रतिज्ञा का लोहा,
मानता सारा जहान था।
ईश्वर भी उसकी शक्ति से,
कहां कभी अंजान था।
अभिमान नहीं उसमें,
मगर स्वाभिमान था।
जगत विदित था धर्मात्मा,
निःसंदेह भीष्म महान् था।

कौशल बंधना पंजाबी।
पंजाब।
8:37 am
तू मुझमें है।

तू मुझमें इस तरह समाया है 
जैसे शरीर में सांस,
भूख में,रोटी की आस,
वर्ष में मास,
गोपियों के लिए 
कान्हा संग रास।
मछली के लिए पानी,
मौसम के लिए,
ऋतु सुहानी।
जवानी के लिए,
आतुर नादानी।
जो बीत गया समय,
लिखने को बेचैन कलम,
शिथिल सी मौन,
लेखक की कलम की नोक पर
चढ़ने को व्याकुल कहानी।
लाकडाऊन में ,
महामारी से बचने को 
जरूरी हो सावधानी।
कुछ इस तरह तू मुझमें समाया है ‌।

कौशल बंधना पंजाबी।
8:20 am
सब तेरा ।

कहते हो सब तेरा,जाने दो,
क्या तेरा क्या मेरा,जाने दो।
हमने कहा जो है,सब अपना 
तुमने कहा मैं तेरा, जाने दो।

धरा पर आसमान का घेरा,
रात पर चांद का फेरा।
हो जाने दो,हो जाने दो,
ना तेरा ना मेरा, जाने दो।

फूल पर भंवरे का फेरा,
मधु की खातिर पहरा।
हो जाने दो,हो जाने दो,
ना तेरा ना मेरा, जाने दो।

प्रीत के ऊपर पहरा,
राज़ वफ़ा का गहरा।
हो जाने दो,हो जाने दो।
ना तेरा ना मेरा, जाने दो।

सुनकर भी सब बहरा,
रंग शबनम का गहरा।
हो जाने दो,हो जाने दो।
ना तेरा ना मेरा, जाने दो।

कौशल बंधना पंजाबी।
पंजाब।

 

8:09 am
तवायफ किसने बनाया उसको।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

बिठाकर कोठे पर उसको,
 खुद को मर्द कहते हो।
पहनाकर पांव में घुंघरू,
उसका दर्द कहते हो।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

जाते हो कलियां मसलने,
कलियां हाथ में लेकर।
बहुत खुश फिर होते हो,
किसी को दर्द तुम देकर।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

तवायफ वो नहीं तुम दल्ले,
तबाही पर किसी की मचले।
मारकर किसी की रूह को,
करते हो सड़कों पर हल्ले।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

खुदा से डर, किसी से इश्क ,
ना हो जाए, कहीं तुमको।
उसी कोठे पर मिल जाए,
जिसने चाहा हो तुमको।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

जहां तुमने बेचा, किसी को।
रोज देखें,फिर सोचे,तू रोए,
सजा कैसी,क्यों मिली‌ तुमको,
आंसू आंए ना कुछ कर पाए।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

घर की रोशनी सोचना,इस क़दर,
कोठे पर जाकर मिली किस कदर।
उजाड़ा था किसी को कभी तुमने,
उजड़े कदम, कोई हुआ था दर बदर।

तवायफ किसने बनाया उसको,
घुंघरू किसने पहनाया उसको।

कौशल बंधना पंजाबी।
नंगल डैम
पंजाब।
8:08 am
इक किताब होगी ,
मेरी जिंदगी की।
जिसके हर पन्ने पर ,
एक कहानी होगी।
कोई बात नयी होगी,
कोई बात पुरानी होगी।
ज़िक्र तेरा भी होगा,
अधूरा,बिन तेरे होगा।
कुछ लम्हें, संग तेरे होंगे,
कुछ इंद्रधनुषी रंग तेरे होंगे।
कुछ अपने और पराए होंगे,
कुछ बिछड़े, कुछ मिल पाए होंगे।
एहसास जो हमने जीएं होंगे,
कुछ घूंट कड़वे, पिएं होंगे।
हर लम्हा,कैद कर हम जाएंगे,
किताब में,खुद को सौंप जाएंगे।
मिलना हमसे, तन्हाइयों में याद,
जब कभी भी हम आएंगे,
पढ़ोगे जब भी,
हर बार मिलने आएंगे।

कौशल बंधना पंजाबी।
8:07 am
सच्ची प्रेम कहानी।(लघुकथा)

प्रेम कहानियां तो असल जिंदगी में बहुत देखीं मगर वो प्रेम कहानी कुछ अलग ही थी,ममता और कमल एक साथ बड़े हुए। बचपन की दोस्ती कब कैसे प्यार में बदल गई थी शायद उनको भी ना पता चला।हर वक्त ममता की जुबान पर कमल का ही नाम रहता। बहुत सुंदर थी वो अगर कोई लड़का परपोज़ कर भी देता तो बोलती भाई बन जाओ राखी बांध दूंगी पर ममता तो सिर्फ कमल की है।
पढ़ने में भी बहुत मेधावी छात्रा धी।पिता रोडवेज में नौकरी करते थे।मां घरेलू महिला थी।ममता की पांच बहनें थीं।ये बात दोनों के घर वालों को पता थी।पर पिता खिलाफ थे।सपने बहुत संजोए थे दोनों ने।वो कमल का फूल बनाती और बीच में अपना नाम लिखती ममता।मगर शायद यह खुशियां कम समय की मेहमान थीं और ईश्वर को भी उनका रिश्ता मंजूर ना था। सुबह कालेज जाने के लिए कमल ने स्कूटर उठाया अपने ही ध्यान में था वो पास खड़ा एक ट्रक तेजी से पीछे हटा और सब खत्म,ऊपर के रूम की खिड़की से यह देख भागी ममता,कमल को खून से लथपथ देख बेहोश हो गई। यहीं अंत हो गया उस प्रेम कहानी का मगर कमल आज भी कहीं जिंदा है उसकी यादों में। वह शादी के खिलाफ थी मगर लड़की थी कहां चली।पर उसने अपने होने वाले पती को सब बात बताई।और कहा कि मैं उसको कभी भुला नहीं पाऊंगी।
आज वह पती और दो बच्चों के साथ फोरन में है।कमल आज भी उसके दिल में जिंदा है।

कौशल बंधना पंजाबी।
8:06 am


संस्मरण
नेकी कर दरिया में डाल।

नेकी कर दरिया में डाल कोशिश हमेशा यही रहती है मेरी।क्योंकि किसी को बताकर मुझे दूसरों की नजरों में बड़ी नहीं होना है भगवान की नज़र में सही रहूं यही काफ़ी है।मगर कलम का धर्म निभाते हुए आज एक संस्मरण जो मेरे हृदय पटल पर है सांझा करती हूं।
जसविंदर रजनी मेरे ससुराल की गांव की लड़कियां हैं। पांच भाई बहन हैं वह।माता पिता नहीं उनके।रजनी को मैने जब मेरी छोटी ‌बेटी पैदा हुई तो काम पर बुला लिया ।वह तब गांव से बाहर पहली बार काम के लिए आई थी उसको मुझपर बहुत यकीन था आज भी है
बहन भाइयों में वही समझदार थी और काम कर पूरे परिवार का पेट पालती थी।
मेरे घर काम के बाद उसको बहुत काम भी मिला और बहुत इज्जत करती वो मेरी कभी भी जरूरत होती मना ना करती आ जाती।
उसकी और उसकी बहन की शादी में भी जितनी अधिक मदद कर पाई की।और लोगों से भी करवाई मदद।
रजनी तो सुखी थी मगर जसविंदर का घर परिवार अच्छा नहीं था।
एक दिन रजनी का फोन आया चाची जी एक मदद चाहिए आपके सिवा कोई मदद नहीं करेगा मेरी बहन की ।उसको न्याय दिलवाओ और उसका कोई ठिकाना नहीं उसको और उसकी बेटी को रखलो अपने पास।जो इतनी उम्मीद लेकर आए उसको मना नहीं किया जा सकता और फिर मैंने हमेशा रजनी को बेटी माना।
वह बोली मेरी बहन आपका काम कर देंगी,,, मैंने मना किया और कहा कि मैं उसकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाऊंगी ,अपना घर समझकर रहे और उसको सिलाई सिखाकर एक दुकान खुलवा देंगे।बेटी को स्कूल में पढ़ा दूंगी।घर की जरूरत हुई तो गांव में मेरे दो घर हैं एक उसको दे देंगे रहने को हमारे जीते जी उसको कोई निकालेगा नहीं और बच्चों को भी समझा देंगे जब बड़े होंगे।
वकील से उसका केस लड़ने की भी बात करली।एक एप्लीकेशन डी एस पी के पास और वूमैन सैल में भी बात करली।
मैंने अपना  रजनी से किया वादा निभाया । जसविंदर को सिलाई सीखने भेजना शुरू कर दिया।बेटी की उसकी एडमिशन भी करवा दी।
अभी दो महीने ही बीते उसके ताऊ का बेटा बोला लेकर जाना है। कुछ दिन बाद भेज देंगे।
मैंने उसको समझाया कि इन दोनों का भविष्य खराब नहीं करना अपने किसी लालच के लिए ।इसको पैरों पर खड़ी होने दो।
पता था वह उसको नहीं आने देंगे,वह भी उदास थी।
उसको दिलासा दिया मैंने कभी भी जरूरत हो बेझिझक बोलना साथ हूं।
मगर वो कैसे भी ले गया वापिस नहीं भेजा ।क्योंकि उनको काम के लिए अब एक मजबूर मिल गई थी।
रजनी ने बहुत समझाया अब उनकी गालियां भी सुनती है और काम भी दिन रात करती है।
एक दिन रजनी ने फोन किया मुझे और बोली चाची अपने बहुत कुछ किया पर उन लोगों को कौन समझाए,,अब यहीं कहूंगी आप दुःखी नहीं होना ,,,नेकी की और दरिया में डाल दी यही सोचना आप।
कौशल बंधना पंजाबी।
नंगल डैम
पंजाब।
8:04 am
पथराई आंखें।(लघु कथा)

जब पुलिस आई तो वह वहीं खड़ी थी, वह जानती थी कि आगे क्या होगा ...पोलटीकल जोर जो था।जमीन जायदाद के घरेलू विवाद ने छीन ली थीं सांसें रेखा की , परिवार की कलह ,सास ससुर नहीं थे ,चाचा चाची ज़मीन हड़पना चाहते थे।गुजारा उसी पर था रेखा और उसके पति का।

जब भी रेखा का पति घर से बाहर होता, चाचा चाची मारपीट करते।मगर उस दिन कुछ ज्यादा ही हो गया ।गला घोंट देने से मौत हो गई थी रेखा की ।

मौत को आत्महत्या का रूप दिया गया।दो मासूम बच्चे अनाथ हो गए। मायके वालों की रिपोर्ट पर भी कोई कार्यवाही ना हुई ,पुलिस आई,मूक हो खड़ी रही। क्योंकि पोलिटिकल जोर ने बांध रखे थे हाथ।

 कोई कुछ नहीं कर पाया ,देश की गंदी राजनीति और घरेलू हिंसा ने समाप्त कर दी जीवन लीला रेखा की और पीछे रह गई थीं कुछ अपनों की पथराई आंखें।

कौशल बंधना पंजाबी।
नंगल डैम पंजाब।


8:04 am
तुमसे बेहतर हूं मैं।

मुझे मत बताओ कि मैं क्या हूं?
मत परखने आओ ,रात स्याह हूं।
अनेकों तूफानों,था घेरा यहां मुझे,
तिनका बन उड़ी,क्यों बताऊं तुझे।
राख गुलिस्तां हूं,खाक में हूं मिली,
बर्बाद ए वक्त,धूल मुझपर जमी।
टूटकर कभी समंदर में जा मिली,
कभी पैरों तले जमीं भी ना मिली।
कभी आशाओं के आसमां में उड़ी,
कभी बिखरी,लगी बिन सावन झड़ी।
दर्द हुआ, बनाकर अपना परखी गई,
पत्थर सी बनाकर फिर तराशी गई।
मार चुपचाप मैंने भी अपनों की सही,
मूर्त कुछ अनमोल बनी, मैं ना थी वहीं।
कहानी मेरी भी अदभुत है,ख्याली भी,
चाय गर्म है मगर ठंडी सी प्याली भी।
मौसम सर्द कभी गर्म भी हो जाता है,
मेरे खून में घुलता है जो परखने आता है।
मैं हकीक़त हूं, जिंदगी की कहानी अनकही
शब्द शब्द रचती,मेरी कलम भीगी बीच स्याही ।

कौशल बंधना पंजाबी।
12:51 
Jan 31/2020.. Friday
8:03 am
जब हमने लिखना शुरू किया,ना कोई बहर देखा है,
सच बस इतना कि जो देखा,जिंदगी का कहर देखा है।

आस पास का रूदन, दर्द शाम ओ सहर देखा है,
गैरों की देखी प्रीत,अपनों के अंदर ,ज़हर देखा है।

टूटते देखें दायरे,दायरों में सिमटा,हर पहर देखा है
रिश्तों का रिश्तों पर ही टूटता विश्वास,कहर देखा है।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,बढ़ता खून में ज़हर देखा है,
तेरा,मेरा करते इंसान से दानव होते हर पहर देखा है।

आंखों में सिमटा समंदर, किनारे तोड़ता लहर देखा है,
दिन में शमशान हुआ,रात को गूंजता शहर देखा है।

समंदर की उड़ती भाप, बरसता मेघ,कहर देखा है,
फिर से वही पानी को समंदर से होता नहर देखा है।

कौशल बंधना पंजाबी।
भाखड़ा नांगल
पंजाब।

8:01 am
गुलाब 

ऐ 
सुन
गुलाब
दे हिसाब
मेरे प्यार का
पिया के रंग में
तू रंग जा चूनर।

मैं
रंगी
गुलाल
तन पर
मन में नहीं
मलाल तनिक
आजा बन मोहन।

मैं
राधा
मोहन
तुम प्रेम
हृदय बसो
धुन संगीत रे
मोहन मेरी प्रीत।

मैं
आधी
अधूरी
किरण हूं
मन व्याकुल
हिरण भागता
ना मिले रास्ता कोई।

मैं
सुनो
कान्हा जी
मिलूंगी जी
होली गुलाल
संग सखियां ले
रंग लाल लाल जी।

कौशल बंधना पंजाबी।

7:05 am
मेरा भ्रम

भ्रम था मेरा, टूट गया,
साहिब मेरा,रूठ गया।
जतन मनाने के करूं ,
मेरा था,क्यों छूट गया?

पूछूं स्वयं से प्रश्न यूं,
स्वयं ही मैं उत्तर दूं।
प्रश्न उत्तर में उलझी,
सुलझाऊं पहेली यूं।

वो बादल और मैं धरा,
वो उपवन सा है हरा।
मैं पतझर,सूखी लता,
दर्द, दर्द कह मन भरा।

वो बहारों का बंजारा,
नयन में डूब,मन हारा।
हृदय चूर चूर भया रे ,
झूठ फरेब है संसारा।

अंत रास्ता,मृत्यु जाना,
संग साथ नहीं है जाना।
एकेले राह पार है करना,
फिर काहे जीते जी मरना।

कौशल बंधना पंजाबी।
7:25
2 March 2020
7:00 am
कोरोना से मुक्ति की आशा

हर रोज सोचती हूं
ये संकट टल जाएगा,
देश मेरा फिर से
हर रोज़ गति पाएगा।
संदेसा कोई सुखद,
किसी ओर से चला आएगा।
चेहरा हर एक प्राणी का,
खुशी से खिल जाएगा।
हार नहीं है मानी,
जीत हम जाएंगे,
हम सभी एक हैं,
विजयगान गाएंगे।
सूर्य फिर आशा का,
यूं ही फिर चमकेगा।
माथा मेरे भारत का,
फिर यूं ही दमकेगा।
मान सम्मान व गौरव,
फिर से वही होगा,
भारत मेरा फिर से,
सोने की चिड़िया होगा।

कौशल बंधना पंजाबी।
नंगल डैम पंजाब
11.06 pm
9april2020 Thursday
6:58 am
मेरे जज़्बातों की डायरी

कह देती हूं, कोई किस्सा ,
या फिर कोई कहानी हो।
या फिर एहसासों से जुड़ी,
कोई बात या याद पुरानी हो।

 वो मेरे एहसासों की पावन सी डायरी,
वो मेरे जज़्बातों की पावन सी डायरी।

भरती हूं मैं, बहुत से रंग सुहाने उसमें,
जिंदगी के मेरे, कुछ ढंग सुहाने उसमें।
आंसू , खुशियां,नाराज़गियां, इन्द्रधनुष
रंग हैं फैले से,अनसुने, मनमाने उसमें।

वो मेरे एहसासों की पावन सी डायरी,
वो मेरे जज़्बातों की पावन सी डायरी।

तुम पढ़ना उसे,मेरे मर जाने के बाद,
तुम समझना उसे, मेरे मर जाने के बाद।
सब कहेगी, चुप ना रहेगी,जीवंत होंगे राज़,
मैं ना रहूंगी,होगी वो डायरी मेरे मरने के बाद।

वो मेरे एहसासों की पावन सी डायरी,
वो मेरे जज़्बातों की पावन सी डायरी।

प्रेम भी होगा,विरह मिलन संगीत भी होगा,
सगे संबंधी साथी होंगे, तुम ओ मैं में हम होगा।
कुछ कसमें कुछ रस्में, भूलें भी कुछ यादें भी ,
चुप्पियां भी रहेंगी, मौन कहीं संवाद भी होगा।

वो मेरे एहसासों की पावन सी डायरी,
वो मेरे जज़्बातों की पावन सी डायरी।

प्रीत मीत संगीत भी होगा,
सत्य वहां भयभीत भी होगा।
तुम ओ मैं के सिवा ना पढ़ना,
मेरे क्षुब्ध जज़्बातों को पढ़ना।

वो मेरे एहसासों की पावन सी डायरी,
वो मेरे जज़्बातों की पावन सी डायरी।

नफ़रत प्रेम से कुछ बढ़कर होगा,
चयनित, व्यथित कुछ हटकर होगा।
करीब,दूर से भी ऊपर, रिश्ता रब जैसा,
ज़माने, दुनिया की रीत से कटकर होगा।

वो मेरे एहसासों की पावन सी डायरी,
वो मेरे जज़्बातों की पावन सी डायरी।

कौशल बंधना पंजाबी।
नंगल डैम।
पंजाब।

शुक्रवार, 1 मई 2020

2:12 am

Baljeet


रचना प्रकाशन हेतु प्रमाण पत्र
सेवा में,
      सम्पादक महोदय
     हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका
      
श्रीमान जी,
       सविनय निवेदन यह है कि मेरी यह रचना(ग़ज़ल) नितांत मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है और मैं इसके प्रकाशन का अधिकार हिंदी साहित्य वैभव पत्रिका को देता हूँ!आशा है मेरी इस रचना का यथासम्भव उपयोग आपकी पत्रिका में हो सकेगा
      धन्यवाद
    भवदीय
बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी:125033
मोबाईल:9996266210

ग़ज़ल
मज़हबी दँगे कराता कौन है
मुफ़लिसों के घर जलाता कौन है

जब ख़ुदा है ही नहीं तो दोस्तो
हर मुसीबत से बचाता कौन है

बल्ब के प्रकाश पर सबकी नज़र
जुगनुओं को आज़माता कौन है

हो गया ऊँचे मकानों का चलन
खोल कर खिड़की बुलाता कौन है

इस तसव्वर ने किया पागल मुझे
मेरे दुश्मन को सताता कौन है


2:12 am

Baljeet


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श्रीमान जी,
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      धन्यवाद
    भवदीय
बलजीत सिंह बेनाम
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उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
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ग़ज़ल
मज़हबी दँगे कराता कौन है
मुफ़लिसों के घर जलाता कौन है

जब ख़ुदा है ही नहीं तो दोस्तो
हर मुसीबत से बचाता कौन है

बल्ब के प्रकाश पर सबकी नज़र
जुगनुओं को आज़माता कौन है

हो गया ऊँचे मकानों का चलन
खोल कर खिड़की बुलाता कौन है

इस तसव्वर ने किया पागल मुझे
मेरे दुश्मन को सताता कौन है

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